Wednesday 29 April 2020

मन का मालिक


जब मन खाली होता है तो उसमें कुछ न कुछ भरता रहता है, जिसकी दिमाग को भी ख़बर नहीं हो पाती, और जब तक ख़बर होती है देर हो चुकी होती है, क्यों, क्या, कैसे ये सवाल कुलबुलाते हैं! टूटे, बिखरे मन पर काबू कर पाना दिमाग के लिए सबसे मुश्किल काम है। शारीरिक घाव निशान भले ही छोड़ दें पर एक समय बाद पीड़ा नही देते, परन्तु मन के घाव जब भी कुरेदे जाते हैं, तो  "टाइम मशीन" में बैठा उसी पीड़ा की गोद में जा पटकते हैं, फिर हम अतीत की खरोचे वर्तमान में लिए लौटते हैं.
अतीत के पन्ने बार बार पलटने से वर्तमान अधिक मुश्किल हो जाता, इसलिए सारे जवाब, इलाज, मन और दिमाग की मदद से ढूंढने होंगे जो भीतर ही छुपे हैं, और उनका सामना करने की हिम्मत भी हमें खुद ही करनी होगी। ख़ुद को अतीत और भविष्य के फेर से निकाल वर्तमान के एक लम्हे में समेट पाना मुश्किल तो है पर असम्भव नहीं है !
पेंटिंग - इरा टाक 


अभ्यास से सब संभव है. हम अपने विचारों से बनते या बिगड़ते हैं. 24 घंटों में सैकड़ों विचार हमारे दिमाग में आते हैं कुछ चेतन अवस्था में कुछ अवचेतन अवस्था में. पर हमको सही विचार को रोक लेने और गलत विचार को जाने देने की समझ होनी चाहिए. कहते हैं न एक गन्दी मछली सारे तालाब को गन्दा करती है उसकी प्रकार हमारा मन भी एक स्वच्छ तालाब की तरह होता है एक ग़लत विचार, नेगेटिव थॉट हमारे मन की सारी सकारात्मक शक्तियों को खत्म कर सकता है. जैसे हज़ार अच्छाइयों पर सिर्फ एक बुराई होने से पानी फिर जाता है. ये एक चैन रिएक्शन की तरह होता है एक नेगेटिव विचार से नया विचार और उससे दूसरा आप पांच मिनट में ही पांच दस साल पीछे या आगे पहुँच जाते हैं जहाँ थकान के अलावा आप कुछ नही पाते. और कई बार ये सारी  चिंताएं, नकारात्मकता व्यर्थ ही होती. अतीत को आप सुधार नहीं सकते और कई बार भविष्य में वो डर निर्मूल साबित होते हैं. इसलिए विचारों को फ़िल्टर करना सीखना होगा.
एकांत में बैठ कर सोचिये, कॉपी पेन लीजिये एक लिस्ट बना डालिए. किस भय ने आपको जकड़ रखा है, कौन सी बात आपको ताकत देती है और कौन सी कमज़ोर करती है. किसके साथ आपको अच्छा लगता है और किसके साथ आप परेशान रहते हैं, आपके जीवन का क्या उद्देश्य है, क्या आप खुद के प्रति उस उद्देश के प्रति ईमानदार हैं ऐसे ही अनेकों सवाल और शंकाएं जो आपके मन में उठते रहते हैं सब लिख डालिए
बिना biased हुए उनके जवाब ढूंढिए. तब अब पायेंगे कि कितने डर तो व्यर्थ ही थे जिनका अब कोई वजूद ही नहीं फिर भी वो पुराने सामान की तरह सजे बैठे हैं तुरंत उनको निकल फेंकिये जैसे घर में पड़े हुए कबाड़ को समय- समय पर ख़ाली करना ज़रूरी है, ठीक वैसे ही दिमाग की सफाई भी बेहद ज़रूरी है.
इरा टाक 
कितनी ही लोग ऐसे होंगे जो सिर्फ एक दर्द, बोझ की तरह आपकी ज़िन्दगी में शामिल होंगे जिनका काम सिर्फ आपको आहत करने, नीचा दिखाने का ही होगा..निकाल फेंकिये, डिलीट मारिये. अपनी शक्तियों को संचित कर के अपने उद्देश में लगाइए. याद रखिये आप कितने भी अच्छे हो तब भी सबको संतुष्ट नहीं कर सकते इसलिए सबसे पहले आपकी जवाबदेही खुद के प्रति है उसके बाद उन गिने चुने लोगों के प्रति जो वाकई आपके हितैषी हैं. जीवन में बहुत भीड़ मत रखिये क्योंकि जिसके सब मित्र होते हैं असल में उसका कोई मित्र नहीं होता... 

टूटने - बिछड़ने के भय से मुक्त हो
जीवन समझने की कवायद में मुट्ठी खोल देना
जो अपना है वो खिलेगा हथेली पर
वरना लुप्त हो जाएगा ओस की भांति
विरक्त हो जीवन में लिप्त होना
उम्मीदों से भरे हुए , उम्मीद ना करना
एक दिन छूटना है ये संसार भी
अचानक अनजान समय पर
फिर क्यों नहीं तब तक
वर्तमान में मुस्कान लिए
सम्पूर्ण हो खुद के साथ रहते ! 
चुनौतियाँ, अस्वीकृतियाँ हमें कई बार तोड़ कर रख देती हैं पर उनसे जूझ कर आगे निकलना खुद को और तराशना और दुनिया में अपनी जगह बना पाने की जिजीविषा हमें मरने तक जिंदा रखती है. याद रखिये कम्फर्ट जोन से निकले बिना आप कुछ भी खास हासिल नहीं कर सकते. जब तक अपनी लिमिट्स नहीं तोड़ेंगे वही रह जायेंगे जहाँ थे.
तो मन की लगाम अपने हाथों मे कस कर रखिये, अनुशासन ज़रूरी है क्योंकि इसमें आपको वो भी करना होता है, जो करने का अक्सर आपका मन नहीं करता... क्योंकि ये करना आपके लिए बेहद ज़रूरी है.
अपने लक्ष्य को पाने के सपने देखिये, उसकी लिए जुनून से मेहनत कीजिये, मन में आ रहे गलत विचारों को तुरंत रोकना सीखिए और आज इस पल में जीना सीखिए यकीन मानिए आपके पास अपार शक्तियां है बस उनको जागृत करने की ज़रूरत है.
उम्मीद है आप मन पर लगे जाले हटायेंगे हम फिर मिलेंगे लाइफ सूत्र के एक नए एपिसोड के साथ.

- इरा टाक

Saturday 25 April 2020

ख़ुशी के ख़जाने की चाबी



खुश रहना स्वयं के प्रति पहली जिम्मेदारी है, हम कईयों से बेहतर हालातों में हैं। सेटल तो कभी कुछ नहीं होता, बिना किसी पूर्व चेतावनी के एक पल में सब बदल सकता है !
और हम बांटें रहते खुद को, आधा अतीत में छोड़ आते हैं, चौथाई वर्तमान और चौथाई भविष्य में बिखरे रहते हैं, क्या किसी वक़्त हम एक जगह पूर्ण हो पाते हैं?
ख़ुद को स्वीकार करने का साहस जुटाने के बजाय, अधिकांश समय जो हम नहीं है उसको साबित करने में लगा देते, क्यों सबको जवाब देना ज़रूरी है? यही वक़्त है, व्यर्थ की बातों से पीछा छुड़ा ख़ुद को खाली कर कुछ सार्थक भर पाने का ! क्यों हुआ का जवाब कभी नहीं मिलता इसलिए जहां फंस गये हो वहां से निकलने का मार्ग निकालो !
कई बार दिखावे में इतनी उर्जा नष्ट हो जाती है कि जीवन के असल उद्देश्य के लिए बचती ही नहीं.

Era Tak
दुःख का एक बड़ा कारण ये भी है कि हम अपने जीवन में आये अकृतज्ञ लोगों से दुखी रहते हैं – हमने उसके लिए इतना किया और वो मतलब निकलते ही भूल गया... या वक़्त पड़ने पर हमारे काम नहीं आया जैसे हम उसके बुरे वक़्त में काम आये. हमको for granted लेने लगा.
इसमें गलती हमारी सोच की है कि हम उससे आजीवन स्वामीभक्ति की अपेक्षा करने लगते हैं . अकृतज्ञता दुनिया का जघन्यतम अपराध है फिर भी हमको माफ़ कर के आगे बढ़ना आना चाहिए. हम देने लायक थे तो दे सके, हो सकता है बदले में शायद वो भी हैसियत भर साथ रहा हो. पर उस साथ को हम प्रेम, दोस्ती मान कर भूल कर बैठते हैं. और वर्षों ये दुःख का भाव हमारी आत्मा पर जोंक की तरह चिपके हुए हमारा लहू पीता रहता है. इसलिए मदद करते हुए सिर्फ देने का सुख लेना चाहिए, उसके ग्रेटफुल होने की अपेक्षा किये बगैर. यह याद रखना चाहिए कि kindness कमजोरी नहीं होती यह हमको मानसिक शांति देती है और हमारे मनुष्य होने को सार्थक करती है.
ये कुदरत का नियम है कि जो दिया गया वो वापस ज़रूर मिलता है मगर ज़रूरी नहीं उसी से मिले जिसको दिया गया, किसी और से भी मिल सकता है.
ख़ुद को बड़ा और ख़ास मानना सबसे बड़ी भूल है, सौ की भीड़ में केवल चार लोगों को आपके होने या न होने से फर्क पड़ता है ये सबसे बड़ी सच्चाई है, मिथ्या और यथार्थ के फर्क को समझ कर स्वीकर कर लेना और फिर उस आनंद में मगन रहना... 

पहली जिम्मेदारी

दुनिया नकारेगी कई बार
जैसे कोई वजूद ही नहीं
पीने होगें घूंट
जहर के
बिना कोई प्रतिक्रिया दिए
सब बर्बाद कर
दोबारा
ज़ीरो से शुरू करना होगा
अपनों से आहत होने पर भी
साथ
 चाय पीना ज़रूरी होगा
दर्द को ताकत बनाते- बनाते
जब तुम थकने लगो
और व्यर्थ लगे
खुद का होना
तब भी खुद को प्रेम करना
 तुम्हारी पहली
जिम्मेदारी
होगी.

ज़िन्दगी और मृत्यु का फासला एक क्षण का है, एक क्षण आपके पास सब कुछ और दूसरे ही क्षण शून्य, फिर क्यों सब मुठ्ठी में बांध लेने की कोशिश में हम सारा जीवन छटपटाते हैंजीते जी मुट्ठी खोल देना ही मुक्ति है और खुशी का मार्ग भी.... ज़रूरी नहीं हमेशा जोड़ा ही जाए, जीवन से कई बार बहुत कुछ घटा देना भी रास्ते ज़्यादा सहज और आसान करता है !
तो दोस्तों आपकी खुशियों के ख़जाने की चाबी अपने खुद के पास है, खोजिये और खोलिए ख़जाना.

-
इरा टाक

You can also listen it 
https://anchor.fm/era-tak/episodes/ep-ed7s37


Wednesday 22 April 2020

ज़िन्दगी धूप है, सूरज से निकलते रहिये


ज़िन्दगी जीने के हज़ारों फलसफे हैं. कितनी भी कोशिश कर लो, ज़िन्दगी एक ढ़र्रे पर नहीं चल पाती, ये गाड़ी कई- कई बार पटरी से उतर जाती है. कितनी भी तैयारी कर लो, ज़िन्दगी नए सवाल के साथ परीक्षा लेती है. हर किसी के लिए एक अलग सिलेबस जो एग्जाम टाइम में ही पता लग पाता है.
जैसे अभी कोरोना का अप्रत्याशित हमला... जिसने देखते ही देखते पूरी दुनिया को अपने शिकंजे में कस लिया है. लाखों लोग बीमार हैं, हजारों मर रहे हैं, कितनों के पास पैसे नहीं हैं, रोज़गार नहीं है, भोजन नहीं है. कई के घर वाले दूर हैं... जो साथ हैं उन घरों में शांति नहीं है, घरेलू हिंसा जोर पकड़ रही है. हर किसी का संघर्ष अलग है और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सब कुछ होते हुए भी लॉक डाउन में निराशा से भरे हुए बैठे हैं. कुछ आने वाली आशंकाओं से ग्रसित हैं. हर पहलू में नकारात्मकता ढूंढ रहे हैं. दुखी होना जैसे उनका स्वभाव हो गया है. मुश्किल भी है ऐसे वक़्त में खुद को संतुलित रख पाना, परन्तु संतुलन ही असल परीक्षा तो भीषणतम वक़्त में ही होती है.



 जीवन आशा की डोर थामे रखने का नाम है. हर संभव कोशिश करते हुए खुद को खुश और सकारात्मक बनाये रखना एक कला है जो निरंतर अभ्यास से सीखी जा सकती है.

 अपार संभावनाएं हैं, इस ज़िन्दगी में, हम जितना चाहें हासिल कर सकते हैं. अक्सर लोग अतीत को याद करने में अपना वक़्त बिता देते हैं, कुछ भविष्य के चिंतन में लगे रहते हैं. अतीत की तरफ बार- बार मुड़ कर देखने से या भविष्य की चिंता का बोझ सर पर लादे रहने से रफ़्तार कम हो जाती है. इसलिए वर्तमान में रहना, ज़िन्दगी जीने का सबसे सरल उपाय है. जब अँधेरा गहनतम हो तब निराश होने की बजाय उस वक़्त को याद करें, जब पहले इससे भी गहन अँधेरे से निकल आप रोशनी में आये थे, पैरों में गति आ जायेगी और रोशनी की तरफ फासला कम होता नज़र आएगा.
याद रखिये
" ये भी गुज़र जायेगा ".
कैसा भी वक़्त हो गुज़र जाता है इसलिए सुख में होश न खोना और दुःख में हिम्मत ! जब सब खो जाता है तब भी अगर हिम्मत बची रहे तो वो सब वापस दिलाने की काबिलियत रखती है... ये कोरोना काल का लॉक डाउन, घर में रहते हुए ज्यादा से ज्यादा एक्टिव रहने, जितना हो सके मदद करने, कम खाने, कम सोचने, कम से कम मोबाइल इस्तेमाल करने का है. ज्यादा वक़्त सोशल मीडिया पर बने रहने से हम अपनी मानसिक शांति भी खो देते हैं. नींद न आना, बैचैनी रहना, दिमाग में हर वक़्त व्यर्थ विचारों का चलते रहना, सिर दर्द, गर्दन और पीठ दर्द जैसी समस्याएँ जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मोबाइल, गेजेट्स, इन्टरनेट से जुड़ी हुई हैं.
फोटो : विराज गुरु 

  जीवन में एक लक्ष्य हो, अनुशासन हो और उस लक्ष्य के लिए किसी भी हद तक जाने का जुनून हो. इस वक़्त भी एक टाइम टेबल से चलने की ज़रूरत है, घर में हैं तो क्या? हर चीज़ का एक तय समय होना ज़रूरी है जो आपको बोरियत से बचाएगा और सक्रिय बनाये रखेगा.
खुद को शांत रखने के कई तरीके हैं. अगर आप हमेशा ये जानने में इच्छुक रहेंगे कि दुनिया वाले आपके लिए क्या सोचते हैं, तो यकीन मानिए अपने मन की शांति खो देंगे. काम करने क्षमता कम हो जाएगी, व्यस्त रहिये, मन के मौसम को ‘बसंत मोड’ पर बनाये रखिये.

सुबह नए बहाने
उग आएंगे
जैसे ताज़ी मिट्टी में दबे गेहूं से फूटते हैं
 अंकुर
जैसे सूखे पड़े ठूंठ से फूटती हैं
कोपलें
जैसे बरसात में उग आते हैं
मशरूम
जैसे लिजलिजे प्यूपा से निकलती है
सुन्दर तितली
जैसे सूरज देखते ही गर्व से सर उठाता है
सूरजमुखी.

सांस चलने तक उम्मीद
नहीं बुझनी चाहिए.

वक़्त बीतने के साथ कोई मिट्टी होता है ..कोई सोना बनता है ..कोई बिखरता है, कोई निखरता है. ये सिर्फ आपकी क्षमताओं, जुझारूपन, ज़िद पर निर्भर है. इसलिए मुस्कराइए, कोई साथ दे न दे, आपको खुद के साथ हर पल खड़ा होना है.
जो आप सोचते हैं वो सच भी होगा. इसलिए डरे नहीं, डर कर रोज़ मरें नहीं. यही फलसफा है मेरी ज़िन्दगी का...

“इससे पहले कि मौत हमें पी जाए

चाहिए ज़िन्दगी खुल कर जी जाए.”

तो हिम्मत और धैर्य बनाये रखिये. बच्चों को जीवन जीने के बेसिक स्किल्स सिखाइए. बुजुर्गों के साथ विनम्र रहिये, नयी कोई भाषा सीखिए, फिल्म देखिये, लिखिए- पढ़िए, संगीत सुनिए, संगीत सीखिए, पेंटिंग कीजिये, सिलाई- कढ़ाई कीजिये, नया कुछ पकाइए, मैडिटेशन- एक्सरसाइज कीजिये, डांस कीजिये... जो काम कभी नहीं किया, वह कीजिये, ये समय मुश्किल ज़रूर है पर दोबारा शायद हमारी जिंदगियों में इतना खाली समय न आये. अपने सपनों पर धार लगाइए और हाँ उम्मीद का दिया सुबह होने तक जलाये रखिये... जहाँ एक नया सूरज हमारे इंतज़ार में होगा !

- इरा टाक 



Even A Child Knows -A film by Era Tak