Sunday 11 October 2020

दोस्ती की पवित्र किताब का पन्ना - Era Tak ©

जो सच्चा दोस्त होगा

वो दिल में तो रहेगा, सिर नहीं चढ़ेगा

वो दूर होगा लेकिन मुसीबत में साथ नज़र आएगा

वो दोस्त के बढ़ते कद से भयभीत नहीं होगा

बल्कि उसके लिए लिहाज़ और प्रेम बनाये रखेगा

वो दूसरों के सामने गलत नहीं कहेगा

भले ही कुछ शिकायतें हों

वो दूसरे से तुलना करके नीचा नहीं दिखाएगा

वो समझेगा ख़ामोशी और अपने शब्द मीठे रखेगा

वो सुनेगा केवल अपनी नहीं कहेगा

वो समझायेगा, थोपेगा नहीं

वो महफिल में शामिल होगा, दुआ में याद करेगा

वो बांधेगा नहीं, फिर भी बीच होंगें रेशमी धागे 

दोस्त कितने भी आम हों, वो ख़ास महसूस करवायेगा

वो मतलब निकलते ही, साथ नहीं छोड़ेगावो मात्र प्रेम चाहेगा और प्रेम देगा

और ऐसे दोस्त, सिर्फ़ नसीब वाले पाते हैं।

- इरा टाक ©


Friday 9 October 2020

धापी का फेमीनीज़म


आज की हमारी गेस्ट राइटर हैं, श्रीमती धा पी देवी, आशा है उनको आप सब का स्नेह मिलेगा....

धापी देवी का परिचय 

धापी देवी एक दबंग ग्रामीण महिला हैं. लिखने के अलावा वो अचार का व्यवसाय और खेती करती हैं.यू पी में रहती हैं और सोशल मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया से जुडी हुई हैं.उनके बेबाक लेखन के लिए उनको पसंद किया जाता है.

जय राम जी की मित्रो 

हम हैं धापी देवी- अब आप पूछेंगे धापी का मतबल तो हम बताय दे रये की धापी का मतबल है– धापना यानी के भर जाना, पक जाना, उब जाना आउर इंग्लिस में बोले तो Fed Up हो जाना

अभी कछु दिन ही हुए हमको सोसल मीडिया ज्वाइन किये पर किस्मत देखो, हमको रेटिंग आफर आने लगे तो मित्रो जे है हमारा पहिला रेटअप..पढो, समझो, पसंद आये या न आये सेयर ज़ुरूरे करना...वो क्या है न हमारा खुस रहना बहुते ज़ुरूरी है

जब हम सोसल मीडिया ज्वाइन किये तो हमने पहिला बर्ड सुना “फेमीनीज़म”... हम तुरंत गूगल किये तो मालूम पड़ी कि ईका मतबल आऊरतन को बरबबर का अधिकार दिलाना आउर ऊ अधिकार की रकसा करते हुए बनाये रखना

हम रहे सूबेदार की बिटिया, देस में जगहे- जगहे घूमे जिस कारन हमाई भासा खिचरी हो गयी पर दिमाग खुल गओ हम गाँव के ज़ुरूर हैं पर हमाय जेनल नालेज बहुते गजब है, जगह- जगह के लोग-लुगाई देखे, उनके तेवर देखे, रीति रिवाज देखे आउर देखे कि आऊरतन को कईसे पीछे- पीछे किये रहे जे आदमी लोग

 हमाय बापू तो बहुते खुले विचारन के रहे पर हमाई अम्मा पुराने विचारो की रही, वो जब कौनू भेदभाव करती तो हम, हमाय भाई की कुटाई कर देते। हमको हमेसा से बराबरी का हक चाहिए था, लडकी होने का मतबल जे नहीं की हम सबई से डरत रयें। अइसे हमाई अम्मा आउर भाई धीरे- धीरे लेन में आ गये, ऊ समझ गये कि धापी को कंटरोल करना जईसे सूरज को घरे में बंद करना, जईसे नदी को मटके में भरने की कोसिस करना, जईसे से रेत को मुट्ठी में धरने की कोसिस करनागाम में टेक्टर- बुलेट चलाये रहे, हल जोते रहे, बिजली, पानी की फीटिंग का काम भी हम जाने रहे गाम में कोई कछु बोल नहीं सकता था हमको क्यूंकि हम बात बात पर लट्ठ निकाल लेते थे इस्कूल जाते बख्त अगर कोऊ लड़का लोग पीछा करके गन्दी बात बोले तो हम मार- मार के ऊका भुरता बनाये देते आउर सेलफ डीपेनडनत तो हम सादी से पहिले से ही हो गये थे हमाए यूपी में आम के बाग़ रहे तो हम अपना बिजनेस सुरु किए अचार का – धापी अचार, नाम ज़ुरूर धापी अचार है पर कोई एक बार खा ले तो कभी नहीं धापता आर्डर पर आर्डर और देखते ही देखते सहर से डिमांड आने लगी वो का है न हम बचपन से ही जुगाडू रहे

बाद में हमाई सादी हुई संकर से.... लब मेरीज... हुआ जू कि हम अचार के लए अमिया तोड़ने पेड़ पर चढ़े हुए थे आउर संकर वही से गुज़र रहे थे, हमने आमिया फेकी और जिनके खोपडा में लग गयी, जे बुलेट समेत धम्म से गिर गये अरी मैया! हम खट से उतरे और जिनको उठाया, थोड़ी कोहनी- उहनी छिल गयी थी हमको बहुते गिलट फील हो रहा था- हमने ‘सारी’ कही तो बोले-

“मेडम गलती हमाई है, हमको पेड़ के नीचे से नहीं जाना चाहिए था..आप तो अपना काम कर रई थीं”

बस उसी पल हम समझ गए जे ही हमारा दूल्हा बन सकत है, जो हमाई गलती को भी अपनी बतलाये। आउर जे तो हमपे फिदा होई चुके थे, गिरने के अगले ही दिन उसी पेड़ के नीचे आकर परपोज किए। दुई- चार टेसट आउर लेने के बाद हमने भी संकर को हाँ कह दी

हम बहुते खुस थे की एक आउर घर मिल रहा हमको, पर घर नहीं जे तो पिन्जरा था...पिन्जरा ! सादी के बाद हमको दबाये की बहुते कोसिस हुई धापी ऐसा कर, ऐसे रह, जे मति कर, जे मति कर, जे तुमाय मायका नहीं इहा के अलग तरीका है रहबे के। 

हमाये इमोसन जाईसे कोनो वल्यू नहीं रखते बहुते दुःख की बात है कि हम औरतन को हमेसा दबना परता है ... अपने इमोसन सेड में रखने पड़ते है  

हम सूट पहिने तो सास बोलीं, साडी पहिनो, हम साडी पहिने तो सास बोलीं कि लंहगा पहिनो, फिर बोलीं कि पति को नाम से मत बुलावो, सुबह जल्दी उठो और सबके सोने के बाद सोवोनन्द बोली- “भाभी तुम जे हर बख्त किताबें क्यों पढ़ती हो? साम को आउरतन के लहसन छीलते हुए बईठो, बतिआवो।“ 

हम अपसेट हुई गए, हमने भी बोल दिया- कौन सी किताब में लिखा है की सादी के बाद किताब नहीं पढ़ सकते? आउर हम लाइफ में बोलने- बतियाबे नही काम करने आए हैं... तुम भी कछु पढ़- लिख लेयो जिनगी में काम आएगा।”



तो वो चुप्प क्यूंकि ऊको तो अक्षर ज्ञान ही नहीं... आउर हमाई लाजीकल बात का ऊके पास कौनो जवाब नहीं था हम जानत रहे की आउरत ही आउरत की दुसमन है और वो ही आउरतन को आगे बढ़ने से रोके रही

 पानी सर से ऊपर निकल गया आउर हम धाप गये.. वैसे ही बचपन से हमाई सहनशक्ति ज्यादा नहीं है फिर एक हमने सीधे जीन्स पहिन ली आउर सुबहे- सुबहे आँगन में सबको बुलाया

  हमने साफ़ बोल दिया- हम जे जिनगी नहीं जी सकते, जिसमे हमको कईसे उठाना, कईसे बैठना, कईसे और कितना हसना, कईसे कपडे और चूड़ी पहिनना बताया जाए हमने काहे नहीं बुलाएगे इनको नाम से, जब जे हमको धापू कहिते तो हम भी इनको संकर कहेगे क्यों औरतन अपनी मर्जी के कपडे नहीं पहन सकती? हम अपने डीरीम और इमोसन से अब कौनो समझोता नही करेंगे... जिसको दिक्कत हो वो अडजसट करे तुम सब बतावो, सोना कबहू पीतल बन सके है? तुम लोग तो अच्छे खासे हीरे को कोयला बनाये दे रए

हम जैसे है, वैसे स्वीकार कल लेयो वरना जय राम जी की

और जे बात सबई जानत हैं के धापी ने एक बार जो कह दी सो कह दी... फायनल

सब चुप्प... सबको सांप सूघ गया.

हमाये हसबेड यानी संकर एकदम भोले है, भगवान् भोले संकर जईसे बहुत sapportive... बोले धापू प्यार से ये हमको धापू बोलते है... धापू तू टेंसन मत ले..जो करना है कर बस खुस रह, क्यूंकि तेरी खुसी में मेरी खुसी एकदम सोलमेट वाली फीलिंग हुई हमको हमको अपनी सरतो पर ही जीना पसंद है ..खाना बनाते- बनाते हम खा लेते, काहे काऊ के इंतज़ार में बईठे? आऊरत के हेलथ का धयान उसे खुद रखना होगा के नहीं? आऊरत खुदई से प्रेम नहीं करती है आउर सबन फिकर में लगी रहती है जे बतावो, अगर तुम खुदई की कदर नहीं करोगी तो दुसरा तुमाई कदर काहे करेगे?

सब सन्ति से चल रा था कि
एक दिन सुब्बे - सुब्बे हमाय "ये" यानी संकर थोड़ी कड़क आवाज में हमसे बोले
"धापी तुमाय नखरे बहूते भारी पड़ रये, अब उठाए न जा रये"
हम तूरंत समझ गए कि जिनको घुट्टी पिलाई गई... वरना जे हमसे कबी कच्छू नहीं बोलत रहे
बस्स... हमाए मूड का बलब भक्कक से फ्यूज
हमने साफ कह दई-
"हमाय नखरे जु ही रहेंगे, तुम लोग अपना सटेमिना बढ़ावो। जब आदमी नखरे कर सकत तो आऊरत काहे नहीं कर सकत? उसका भी मन करता कोई उसकी मान मनुहार करे, प्रेम जतावे।"
अब जे चुप्प...
आउर इहा सोसल मीडिया पर आके हमको मालिम पड़ी की... जे तो फेमीनीज़म है

तो भैया हम तो बचपन से फेमीनीज़म कर रहे थे, आउर हमको पता भी नही चला भाइयो आज़ादी का हक जितना तुमको है उतना ही हम आऊरतन को भी है आउर जो आऊरत दूसरी आऊतन ने रोक- टोक करती हैं उनको शीसा दिखाबो... क्यूँकि जब तलक हम एक दूसरे को बहिन मान के सपोट नहीं करेगीं हमाई उननती कईसे होगी?

तो फेमीनीज़म करो, बराबरी का हक लेकर रहोजूरूरी नहीं धापने पर ही तुम कछु बोलो, कोऊ तुमको कछु फालतू बोले तो तूरंत ऊकी बोलती बंद कर देयो कब सादी करनी है, किससे करनी है, कब बालक पैदा करने है, नौकरी करनी या नहीं, सबई फैसला करन का अधिकार है तुमाय पास। आउर जो अपने अधिकार छोड़ देता उका इसवर ही मालिक है।

आसा है आपको हमाई बात समझ, आउर पसंद आई होगी तो अब अपना फरज निभाओ, लाइक करो, सेअर करो आउर अपने हक के लिए लड़ना सीखो वो क्या है न औरतन का खुस रहना समाज आउर देस के लिए बहुते ज़ुरूरी है

जय हिन्द 

-धापी देवी ©




Even A Child Knows -A film by Era Tak