Tuesday 2 April 2013

मसरूफ


मसरूफ
जब हमें थी फुर्सत आप थे मसरूफ 
आज आप है फुर्सत में,तो हम है मसरूफ 
अजीब है ये तमाशा ए किस्मत 
कभी आप मसरूफ कभी हम मसरूफ

अरसा हो गया बयां न कर सके हाले दिल
मसरूफियत ने ऐसा उलझा दिया हमको
खामोशियो ने ऐसा थमा लफ्जो का दामन
देख के भी उनको हम मुस्करा न सके

महोबत की चाह में झेलते रहे दोजख
कभी जन्नत नसीं होगी..सोच सब्र करते रहे
सब्र को मेरे वो समझ बैठे मुफलिसी ...
भूल गए वो, राख में अक्सर चिंगारी दबी होती है

इरा टाक

1 comment:

Even A Child Knows -A film by Era Tak