Tuesday 6 August 2019

मिस सरगम - इरा टाक (संस्मरण )


“अब अकेले के लिए क्या पकाऊँ”- औरतें ये बात अपने जीवन में अक्सर दोहराती हैं, जैसे उनके होने का मतलब किसी और के होने से ही हो. इसी से जुड़ा मुझे बचपन का एक किस्सा याद आता है, जब हम बदायूं (उत्तर प्रदेश) में थे, मैं शायद सात या आठ साल की थी, कभी कभी मेरी माँ नंदिनी भाकुनी मुझे अपने कॉलेज ले जाती थीं. वो उस वक़्त गवर्मेंट गर्ल्स कॉलेज में भूगोल प्रवक्ता थीं.उनका कॉलेज लाइन पार था , जी हाँ जब रिक्शा करते तो यही बोलते, "लाइन पार GGIC जाना है, लाइन दरअसल रेलवे क्रासिंग था, और लोकल भाषा में कई लोग उसे पंखा भी कहते थे.  टीचर की बेटी होने के नाते मुझे वहां स्पेशल फीलिंग होती थी, मम्मी के स्टूडेंट्स मेरा ख़ास ख्याल रखते, लंच में अन्य टीचर्स जब मिल कर स्टाफ रूम में अपने टिफ़िन खोलते तो मेरी दावत होती. उन्हीं टीचर्स में एक टीचर थीं मिस ....नाम तो अब मुझे याद नहीं रहा, मिस सरगम रख लेते है क्यूंकि वो म्यूजिक पढ़ाती थीं. उम्र करीब पचपन वर्ष, दुबली पतली काया,छोटा कद, गर्दन तक काले सफ़ेद घुंघराले बाल. वो अक्सर सफ़ेद रंग की साड़ी पहनती जिसमें अलग अलग तरह के बॉर्डर और रंग होते. सितार बजाती हुई मुझे वो देवी सरस्वती सी लगतीं. मैं अकसर म्यूजिक रूम में बाहर से झांकती तो देखते ही वो मुझे प्यार से अन्दर बुला लेतीं और मैं उनको लड़कियों को सुर का ज्ञान देते हुए देखती. सरगम आंटी ने शादी नहीं की थी, क्यों नहीं की ये मुझे याद नहीं पड़ता. उस समय शादी न करके अकेले रहने का फैसला लेना आसान नहीं होता था. 

वो इंटरवल में अपने घर चली जातीं थी जो कॉलेज के कैंपस में ही था. वो कैंपस नार्मल स्कूल का कैंपस कहलाता था जिसमें गवर्मेंट कॉलेज यानी जी जी आई सी (GGIC) किराये पर चल रहा था.नार्मल स्कूल मुझे कुछ एब्नार्मल सा लगता था. मम्मी बताती थीं मैंने नर्सरी में कुछ महीने वहीँ पढ़ा था, प्राइमरी स्कूल के अलावा वहां टीचर की BTC ट्रेनिंग भी होती थी. अंग्रेजों के ज़माने की बनी हुई बिल्डिंग, जो बारिश में टपकने लगी थी, आसपास खुला मैदान जहाँ खूब हरियाली थी और बारिश के दिनों में अक्सर सांप बिच्छू निकल आते थे. एक कोने में एक खराब स्कूल बस जो जंग खा चुकी थी,खड़ी रहती थी, जिसमें बच्चे चोरी छुपे खेलने के लिए घुस जाते थे. वहीँ बने हॉस्टल में मिस सरगम को एक कमरा मिला हुआ था. तो एक दिन वो मुझे वहां ले गयीं. एक छोटा सा कमरा जो लम्बाई में बना हुआ था, कोने में लगा हुआ उनका पलंग, उसके आगे एक टेबल पर गैस चूल्हा रख कर बनाया हुआ छोटा सा किचन ...दूसरे कोने में ताक पर बना एक मंदिर जिसमें ढेरों भगवान विराजमान थे.मुझे उन सभी को देखने में बड़ा मजा आया क्योंकि मेरे घर में लिमिटेड भगवान रखे हुए थे.कमरे के बाहर तार पर सूखते कपडे जिसमें उनके कम और भगवान् के कपडे ज्यादा थे. मैं अजूबे की तरह उनके घर के निरीक्षण परीक्षण में ही लगी थीं, तब तक उन्होंने दो थालियाँ निकाली, उसमें छोटी छोटी कई कटोरियाँ सजा लीं. मुझे एक कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुए उन्होंने बिस्तर पर अखबार बिछा कर थाली रख दी. थाली में रोटी, थोड़े चावल, कटोरियों में दाल, दो तरह सब्जी,रायता,मिठाई और सलाद. अपने भगवानों को भोग लगाने के बाद वो मेरे सामने बैठ गयीं. थाली में इतने सारे आइटम देख कर मैं थोडा सहमी हुई थी. मेरी मम्मी तो अक्सर एक सब्जी बनाती थीं और जब अकेली होती तो केवल खिचड़ी ही बना लेती थी ये बोल कर कि अकेले के लिए कौन बनाये.


बातचीत से मालूम हुआ कि मिस सरगम हमेशा ही अपने लिए सारा खाना बनाती थीं और फिर बहुत सजा कर खाती थीं. छोटे छोटे बर्तनों में अपने लिए मुट्ठी मुट्ठी भर आइटम पकातीं. उस समय समझ नहीं आया पर आज समझ आता है अकेले होने का मतलब खुद को नज़रंदाज़ करना नहीं होता, आपके अन्दर पूरी दुनिया है..इसलिए मैं अकेली भी होती हूँ तो बहुत मन से पकाती हूँ और सुन्दर तरीके से सजा कर खाती हूँ.तब मिस सरगम की याद आ जाती है ! 

इरा टाक 

Even A Child Knows -A film by Era Tak