Friday 25 July 2014

पौधा .. A short Story by Era Tak

 पौधा
एक कोमल नन्हा प्रेम का पौधा रोपा था, दोनों ने मिल कर । दोनो उसमे पानी डालते, उस गमले में उग आई खर पतवार को वक़्त -वक़्त पर साफ़ करते रहते।
लेकिन फिर लड़का लापरवाह हो गया वक़्त नहीं था उसके पास लड़की अकेले संभालने लगी उस पौधे कोवो अपने कई ज़रूरी काम छोड़ देती पर पौधे का हमेशा ध्यान रखती
लड़का वैसा ही बना रहाकाम बहुत था उस पर और प्रेम करने के लिए सहूलियत के दायरे से निकलना उसकी फितरत में  थाउसे सिर्फ अपने सपने दीखते थे एक दिन लड़की का धैर्य चुक गयाउसने पौधे का ध्यान रखना छोड़ दिया ,पौधा सूखने लगा दूरियां बढ़ने लगी और एक ख़ामोशी पसरने लगी उनके बीच !…...
        एक दिन लड़के को अकेलेपन का अहसास हुआ ,उसने वक़्त निकाला,सोचा आज पौधे की देखभाल की जाये ।लेकिन ये क्या .. !
पौधा तो सूख चुका थाउसने खाद डाली ... पानी डाला ।पर फिर पौधे में जीवन लौटादोनों बहुत दुखी थे ! 
पौधा सूख गया था और जीवन दोबारा नहीं आता ..लड़की बहुत दूर जा चुकी थी

इरा टाक ~ET~

Thursday 24 July 2014

मैं घोर फेमिनिस्ट नहीं हूँ , मैं स्त्री पुरुष बराबरी की  समर्थक हूँ बचपन से एक स्त्री को वही अधिकार और परवरिश मिले जो एक पुरुष को दी जाती है,दोनों को संतुलित तरीके से जीवन मूल्यों  को समझाया जाये ,सेक्स एजुकेशन भी एक सही वक़्त पर दी जाये ताकि  बड़े होते हुए बच्चे अपनी उत्सुकताओ का हल अपने तरीके से  न खोजें, और इस खोज में वो किसी अपराध का शिकार न हो जाएँ या खुद कोई अपराध न कर बैठे    मर्यादा दोनों के लिए तय हो ,  नए नियम और नए नैतिक मूल्य तय हों जो वर्तमान समय के हिसाब से हों न कि पुरातन काल के !
हो सकता है कई लोग इसे   गलत माने. पर मैं पहनावे में शालीनता की समर्थक हूँ ,स्त्री हो या पुरुष कपडे दोनों को शालीन पहनने  चाहिए ,अंग प्रदर्शन करते हुए फ़ूहड़ कपडे पहनने वाले भले ही खुद बलात्कार  का शिकार न हों पर इसका दूरगामी प्रभाव भी बलात्कार का कारण है , क्यूंकि  कुंठा का विस्फोट अक्सर कमज़ोरों  पर होता है ,बच्चिओं पर होता है, यदि आज की स्त्री कहती है कि मैं केवल एक शरीर नहीं हूँ,बच्चा पैदा करने की मशीन नहीं हूँ , मेरा अपना अस्तित्व है तो फिर अपना शरीर  क्यों दिखाती है ?अपना टैलेंट और स्किल्स दिखाएँ,अपनी शिक्षा और नॉलेज का सही दिशा में इस्तेमाल करते हुए अपना करियर बनाये !
      जैसा मैंने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा अश्लील साहित्य और फिल्मों पर रोक लगे ,क्यूंकि इनका दुष्प्रभाव बलात्कार  का मुख्य कारण है,टीनेजर्स के मोबाइल में पोर्न क्लिपिंग्स  भरी हुई हैं , छुपा कर और कई बार आपसी सहमति पर पोर्न mms बनाये जा रहें है, जिन्हे बाद में इंटरनेट पर लोड कर दिया जाता है ,जिसके चलते बाद में कितनी ही लड़कियां सुसाइड जैसा कदम उठाने पर मजबूर हो जाती हैं  
   बचपन से ही पेरेंट्स बच्चों को सर चढ़ा  लेते हैं,( सब की बात नहीं)  नैतिक शिक्षा देने का सही समय बचपन है उस समय लाड प्यार से फुर्सत नहीं मिलती ,बच्चे की हर मनमानी इच्छा पूरी की जाती है और जब टीनएज में उस पर अंकुश लगाया जाने लगता है तो वो भडकता है काबू से बाहर हो चुका होता है  ,हीरो हीरोइन्स रोल मॉडल होते हैं ,जो सिर्फ अपना व्यवसाय कर रहे हैं ,ये अतिस्वछंदता का माहौल भष्ट  कर रहा है ,आज़ादी का मतलब कभी गलत आदतें नहीं होता ,और एक सफल और संतुलित  जीवन जीने के लिए अनुशाषन बेहद ज़रूरी है,नियम  और कानून जो भी हों उनका पालन डर और मजबूरी समझ के नहीं बल्कि फ़र्ज़ समझ के होना चाहिए  

Wednesday 23 July 2014

" मेरे प्रिय" (My Second Poetry book )खरीदने के इच्छुक मित्र व पाठक बोधि प्रकाशन Bodhi Prakashan के इस नंबर 09829018087 पर किताब का नाम और अपना पूरा अड्रेस Sms कर के पुस्तक VPP से प्राप्त कर सकते हैं या आप लोग bookadda.com ऑनलाइन भी आर्डर कर सकते हैं ... धन्यवाद ~ET~









Tuesday 22 July 2014

बलात्कार को रोकना है तो सबसे पहले अश्लील साहित्य , अश्लील फिल्मों ( porn Films ) पर तुरंत रोक लगाई जाये... अश्लीलता और अति स्वछंदता दिमाग को भ्रष्ट करती है...जो इस अश्लीलता के आदी हो चुके हैं ...बिना किसी रोक टोक और भय के इसका आनंद ले रहे हैं वो मौका मिल जाने पर बलात्कार नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे ... कैसे जानवर होते हैं जो सामने वाले को इंसान नहीं समझते ...भोगा और मार दिया.... 
इन सब चक्करों में पड़ के कितने टीनएजर्स और युवा बर्बाद हो रहे हैं ,अपनी गलत आदतों को पूरा करने में ऐसे जाल में फंस रहें है, कि वापस निकल पाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है , सेक्स सृजन करने के लिए है ,लेकिन अब ,क्रूरता और अपराध का पर्याय हो गया है ...अब इसके लिए कठोर कानून होना चाहिए ...लोग तय नहीं करेंगे उन्हें क्या देखना है , ये तय करेगा कानून ... क्यूंकि हर कोई इतना समझदार नहीं कि अच्छा बुरा तय कर पाये ये एक ऐसा कीचड है कि जो एक बार धसा वो धसता ही जाता है ...अगर ऐसा हो जाये तो काफी हद तक सुधार होगा ... ~ET~

कहानी अभिशप्त ... by Era Tak

 अभिशप्त

     विशाल को गायब हुए काफी समय हो चुका था,अपने से आधी उम्र की लड़की को लेकर फरार था, लड़की भी अपने पति को छोड़ के गायब हुई थी पुलिस में रिपोर्ट हुई ,पर कोई सुराग मिला कई दिनों तक लड़की के रिश्तेदारों का आना और धमकाना लगा रहा आस पड़ोस वाले सहानुभूति जताने जाते  घर पर हाहाकार मचा हुआ था
 "
 "कुछ करा दिया होगा, हमारे लड़के पर वरना ऐसे कैसे चला जाता ? लड़की को सोचना चाहिए था ,बाल बच्चों वाला घर उजाड़ गयी डायन !" विशाल की माँ सबसे एक ही बात रो रो के कहती
   
       लोगो की  यही मानसिकता होती है, अपनी औलाद की गलती कभी स्वीकार नहीं करेंगे ,उसका इल्ज़ाम भी दूसरे के माथे ड़ाल देंगे
विशाल की पत्नी पूनम परेशान थी  ,किससे अपनी तकलीफ कहे .. वो अपमान और नकारे जाने का दर्द झेल रही थी दो बच्चे छोटे थे ,वो समझ पाने की स्थिति में नहीं थे कि उनके पापा अचानक कहाँ गए?
सास से तो उसकी बोलचाल पहले भी अक्सर बंद ही रहती थी ,अब तो और ताने मिलते थे
 "
 "बाँध नहीं सकी अपने आदमी को ..! .परेशान करती थी, इसलिए चला गया अगर घर में औरत प्यार दे ,तो मज़ाल आदमी बाहर मुँह मारे "

    परेशान होकर मायके चली आई  मायके में पैसे की कोई कमी नहीं थी ,पूनम ने भाई से वही उसके बच्चो का एडमिशन कराने को कहा ,पर दो महीने बाद भी उसके बच्चे घर पर ही थे , भाभी खिंची खिंची सी  रहती और भतीजा उसके बच्चो को खूब पीटा करता था ,अब माँ बाप भी ज़्यादा दखल नहीं देते थे
एक दिन उसने भाभी को कहते सुना   "कुँवर सा भाग गए  तो हमारी क्या गलती ..पूरा दान दहेज़ दे कर विदा किया था  अब वही रहे ,पूरा हक़ है नन्द बाई सा का ...यहाँ कब तक रहेंगी ,बाबू की पढ़ाई भी डिस्टर्ब होती है "
और घर में सभी उनसे सहमत थे ,सो पूनम  वापस ससुराल लौट आई,मायके की घुटन अब उससे बर्दाश्त नहीं होती थी ।अपने जब ताने मारते हैं, तो सहन करना और भी मुश्किल हो जाता है।
वो बी पास थी, पर ज्ञान तभी काम आता है, जब उसका उपयोग हो ,वरना मिट्टी हो जाता है कई सालों से घर में रही थी ,बाहर निकलने की आदत कभी नहीं रही ,डर लगता था ज़माने से , ज़्यादा घुलने मिलने का स्वभाव नहीं था अब तो और खामोश हो गयी थी घर के काम निपटा के अपने कमरे में घुस जाती .जब बच्चे स्कूल से जाते तो उसके मुँह से थोड़ी बहुत आवाज़ निकलती

     ससुर की पेंशन के भरोसे घर चल रहा था तंगी होने लगी , बच्चों  की फीस भी जमा करनी थी सो विशाल का पुराना कंप्यूटर बेचा ,मुश्किल से तीन हज़ार रुपये मिले, सास ने स्टोर में जाके कुछ और पुराना  बेकार सामान खंगाला, पर  सामान बेच कर कहीं घर चल पाता है?
 विशाल गाड़ीमोटर साइकिल  सब बेच गया था ,वो तो शुक्र है कि घर उसके नाम नहीं  थावरना आज सब सड़क पर होते घर बड़ा था पर रोजमर्रा की ज़रूरतों के लिए पैसा चाहिए काफी विचार करने के बाद घर का ऊपरी हिस्सा किराये पर उठा दिया गया ,थोड़ा किराया आये तो कुछ काम चले घर के बाहर काफी जगह खाली पड़ी हुई थी जिस पर  कमरे बनाये जा सकते थे पर पैसा नहीं था  सास ने वहाँ  सब्जियां उगानी शुरू कीजितना घर में हो जाये अच्छा  ,कुछ तो बचत होगी 
ससुर कहते "अब उसका क्या भरोसा कब लौटे ..तुम कुछ काम करो.. कमाना सीखो ,नहीं तो घर में ट्यूशन ही ले लो ..हम भी आखिर  कब तक के हैं ,बहु  थोड़ा हिम्मत करो "
सास को भी दया आती आखिर गलती तो उनके लड़के की थी ,बहु से भले ही  हो पर पोतों से तो उनका गहरा लगाव था ,उनकी दुर्गत होते देख वो पीड़ा से भरी रहती ,बड़ी तकलीफ होती मन मेंजीवन की शाम में एकलौता लड़का भारी दाग लगा गया ,एक बार भी उसने परिवार का विचार नहीं किया .. प्यार में ,नहीं!  इसे प्यार कहना ठीक नहीं होगा ,ये तो सिर्फ वासना और खुदगर्जी है अपने से १२-१५ साल छोटी लड़की के साथ सबंध बनाना और फिर बाद में सब तबाह कर के गायब हो जाना ,कोई इस तरह कैसे कर सकता हैसच में इंसान का मन समझ पाना बहुत मुश्किल होता है और कई बार वो खुद अपना मन नहीं समझ पातासिर्फ अपनी खुदगर्जी के चलते उसने अपने घर के  लोगो का जीवन नरक जैसा कर दिया था ,उसके साथ गयी लड़की के परिवार ने लड़की को मारा हुआ मान लिया थाप्रेम कभी इतना खुदगर्ज़ नहीं हो सकता ,वासना बड़े अपराध करा देती है और फिर उस अपराध को छुपाने के लिए और बड़े अपराध हो जाते हैं 
पर पूनम  ने अपनी किस्मत से लड़ने का कोई  प्रयास नहीं किया ,वो उसी हाल में रहना चाहती थी     पूनम  जवान थी ,खूबसूरत थी ,पढ़ी लिखी थी ,चाहती तो हिम्मत कर के आगे पढाई कर सकती थी साथ ही साथ घर में पढ़ाने का या कोई भी छोटा काम शुरू कर सकती थी, पर पता नहीं क्यों कई औरतें अपने आत्मस्वाभिमान को कभी जगा ही नहीं पातीसारी उम्र घर की चारदीवारी में गुज़ार देती हैं ,कितना कुछ जीवन में कर सकती हैं , पर नहीं शायद बचना चाहती हो! ज़्यादा काम से, भाग दौड़ से, थकान सेपर दूसरों पर निर्भर हो कर, घर पर पड़े रहने में क्या थकान नहीं होती होगी ? क्या थकान और भय, आत्मसम्मान पर भारी होता है ?
वो सब रात दिन मर मर के जी रहे थे  ,कुछ तकलीफें मरने के साथ ही खत्म होती हैं ।घर में श्मशान सा माहौल  रहता है ,बच्चे भी मज़बूरी समझ के पाले जा रहे हैं ।विशाल के माँ बाप बस मौत से कुछ राहत के इंतज़ार में दिन काट रहें हैं ,गलती उनकी कुछ भी नहीं थी पर शर्म से उनका लोगो से मिलना जुलना कम हो गया है
     

      साल बीत चुका है ,विशाल का सुराग मिल चुका है ,कुछ सुलह और लेन देन हो गया है, तो लड़की वालो ने केस वापिस ले लिया ,अब उसकी  मज़बूरी हो गयी है ,अपने पाप को उम्र भर ढ़ोना।वो रात दिन घुटता है ,सारे दोस्त ,काम पहचान छूट गयी।वो लड़की जो उसके प्यार  में अंधी होकर पति को छोड़ कर भागी थी, अब रात दिन कलेश करती है ,पर वापस भी कैसे लौटे पहले ही अपने  आप भागी थी सब उसे मारा मान चुके ,उसके लिए वापस लौटने के सारे दरवाजे बंद हैं  केस वापस ले लिया यही अहसान है वरना जेल जाना पड़ सकता था..
   अब उम्र भर वो दोनों एक गुमनाम सी ,क्लेश भरी ज़िन्दगी जीने को अभिशप्त  हैं क्यूंकि ये ज़िन्दगी उन्होंने खुद चुनी या हो सकता है इस घुटन से मुक्ति पाने को कोई नया अपराध करें
 

 पूनम  उम्र भर अपना नसीब कोसते हुए दूसरो पर निर्भर रहने को अभिशप्त है, क्यूंकि उसने भी ये ज़िन्दगी खुद चुनी ।सिन्दूर लगाये ,बिछिया,चूड़ियाँ पहने वो किस रिश्ते का तमगा लिए दिन बिता रही है ?बच्चे धीरे धीरे बड़े हो रहे हैं, एक नीरस वातावरण में जिसमे सिर्फ अवसाद और निराशा है ,वो भी अपनी ज़िन्दगी की राह थोड़ी समझ आने पर चुन लेंगे ,आखिर सब अपनी समझ के हिसाब से अपनी ज़िन्दगी चुनते हैं

इरा टाक ( सर्व अधिकार सुरक्षित ) ~ET~ 
चित्र : इरा टाक 

Even A Child Knows -A film by Era Tak