यकीन दिलाने को खुद को
कि तुम थे
मैं गयी हर उस जगह
जहां हम साथ जाते थे
हर उस जगह में महसूस किया
तुम्हारा होना
वो चंद दिन बेहतरीन थे
मय की खुमारी में या
जैसे नींद में कोई चलता है
बेसुध हो
जैसे हवा में कोई उड़ता है
बिना पंख लगाए
शहर को तुम्हारी नज़र से
देखा तो कुछ अलग लगा
जो अजनबी लगता था
वो दोस्त लगा
ज़िन्दगी को नए तरीके से देखना
सीखा तो लगा सब नया सा
फिर एक दिन सब बदल गया
तुम चले गए, कभी न लौटने को
कोई वादा न था हमारे बीच
तो शिकायत भी नहीं है
दिमाग समझ गया पर
लेकिन दिल को समझने में
सालों लग जाएं
या शायद कभी समझे ही न
जब तक जिंदा हूँ
कैसे यकीन करूँ
तेरे चले जाने का !