मेरी किताब अनछुआ ख्वाब से
हदों को तोड़ के ,सैलाब से बढ़ क्यों नहीं जाते
जी नहीं सकते शान से तो मर क्यों नहीं जाते
मंजिल को पाना है तो तूफ़ान भी मिलेंगे
जब डर है इतना तो कश्ती से उतर क्यों नहीं जाते
हदों को तोड़ के ,सैलाब से बढ़ क्यों नहीं जाते
जी नहीं सकते शान से तो मर क्यों नहीं जाते
मंजिल को पाना है तो तूफ़ान भी मिलेंगे
जब डर है इतना तो कश्ती से उतर क्यों नहीं जाते
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