प्रेम एक गुलामी ही तो है
जब हमारी खुशियाँ और गम
साथी से जुड़ जाते हैं
एक कठपुतली की तरह
चलने लगते है एक दूसरे के इशारो पर
बीच बीच में दोनों का अहम् भी सर उठाता है
और पनपने लगती हैं दूरियां
चाहने लगते हैं एक स्वतंत्र अस्तित्व (स्पेस)
पर जो आनंद प्रेम की गुलामी में है
वो क्या अकेलेपन की स्वतंत्रता में होगा ??
बोलो न मेरे प्रिय !!!,..इरा टाक (सर्वाधिकार सुरक्षित)
जब हमारी खुशियाँ और गम
साथी से जुड़ जाते हैं
एक कठपुतली की तरह
चलने लगते है एक दूसरे के इशारो पर
बीच बीच में दोनों का अहम् भी सर उठाता है
और पनपने लगती हैं दूरियां
चाहने लगते हैं एक स्वतंत्र अस्तित्व (स्पेस)
पर जो आनंद प्रेम की गुलामी में है
वो क्या अकेलेपन की स्वतंत्रता में होगा ??
बोलो न मेरे प्रिय !!!,..इरा टाक (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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