Tuesday 6 October 2015

सफ़र और अनजान फ़रिश्ता - यात्रा संस्मरण

सफ़र और अनजान फ़रिश्ता -यात्रा संस्मरण 


31 अगस्त 2014 की गीली सी दोपहर थी , सुबह ही मेरा कजिन दिल्ली से आया था, सारे काम निपटा के हम एक डाक्यूमेंट्री शूट करने शिवाड़ की तरफ निकल पड़े, एक  मित्र जो फोटोग्राफी का ख़ासा शौक़ीन है, को भी साथ ले लिया । छह साल का विराज भी पूरे जोश में था  शिवाड़, राजस्थान के  सवाई माधोपुर जिले में बसा हुआ एक छोटा सा क़स्बा हैजो अपने मंदिर और पुराने किले के लिए प्रसिद्ध है दूर दूर तक हरियाली और फैली हुई बनास नदी ,वहाँ के वातावरण में एक आकर्षण पैदा कर देती हैं, जो बरबस ही मंत्रमुग्ध कर देता है
         मेरे घर से शिवाड़ लगभग एक सौ चौबीस  किलोमीटर पड़ता है, निवाई (टोंक ) के बाद एक बड़े से गेट से हम शिवाड़ की तरफ मुड़  गए , यहाँ से दूरी इक्कीस  किलोमीटर बची थी कार मेरा भाई चला रहा थामैं तस्वीरें लेने में मसरूफ  थी, चारों तरफ फैले हुए खेत, बारिश  से लबालब भरे छोटे बड़े तालाब, उनमे  तैरते बच्चे, नहाती हुई भैसें , कहीं कपडे धोती हुई ग्रामीण महिलाएंशहर वालों के लिए तो अद्भुत घटना ही होती है, मैं मंत्रमुग्ध होकर सब अपने अंदर जस्ब कर रही थी ! और बेटे विराज को शहर और गाँव का अंतर समझाते हुए कुदरत को करीब से देखने को कह रही थी .
    करीब चार बजे हम शिवाड़ पहुंच गएपहुँचते ही बारिश शुरू हो गयीकाफी देर हमे एक छोटी सी चाय की दुकान  में शरण लेनी पड़ी , थोड़ा ईंधन पानी हमने भी ले लिया  मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखती , इसलिए सारा ध्यान वहाँ  से अपनी क्रिएटिविटी के लिए कुछ चुरा लेने का था ! बारिश से भीगी हुई हवा अपने फेफड़ों में भर लेना चाहती थी , उंचाई  पर खड़े हो कर धरती का गोल होना तुरंत समझ में आता है !
        जैसे किसी ने ढेर सारा झाग बना के आसमान पर छिड़क दिया हो , और फिर बादलों से झांकते सूरज ने कुछ रंग उस झाग पर छितरा दिए हों ! बादल अलग अलग आकृतियां लेते हुए ध्यान  आकर्षित कर रहे  थे , ऐसा लगता था मानो आसमान पर कोई  विशेष सभा  हैऔर विशिष्ट अतिथि अपने -अपने आसनो पर विराजमान हैं !
    शाम के छह बज गए , हमने वापस चलने का इरादा किया , वापसी में कार का स्टेरिंग मैंने संभाल लिया  ,कसबे के सब लोग ऐसे देख रहे थे जैसे कोई अजूबा हो , आज भी कार चलाना आदमियों का ही काम माना जाता है, ख़ास कर कस्बों और गाँवों में तो यही मानसिकता बनी हुई है
      रास्ते में हम रुक रुक कर फोटोग्राफ्स लेते रहे, बारिश से मौसम बहुत खुशगवार था , नदी पार डूबता सूरज पानी  में अपना लाल नारंगी रंग घोल रहा था ! सड़क पतली पगडण्डी जैसी थी , और दोनों तरफ खेत , हालांकि थी तो पक्की ,पर बारिश की वजह से जगह जगह गड्ढे बन गए थे ,एक दो जगह तो तालाब सड़क तक गया था , और पानी में से गाडी निकालनी पड़ी
 आगे जाके हमने खेत के किनारे बनी एक चाय की दुकान पर कार रोक दी , वहां आठ-दस  घर बने थे ,चाय वाले से बातचीत  शुरू कर दी , पीछे ही उसका घर था , जिसमे कई  भैसें  और बकरियां बंधी हुई  नज़र  रही थी  मेरा मित्र वही बैठा रहा , मैं  और मेरा भाई सामने लगे  हैंडपंप  पर हाथ मुँह धोने लगे , फिर सामने ही एक घर के बाढ़े  में बंधी भेड़ों की तस्वीरें लेने लगेतभी चाय वाले ने आवाज़ देकर बुला लिया , चाय पी कर जब हम चलने को हुए ,तो बाढ़े की मालकिन बाहर निकल आई और हमे आवाज़ दे कर बुलाने लगी 
    
उसी समय हमारी कार के पीछे दो ट्रक भी  कर रुक गए थे , चाय की दुकान है और सामने नल भी , तो हमने इतना ध्यान नहीं दिया , हम वापस बाढ़े की ओर बढ़ गएबाढ़े की  मालिकन लगभग पचास –पचपन  साल की महिला होगी ,पर चेहरा झुर्रियों से भरा था ,चाँदी के मोटे मोटे कड़े और तोड़ पायल ) पहने हुए थी,   हमसे खाना खाने का आग्रह करने लगी , बोली 
“हम छोटी जात के नहीं हैं., आप लोग क्या बाहर से आये हो ?
   हमने बोला जात  पात हम नहीं  मानते ,पर अभी हमे कुछ नहीं खाना  , फिर वो बोली मेरी भी फोटुआ खींचो !
और अपनी ओढ़नी सही करती हुई तन के खड़ी हो गयीभाई ने उसकी कुछ तस्वीरें ली और फिर उसे दिखाई भी  कुछ लोग और भी  गए,सब गर्दन लम्बी कर कर के देखने लगे !
सात बजने वाले थे , हमने उन लोगों से विदा ली और  कार की ओर बढ़ गए 
मैंने कार स्टार्ट ही की थी कि एक साँवली  सी दुबली पतली लड़की कार की खिड़की  के पास आकर खड़ी हो गयी , मैंने शीशा  नीचे किया... 
"आपको कुछ बताना है " वो फुसफुसाई 
उसकी ठंडी आवाज़ सुनकर ,एक ही पल में , दिमाग में सैकड़ों  ख्याल  कर चले गए  , पर जो उसने बताया वो सोचा भी  था ...
"अभी अभी जो दो  ट्रक गए हैं , वो आगे आपको रोकेंगे  , मैंने उनकी बातें सुनी हैं"
हम तो प्रकृति में मगन थे , हमारा ध्यान ही नहीं गया था , उन ट्रकों पर !
   वो आगे बोली 
"वो आपके रुकने के थोड़ी देर बाद रुके थे और आपके चलने से पहले ही चल दिए , मैं पानी भरने गयी तो मैंने सुना कि वो आगे आपको लूटने की बात कर रहे हैं , आप ज़रा संभल के जाना ...कुछ भी हो सकता है  !"
ये सुनकर हमारी क्या हालत हुई होगी ,महसूस किया जा सकता है !

      खून का सारा प्रवाह दिमाग की तरफ हो गया और हाथ पैर ठन्डे पड़ गए, Adrenaline हार्मोन तुरंत अपने उच्तम स्तर पर पहुंच के मुझे  भावी खतरे से बचने का संकेत देने लगा , आँखों के सामने सारे देखें , सुनेपढ़े  हादसों की मिलीजुली तस्वीरें घूम गयींअब हमारा भी वही हाल होने वाला थासुबह कही खेतों  में पड़े हुए  हमारे  दुर्गति हुए निर्जीव शरीर !

             तुरंत कैमरे  बैग में रखेंम्यूजिक ऑफ कियाकार के सारे शीशे बंद किये और मैंने फुल स्पीड में गाडी दौड़ा दी , बस यही एक रास्ता था , दूसरा कोई रास्ता होता तो शायद  वो पकड़ लेते , विराज तो डर को समझने के लिए बहुत छोटा था और  दोनों लड़कों के मन की मैं नहीं जानती पर मुझे यही लग रहा था कि मैं मौत की सुरंग में जा रही हूँ , शिवाड़ घूमने का सारा आनंद, कपूर के धुएं की तरह हवा में विलीन हो गया !
 शायद मैं ज़्यादा बढ़ा चढ़ा के सोच रही थी पर  आज के अराजक माहौल और क्रूर होते अपराधियों से किसी तरह की दया की उम्मीद कैसे की जा सकती है ? 
  निर्भया काण्ड  कोई  भूल नहीं सकता! दिमाग काम नहीं कर रहा था , सिर्फ भय और आशंका ...कई बार लगता कि शायद उस लड़की ने ऐसे ही मज़ाक किया हो ! 
 थोड़ी दूर  वो दोनों ट्रक नज़र  गए , सड़क इतनी पतली थी कि ओवर टेक की कम ही गुंजाईश दिखती थी , बारिश में टूटी , दबी हुई सड़कदूर दूर तक फैले हुए खेत  और उनमे पसरा हुआ सन्नाटा , हालाँकि  दिन अभी ढला नहीं था , उजाला हिम्मत दे रहा था , अँधेरा अपराधी की ताकत को दुगना कर देता है और शिकार की ताकत को आधा !
   गला   सूख रहा था और दिमाग बड़ी तेजी से बुरे से बुरा सोचे जा रहा था , मैंने दो तीन बार कहा भी कि पुलिस को फ़ोन करो पर शायद दोनों लड़कों को स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा नहीं था , पर जब  ट्रक रुके हुए देखे तो उनके भी हाथ पैर फूल गए 
 ये नज़ारा  मैंने लगभग तीन सौ मीटर दूर से देख लिया , आगे वाले ट्रक का ड्राइवर उतर के पीछे वाले को कुछ इशारा करने लगा , और बीच सड़क पर आ खड़ा हो गयाट्रकों  ने साइड से निकलने को बहुत कम जगह छोड़ी थी,  मैंने स्पीड  सौ  किलोमीटर/घंटा  कर लीजबकि वहां का रास्ता तीस से ऊपर चलने लायक नहीं थामन ही मन मैंने सोच लिया था  , अगर ये  हटा तो इस ट्रक वाले को टक्कर मार दूंगी !
 मैंने तो यही सीखा हैजब खतरा हो तो बचाव मत करो,  हमला कर दो ! 
    तेजी  से कार को अपनी ओर आता देख वो अचानक साइड में हो गयाकार के दो टायर कच्चे रास्ते पर थे पर मैंने  रफ़्तार काम नहीं की  जब तक  वो इक्कीस किलोमीटर पार  हो  हाईवे नहीं आया ,  मेरी साँसे और धड़कने नार्मल नहीं हुई,  साढ़े आठ  बजे हम सही सलामत घर पहुंच गए
       अगर वो लड़की हमे आगाह  नहीं करती,  तो हम आराम से चलते , सड़क पर ट्रक और आदमी खड़ा देख शायद  रुक भी जातेऔर फिर  जाने हमारे साथ क्या होता वो कल्पना करते हुए भी रोंगटे  खड़े हो जाते हैंये  पहली बार था , जब डर को मैंने महसूस किया और मौत की ठंडी  आहट  सुनी , पर वो लड़की हमारे लिए फरिश्ता ही थीजिसने ये बताने का साहस किया वरना कई बार लोग डर  और संकोच  से नहीं बताते !फिर बाद में कई कई एंगल से हम कई दिनों तक उस घटना का विश्लेषण करते रहे !
     कुदरत साथ थी तो बचा लाई... एक भयानक हादसा होते-  होते टल गयाऔर मैं  सुरक्षित  हूँ, क्योंकि अभी इस दुनिया में मेरा हिसाब बाकी है !

- इरा टाक 

फोटो गैलरी 









      

Even A Child Knows -A film by Era Tak