Monday 12 January 2015

क्यों किया ऐसा...


   
"क्यों बात बात पर बच्चोँ की तरह ज़िद करने लगी हो...तुम कोई छोटी बच्ची हो क्या ..?" रवि ने थोड़ा खीजते हुए कहा
"अच्छा ... आज मैं बड़ी हो गयी..? उस दिन जब मैंने कहा था कि मुझे ४० की उम्र में यूँ तुमसे छुप- छुप के मिलने आना पसंद नहीं..तब तो कह रहे थे प्रेम का उम्र से क्या ताल्लुक़ ..प्रेम तो उम्र से परे होता है "
" हम्म्म ..तुमसे बातों में भला कोई जीत सका है .."
"तो कोशिश ही क्यों करते हो ... या ईगो हर्ट होती है मुझ से हारने में ." रमा हँसते हुए बोली।
 नीली आँखें ,झक सफ़ेद रंग , भरे हुए भूरे से होंठ , उम्र ४० के आस पास, पर रमा को देख कर कोई २७-२८ से ज़्यादा की नहीं कह सकता था पांच साल पहले एक सड़क दुर्घटना में उसके पति और दो बच्चों की मौत हो गयी थी। तब से वो हँसना- बोलना बिलकुल भूल गयी थी ,वो और उसका पति मिल के  क्लिनिक चलाते थे ।६ महीने तक वो गहरे सदमे में थी ,घर वालों और दोस्तों के काफी समझाने पर उसने दोबारा क्लिनिक शुरू किया।घर पर बूढ़े सास ससुर थे ,रमा ने खुद को क्लिनिक और घर तक सीमित कर लिया था ।उसके अलावा वो कभी कहीं नहीं जाती ,लगभग हर रात वो बहुत रोती थी,जीवन में एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था ,उसकी खूबसूरत आँखों में  गहरी उदासी बस गयी थी , सास ससुर उसे अपनी बेटी की तरह मानते थे ,वो चाहते थे ,रमा दुबारा शादी करके घर बसा ले ,पर रमा ने साफ़ इंकार कर दिया था
तकरीबन २ साल पहले जब वो क्लिनिक से निकल रही थी, तो रवि लड़खड़ाता हुआ उसके क्लिनिक में दाखिल हुआ ,उसे तेज बुखार था ।रवि ३६ साल का आकर्षक आदमी था ,यूनिवर्सिटी में फिजिक्स का असिस्टेंट प्रोफेसर था।किसी लड़की को बहुत पसंद करता था पर उसने किसी और से शादी कर ली थी बस इस वजह से उसने अकेले रहने का सोच रखा था ।रमा को मिलते ही वो उसकी तरफ खींचता चला गया ,उससे मिलने को बहाने तलाशने लगा ,इलाज़ के दौरान उसे रमा की तकलीफों का पता चल चुका था,इलाज के चलते धीरे धीरे उनमे नजदीकियां बढ़ी। शुरू में रमा उसे दूरी रखना चाहती थी,उसे अवॉयड करती थी, पर पता नहीं क्या था जो उसे रवि की ओर खींचता था ,दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे ,काफी समझने लगे थे एक दूसरे को।दोनों ही अकेलेपन को जी रहे थे शायद इसलिए करीब आते गए ,लगभग रोज ही मिलने लगे थे ,एक दिन रवि ने रमा को अपने प्यार का इज़हार भी कर दिया।वैसे इजहार करना ज़रूरी भी नहीं होता ,दोस्ती और प्यार में कोई भी आसानी से फ़र्क़ महसूस कर सकता है।
रमा की ३ साल से खोई हुई हँसी.. रवि की वजह से ही वापस आई थी ,वो एक टीनएजर लड़की की तरह दिखने लगी थी, जिसने अभी-अभी प्रेम का स्वाद चखा हो।वो अपने पति और बच्चों की मौत का गम काफी हद तक भूल गयी थी। रवि को रमा में एक अच्छी जीवन साथी दिखती थी ,इंटेलेक्चुअल,शांत ,गंभीर और उसे समझने वाली।रमा ने उसके बिखरे से पड़े रहने वाले घर का शानदार इंटीरियर कर दिया था।
रवि को स्कालरशिप मिली थी और उसे २ साल के लिए लंदन जाना था,रवि का जाने का बिलकुल मन नहीं था ,रमा उसके जाने से बहुत दुखी थी,पर वो समझती थी, ये उसके लिए एक अच्छा मौका है ,इसलिए उसे जाने को ज़ोर डाल रही थी
"देखो तुम मुझसे चार साल छोटे हो और मुझे पता है क्या बेहतर है तुम्हारे लिए "रमा ने उसे बाँहों में कसते हुए कहा
"पर मैं तुमसे दूर कैसे रहूँगा...हम शादी कर लेते हैं ..फिर साथ चलते हैं "
"अरे पहले वहां थोड़ा सेट तो हो जाओ ,एकदम से सब कैसे मैनेज होगा ? मेरा क्लिनिक है ,माँ बाबू जी हैं ,मैं आती रहूंगी  तुमसे मिलने ..."
दोनों आँखों में आंसू लिए देर तक एक दूसरे को देखते रहे ,और एक दूसरे में घुलते गए।एक दूसरे के साथ होते तो पूरी दुनिया भूल जाते,सच में २ साल से एक एक दिन साथ बिताने के बाद दो साल के लिए अलग होना वाकई मुश्किल था।
रवि चला गया।दोनों रोज स्काइप पर वीडियो चैटिंग करते ,फेसबुक पर कनेक्ट रहते, दिन में एक बार फ़ोन पर भी बात कर लेते,टेक्नोलॉजी के होने से दूरियां कम तो हो ही जाती हैं,पर फिर भी एक अकेलापन सा हमेशा रहता है।
   धीरे धीरे रवि व्यस्त होने लगा ,रमा उसे फ़ोन करती तो उठाता भी नहीं था,स्काइप पर भी आना बंद कर दिया।
रमा रात दिन बैचैन रहने लगी, उसकी हँसी गायब होने लगी ,इस बीच ससुर को हार्ट अटैक हुआ तो रमा उनकी देखभाल में लग गयी ,बड़ी मुश्किल से उन्हें बचाया जा सका ,रवि ने ये खबर सुन कर भी केवल एक sms ही किया।
रमा को अहसास हो रहा था कि रवि उससे बहुत दूर हो गया है ..एक दिन उसने फेसबुक पर रवि के साथ एक विदेशी लड़की की फोटो देखी ,लिखा था "एंगेजड विथ डोरथी मैक कार्थी'
रमा के दिल को गहरा सदमा पंहुचा ,अब कहने सुनने से भी क्या फायदा था ,प्रेम होता तो धोखा क्यों देता ?२ साल के गहरे प्यार का केवल ६ महीने दूर रहने से ऐसा अंत हो गया?रमा के दिल और दिमाग में ढेरों सवाल थे पर जवाब किससे मांगती ?जो रवि उसकी आवाज़ सुने बिना ऑंखें नहीं खोलता था,एक दिन भी उससे बिना मिले नहीं रहता था ,कई बार तो वो रात में केवल उसे देखने उसके बंगले के बाहर आ जाता था
"कितनी बार कहा है ऐसे मत आया करो कोई देख लेगा तो बदनामी होगी "
"तो तुम आ जाया करो न ..इमरजेंसी का बहाना बना के ...यार मैं तो जी नहीं सकता तुम्हे देखे बिना "
आज उसने बिना कुछ कहे सुने दूसरे से नाता जोड़ लिया ,एक बार भी उसे कहने की ज़रूरत नहीं समझी ? ऐसे अलग हो गया जैसे वो कोई पुराना पड़ा हुआ सामान हो, जिसकी अब उसे ज़रूरत नहीं।उसने प्यार को पहली बार रवि के साथ ही महसूस किया था ,मेडिकल की पढाई पूरी करते ही डॉक्टर से उसकी शादी हो गयी ,फिर बच्चे,काम काज में लगे रहे कभी प्यार जैसा तो महसूस ही नहीं हुआ।
रवि ने उसे अहसास दिलाया कि वो खूबसूरत है ,कितनी केयर करता था उसकी ,उसके लिए गिफ्ट्स लाना ,कई बार तो उसके लिए अपने हाथो से खाना भी बनता था, ये बातें उसकी शादीशुदा ज़िन्दगी में कभी नहीं थी वहां सिर्फ बंधन और ज़िम्मेदारी थी।इतना कुछ दे कर अचानक रवि ने सब क्यों छीन लिया ? ये दो साल रमा की ज़िन्दगी के सबसे खूबसूरत साल थे ,लेकिन ये उसके सबसे बड़ी तकलीफ का कारण भी बन गए थे।वो जुदाई सबसे तकलीफदेह होती है जिसमे अलग होने का कोई कारण नहीं बताया जाता ..पीछे छूट गए साथी को एक ही सवाल दिन-रात खाता है ... क्यों किया ऐसा ?
रमा ने खुद को फिर से अपने आप में समेट लिया ,उदासी के गहरे काले बादल ने फिर से उसे ढक लिया था और फिर से वो ४० साल की औरत बन चुकी थी।रवि अब सिर्फ उसकी यादों में था ,चुभता हुआ !
इरा टाक
50/26,प्रताप नगर ,सांगानेर,जयपुर




Saturday 3 January 2015

पहचान का संकट

पहचान का संकट आज जब भारत में महिलाओं और पुरुषों को बराबरी का दर्ज़ा मिला हुआ है, वास्तविक स्थिति बहुत भिन्न है
कुछ अपवादों को छोड़ दें तो आधी आबादी की आज भी अपनी कोई अलग पहचान नहीं और ये स्थिति निम्न और माध्यम वर्ग में बहुत प्रबल है
आज भी वो अपने खानदान पिता, पति या लायक औलादों के नाम से पहचानी जाती हैं , न ही महिलाओं को ये भान है और न ही उन्हें होने दिया जाता है कि अपनी पहचान के साथ जीते हुए अपनी पहचान छोड़ जाना कितना सुखद होता है !
बचपन से ही उन्हें बंद माहौल  में पाला जाता है, गमले के पौधे को बाहर के जंगल से अलग रखा जाता है..ऐसे में उनका बाहर की दुनिया को समझ पाना मुश्किल हो जाता है , नतीजन वो अपनी अनंत शक्तियों और रचनात्मकता को घर परिवार तक सीमित कर लेती हैं
साथ ही साथ महिलाओं के खिलाफ मानसिक और शारीरिक हिंसा के मामलों में निरंतर बढ़ोतरी हुई है , छेड़छाड़ बलात्कार बढ़ते जा रहें हैं , मुख्य कारण है पुरुषवादी कुंठा ! वैसे कारण तो बहुत है , एक कारण में कई कई कारण छुपे हुए हैं !
आज भी स्त्रीयों में जो सबसे बड़ी कमी है वो है एकता की ,बहनापे की , अधिकांश स्त्रियां दूसरी स्त्री को आगे बढ़ते देख कर खुश नहीं होती बल्कि उसके चरित्र का पोस्टमार्टम कर डालने में विश्वास रखती हैं , उन्हें लगता है बिना गलत रास्ते के तो आगे बढ़ा ही नहीं जा सकता , उसकी एक कामयाबी के पीछे वो १०० गलत कारण ढूंढेगी, अपने पिछड़ेपन को वो हमेशा दूसरेकी बुराई कर ढकने की कोशिश करती  हैं
स्त्री मोर्चा , स्त्री संगठन नाम से बहुत संस्थाएं  मिल जाएंगी पर वास्तव में आधी आबादी में कोई संगठन है ही नहीं ! अपनी ही जाति के लिए ईर्ष्या द्वेष भरा हुआ है , भेदभाव है ... अपनी पुत्री को हर सुविधा देने वाली सास अपनी बहु को बांध  के क्यों रखना चाहती है ? ये हर स्त्री को सोचना होगा मनन करना होगा .. अपनी ही जाति के प्रति भेदभाव क्यों प्रेमभाव क्यों नहीं ?
इरा टाक 

Even A Child Knows -A film by Era Tak