दिखावा लाइव
कहानी शुरू करने से पहले मैं पाठकों को बता दूँ कि इस कहानी के सभी पात्र असली हो सकते हैं , आपके आस पास पाए जा सकते हैं !
एक शहर के किसी इलाके में एक बड़ी सी बिल्डिंग थी, उसमें कई फ्लैट्स बने हुए थे ! एक लम्बा सा गलियारा था और सभी फ्लैट्स के दरवाज़े उसी में खुलते थे, जैसे मुंबई की चॉल में होता है, तो जाहिर है कि कभी छोटा और कभी बड़ा विवाद होने की संभावनाएं लगातार बनी रहती थी। कभी किसी के घर से गन्दा पानी दूसरे के घर के दरवाज़े तक चला जाता , तो कभी एक फ्लैट में काम करने वाली बाई दूसरे फ्लैट के सामने कूड़ा ड़ाल आती, कभी कपडे सुखाने को लेकर, तो कभी रास्ता घेरने को लेकर लगातार चलते विवाद बिल्डिंग में रौनक बनाये रखते थे , जब विवाद बहुत बढ़ जाता तो कई बार सड़क चलते लोगो को बीच बचाव के लिए आना पड़ता।
कहानी शुरू करने से पहले मैं पाठकों को बता दूँ कि इस कहानी के सभी पात्र असली हो सकते हैं , आपके आस पास पाए जा सकते हैं !
एक शहर के किसी इलाके में एक बड़ी सी बिल्डिंग थी, उसमें कई फ्लैट्स बने हुए थे ! एक लम्बा सा गलियारा था और सभी फ्लैट्स के दरवाज़े उसी में खुलते थे, जैसे मुंबई की चॉल में होता है, तो जाहिर है कि कभी छोटा और कभी बड़ा विवाद होने की संभावनाएं लगातार बनी रहती थी। कभी किसी के घर से गन्दा पानी दूसरे के घर के दरवाज़े तक चला जाता , तो कभी एक फ्लैट में काम करने वाली बाई दूसरे फ्लैट के सामने कूड़ा ड़ाल आती, कभी कपडे सुखाने को लेकर, तो कभी रास्ता घेरने को लेकर लगातार चलते विवाद बिल्डिंग में रौनक बनाये रखते थे , जब विवाद बहुत बढ़ जाता तो कई बार सड़क चलते लोगो को बीच बचाव के लिए आना पड़ता।
निम्न मध्यम वर्ग, मध्यम मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग तीनो श्रेणियाँ इस बिल्डिंग में स्थापित
थीं, इसलिए कई बार वर्ग विवाद भी ज़ोर पकड़ लेता ! साथ ही साथ बिल्डिंग पर
गुटबाज़ी भी हावी थी , इसके चलते त्यौहार तो सामूहिक रूप से
मनाये जाते पर तीन से चार जगह अलग अलग !
बिल्डिंग की पानी सप्लाई की मशीन खराब हो
जाने पर आरोप प्रत्यारोप के चलते फ्लैट वासी दो दिनों तक सड़क किनारे लगे सरकारी नल
से पानी लाते, दो दिनों बाद कही जा कर सहमति बन पाती और
तीसरे दिन पानी की सप्लाई सुचारू हो पाती ।
इसी बिल्डिंग
में एक परिवार रहता था, श्रीवास्तव परिवार ! पति ,पत्नी और लड़के की चाह में हुई चार
लड़कियां , वर्तमान में केवल तीन लड़कियां ही साथ थी , एक लड़की शादी कर के जा चुकी थी , पर ससुराल से प्रताड़ित हो कर उसका आना जाना लगा ही रहता था !
घर के मुखिया
मिस्टर श्रीवास्तव जिन्हे बिल्डिंग वालो ने के के नाम दे रखा था , के. से कल्लू और के. से ...., माफ़ कीजियेगा मैं अपशब्दों के प्रयोग से
इस कहानी में बचना चाहती हूँ ! तो के के जी एक ड्राफ्ट मैन थे , जो खुद को बड़े फक्र से इंजीनियर कहते थे, उनका सारा दिन नक़्शे बनाने और कलेश करने
में बीतता था, वैसे कहा जाए तो वो घर में मौजूद चार
स्त्रियों से दबे हुए थे और अक्सर अपने होने का अहसास दिलाने को चीखते चिल्लाते थे , परन्तु उनकी आवाज़ नकारखाने में तूती की
तरह दब कर रह जाती !
यूँ तो इस
परिवार के सभी पात्र विचित्र थे , पर विचित्रता की धुरी मिसिस श्रीवास्तव
पर ही टिकी हुई थी। मिसेस श्रीवास्तव जो मुश्किल से दसवीं पास थी, अक्सर पड़ोसियों से झगड़ते हुए खुद को बीएड बताती !
" अगर आज नौकरी कर रही होती तो पच्चीस हज़ार रुपैया कमा रही होती , तुम लोगन को तो बात करन की तमीज नहीं , घर परिवार की वजह से मैंने लगी लगाई नौकरी छोड़ दी !"
" अगर आज नौकरी कर रही होती तो पच्चीस हज़ार रुपैया कमा रही होती , तुम लोगन को तो बात करन की तमीज नहीं , घर परिवार की वजह से मैंने लगी लगाई नौकरी छोड़ दी !"
नौकरी कर रही
महिलाओ से उन्हें खास रश्क था, वो अक्सर ऐसी महिलाओ को कामचोर कहतीं जो
घर और बच्चों की ज़िम्मेदारियों से बचते हुए बाहर हँसी- ठठे में अपना समय बिताना चाहती हैं !
लड़कियों की पढाई
से ज़्यादा दूसरे घर भेजने पर ज़ोर था , हर शादी ब्याह के न्योते पर कपड़ो की
विशेष रूप से खरीदारी होती , शादी निपटते ही ये कीमती कपडे गठरी में
घुसा दिए जाते ,ये गठरी सारे कपड़ो की पनाहगाह थी , जहाँ कपड़ों को तभी बाहर की हवा खाने को मिलती जब कही बाहर जाना होता, दबेकुचले से कपडे...जिन बार तीन बार प्रेस करने के बाद ही
पहने काबिल बनाया जा सकता था ।
शादी में जाने से पहले इतनी भारी मात्रा
में मेकअप किया जाता कि दूल्हे को दुल्हन पहचानने में भ्रम हो जाए ! मिसिस श्रीवास्तव को रात दिन यही चिंता रहती कि सारी लड़कियों के लिए दहेज़
जुटाना है , के के को वो इस बात पर ताना अक्सर देतीं ,
"लड़कियां पैदा कर के डाल दई, अब हाथ पैर मारो , ऑफिस के बाद ओवरटाइम काहे नहीं करते ? ऑफिस में कौन खेत जोतते हो ,जो घर आते ही पसर जात हो !"
बिल्डिंग के सभी घरों के अंदर की बातों
की सूचना इस परिवार के साथ मात्र एक घंटा बिताने पर सहज उपलब्ध हो सकती थी, साथ ही साथ वो अपनी एक औलाद के अस्पताल में बदल जाने की घटना भी बड़े हृदय
विदारक ढंग से सुनाती, उनका मानना था कि उनकी तीसरी औलाद लड़का
थी, जो अस्पताल वालों ने बड़ी चालाकी के साथ बदल दी और उन्हें लड़की थमा दी , इस बात पर कई लोगो ने उन्हें डीएनए टेस्ट करवाने की सलाह भी दी थी , जिसे उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया, पर उनकी इस बात पर कई बार इसलिए विश्वास करने का मन कर जाता
क्यूंकि उस लड़की जिसका नाम पम्मी था , का स्वभाव पूरे घर से भिन्न था , उसकी रूचि पढाई में अधिक थी और वो कामचोर भी बहुत थी। जबकि बाकी लड़कियां घर के
हर काम में कुशल थीं , पर पढाई में उनके हाथ तंग थे।
श्रीवास्तव परिवार की मेहमान नवाज़ी के सब कायल थे
, अगर उन्हें किसी
से किसी भी तरह के
मतलब हल होने की सम्भावना नज़र आ जाती,
तो
वो सामने कालीन की तरह बिछ सकते थे
! इतना आदर इतना सत्कार कि एक बार को तो ऑंखें भर आये
! मिसिस श्रीवास्तव इतना मनुहार करती कि पेट भरा होने के बाबजूद भी
दो समोसे खाने को मज़बूर हो जाना पड़ता ।
काफी जतन के बाद उनकी बड़ी लड़की रचना के
लिए एक रिश्ता आया , रिश्ता आते ही बिल्डिंग के कई लोगो को
इसकी जानकारी दी गयी, इस हिदायत के साथ कि बात को गुप्त रखा
जाए .. दो दिन में बिल्डिंग में सभी को पता चल
चुका था , लड़के और उसके परिवार के बारे में बढ़ा चढ़ा
कर बताया जा रहा था , ख़ास रिश्तेदारों को इस जानकारी से दूर
रखा गया था, मिसिस श्रीवास्तव का मानना था, कि अच्छा लड़का होने पर वो रिश्तेदार भांजी मार सकते हैं, जिनकी लड़कियां शादी लायक हैं !
ख़ुशी का माहौल था , तैयारियां ज़ोरों पर थी, बाजार के रोज़ तीन चार चक्कर तो लग ही
जाते होंगे ! बाकी लड़कियां जीजू - जीजू कर के बौराई हुई थी ,
" जीजू प्राइवेट कंपनी में मैनेजर हैं , एकलौते लड़के हैं, अपना मकान है , पांच किरायेदार हैं ! बहन सरकारी नौकरी में है , बहनोई बैंक में अफसर है... जीजू, ये जीजू वो…. जीजू ….."
पता नहीं क्यों
पर ये "जीजू" शब्द मुझे बड़ा इर्रिटेटिंग लगता है !
अब रात दिन जीजू पुराण का वाचन चल रहा था , हम भी पडोसी होने के नाते अच्छे श्रोता का किरदार निभा रहे थे , फिर वो दिन तय हो गया जब "जीजू" अपने लावलश्कर के साथ लड़की देखने और शादी पक्की करने पधारने वाले थे ! तैयारियां युद्ध स्तर पर चलने लगीं, आनन फानन जरीना बानो , जो उनकी दायीं बगल की पड़ोसन थी , से कालीन , क्राकरी जबरन मगा ली गयीं, एक और पडोसी के घर से गहरे
नीले रंग के रेशमी परदे जिन पर गुलाबी रंग के फूल बिखरे हुए थे, आनन फानन उतरवा लिए गए , हमारे घर से भी कुछ कीमती शो पीस उठवा लिए गए थे , किसी भी पडोसी ने दबी हुई आवाज़ में विरोध जताना चाहा , तो उसे लड़की की शादी का वास्ता और कन्या दान महादान जैसे प्रवचन देकर गंभीर
रूप से इमोशनली टार्चर किया गया ।
बस फिर क्या था दो कमरों का उनका दड़बा एक
शानदार राजमहल सा लगने लगा, इस नए अवतार को देखने के लिए पड़ोसियों को
बुलाया गया और चाय नाश्ते से उनकी भरपूर खातिर की गई ।
"जीजू " आज आने वाले थे , सुबह पांच बजे से ही बर्तनों की खटर -पटर और श्रीवास्तव परिवार की बटर -बटर चालू हो गयी , टोह लेने को कई पड़ोसिनें मॉर्निंग वाक के बहाने दलान में टहलने लगीं , तो जानकारी मिली कि महाभारत चालू था , एक तरफ चार स्त्रियां और दूसरे मोर्चे पर
के के ! हालात
बिगड़ते देख कुछ रुआबदार पडोसी बीच बचाव को आये , मामला शांत करने तक झगडे की असली वजह का पता नहीं चल पाया था।
बरसात शुरू हो चुकी थी
, बिल्डिंग के सामने एक तालाब बन गया था
, जो बिल्डिंग के जल महल होने का भ्रम
दे रहा था, लगभग शाम के चार बजे एक लाल घिसी हुई
मारुती 800 बिल्डिंग
के सामने रुकी , दबे फंसे से सात लोग गाडी से बाहर निकले और राहत की सांस ली, ऐसी सी एक सांस शायद मारुती ने भी ली होगी ! मारुती की लैंडिंग इसी छोटे तालाब में हुई जिससे जीजू एंड फैमिली की चरण पादुकाएं पानी और कीचड से लथपथ हो गयी !
मिसिस श्रीवास्तव जो कि एक बजे से ही बालकनी में टंगी हुई थी
, तुरंत हरकत में आ
गयीं , उनकी दो लड़कियां फूल मालाएं ले कर नीचे दौड़ पड़ी
, मिस्टर श्रीवास्तव उर्फ़ के के शर्ट के बटन बंद करते हुए , सर खुजाते हुए फ्लैट के दरवाज़े पर प्रकट हुए
, मिसिस श्रीवास्तव तुरंत पड़ोसियों को इकठ्ठा करने को अपनी कामवाली को दौड़ाया।
जीजू जिसका नाम विशाल था , विशाल तो नहीं पर बांस जैसा लम्बा ज़रूर था
! रंग गोरा,
गाल पिचके हुए ,शक्ल से वो ऐसा आम लगता था,
जिसका अभी अभी रस चूस के छोड़ दिया गया हो
! आदर सत्कार के बाद
"जीजू " के
पिता जी जो काफी मरियल थे और खाकी रंग के सूट के अंदर स्थापित थे ,घर का मुआयना करते हुए
"जीजू" की
बहन की तरफ देखते हुए गंभीरता पूर्वक सर हिलाया....
बहन ने भी गंभीरता से सर हिलाया और बोली " लड़की तो ठीक है , वैसे तो हमारे पास कोई कमी नहीं पर आप अपनी लड़की को कुछ तो देंगे
... ! अभी छत पर एक कमरा बनवा रहें हैं,
भाई की शादी को
, उसमें ही दो -ढाई लाख का खर्च है,
आपकी लड़की के आराम को ही बनवा रहे हैं !"
"वैसे भी आपके घर की शानो शौकत देख कर ढाई-तीन लाख कैश कोई बहुत बड़ी रकम नहीं !"
"जीजू"
का बहनोई भुने हुए काजू लेते हुए बोला...
"कमरे में कुँवर साब भी तो रहेंगे..."
के के जिनको पहले से ही
घर का खर्च चलना मुश्किल हो रहा था,
एकदम से भड़क गए
"अरे...बेटी इतना कहाँ से हो पायेगा , हमारी इसके बाद दो लड़कियां और भी हैं.."
मिसिस श्रीवास्तव ने मामले को सँभालने की कोशिश की
कुछ सेकंड कमरे में तनावपूर्ण शांति पसर ही गयी थी,
कि इतने में "जीजू"
के सबसे छोटे रिश्तेदार यानी भांजे ने कालीन पर सूसू कर दी,
जिस पर थोड़ी देर पहले ही जीजू ने दही बड़ा फैलाया था
, मिटटी तो थोड़ी देर पहले ही चरण पादुकाओं से लग चुकी थी
!
ज़रीना बानो जिन्हे रसोई में बिरयानी बनाने के काम में जुटा रखा था, उनका
दिल अपने कालीन की दुर्गति देख कर ज़ार ज़ार रो रहा था । कालीन को साफ़ काने की जद्दोज़हद में कुछ देर सभा विसर्जित हो गयी, जीजू और उनके रिश्तेदार बाहर निकल कर बरामदे में आ गए।
मिसिस
श्रीवास्तव अपने कुछ पड़ोसियों को "जीजू" के मारुती 800 में आने की सफाई दे रहीं थी ...
"लल्ली ,
इन पर इन्नोवा
है ,जो अचानक एक दोस्त मांग कर ले गया ,कल शाम को वापस आने वाला था पर आया नहीं ,जे कारण इन्हे सुबह निकलने में देर हुई
गयी ! इनकी जीजी की कार भी सर्विसिंग को गयी थी, ये तो पीछे खड़ी रहती है , फिर कोई रास्ता न देख मारुती की शरण लेनी पड़ी !"
इतने में बबली जो की घर की सबसे छोटी और
चंचल लड़की थी, एक बड़े थैले में में ढेर सारे समोसे और
गुलाब जामुन लेकर हांफती हुई कमरे में दाखिल हुई , रसोई में चाय उबल रही थी , सभा फिर से जम गयी !
थोड़ी देर इधर
उधर घूमने के बाद बात फिर दहेज़ पर आ कर अटक गयी !
जीजू की माँ जो
अब तक सिर्फ दर्शक की भूमिका में थी , अब मंच संभालने को उतारू दिखाई दीं , उन्होंने गला खखरा तो जीजू एंड फैमिली एकदम चुप हो गए...
" भाभी जी ,
हमारा विशाल
बहुत बड़ी कंपनी में है , रिश्ते तो बहुत आते रहते हैं , अब जहाँ संयोग लिखा होगा वही हो जायेगा ! नौकरी वाली भी कई लड़कियां मिल रहीं है , जो अच्छे पैसे वाले घरों की हैं , ज़िन्दगी भर कमाएंगी भी .. आपकी रचना तो अभी बीएड भी नहीं है..."
आवाज़ में थोड़ी
रुखाई लिए ,उन्होंने रचना के लिपे- पुते चेहरे को घूरा ।
खैर रात दस बजे
जीजू एंड फैमिली मिठाई और तोहफों के साथ विदा किया गया !
उन के जाते ही रचना जो अभी तक गौ माता सरीखी बनी हुई थी, तुरंत चंडी के रूप में आ गयी !
" मैं तो विशाल से ही शादी करुँगी , बड़ी दीदी की शादी में पांच लाख खर्च करे थे तुम लोगन ने ! अब मेरी शादी में तीन लाख में ही तुम्हारे हाथ पैर फूलन लगे , कितना बुरा लगा होगा उन लोगो को जब दो ढाई लाख में ही तुम लोग मुँह बिचका रहे
थे , जब औकात न है तो क्यों डाल दई इत्ती
लड़कियां पैदा कर कर के ! "
"तोय तो पैदा होत ही मार देते तो अच्छा
होगा , करमजली शादी हुई भी न अभी अबई से तू
ससुराल की सगी हो गई , गलत न कही जिसने भी कही , लड़कियां अपनी न हो सकें !" मिसिस श्रीवास्तव ने गुस्से में इतनी ज़ोर
से दरवाज़ा बंद किया कि नीले रेशमी परदे के कुछ फूल कुचल गए !
एक बार फिर
बर्तनो के पटकने की आवाज़ें आने लगी, बाहर से ये बताना ज़रा मुश्किल था कि इस
संग्राम में कौन कौन किस किस तरफ है , बरहाल टोह लेने वालो की नाईट वाक शुरू हो
चुकी थी !
कई दिनों तक
विशाल उर्फ़ "जीजू" की तरफ से कोई फ़ोन नहीं आया , परिवार के भारी दवाब में आखिर श्रीवास्तव जी ने ही फ़ोन मिलाया
उधर से थोड़ी
रुखाई से बात की गयी , बात का मजमून ये निकला कि उन्हें दो लाख
कैश और बाकी पूरा फर्नीचर , कपडे लत्ते , शानदार शादी चाहिए !
घर में एक बार
फिर से महाभारत छिड़ गया, के के इतना खर्च करने को तैयार नहीं थे
पर स्त्री खेमे में विशाल के नाम पर स्वीकृति बन चुकी थी, वो किसी भी हालत में "जीजू "
को हाथ से नहीं
देना चाहती थीं !
बात फाइनल हो गयी , जैसे तैसे पैसो का इंतज़ाम हुआ, अब जीजू पुराण पूरा ज़ोर पकड़ चुका था !
"जीजू ने दस हज़ार का लहंगा लिया है दीदी
के लिए" , सौ से ऊपर बाराती आएंगे ! बारात में दस कारें और एक बस आयगी "
"जीजू की कंपनी के बॉस भी आएंगे ! जीजू को सब बहुत मानते है....जीजू ..जीजू...."
"जीजू की कंपनी के बॉस भी आएंगे ! जीजू को सब बहुत मानते है....जीजू ..जीजू...."
पड़ोसियों का
सामान जो एक दो दिन को माँगा गया था अब शादी होने तक बंधक बना लिया गया , उसके पीछे उनका ये तर्क था कि कभी भी अचानक जीजू एंड फैमिली आ सकते हैं ! पड़ोसियों के घर दो-
दो चार- चार गुलाब जामुन भिजवा कर सांत्वना दी गयी।
शादी के दिन
अलसुबह ही रचना और छोटी बहनें ब्यूटी पार्लर चली गयी , बाकी पड़ोसियों को काम में लगा रखा था , भाईचारा निभाते हुए सभी बड़े मनोयोग से
लगे हुए थे !
बरात का इंतज़ार
करते करते रात के बारह बज गए , बाद में गिने चुने मेहमानो
की उपस्तिथि में करीब दो बजे जयमाल हुआ ,गिने चुने इसलिए क्यूंकि दिसंबर की भारी
ठण्ड में रात दो बजे तक खुले में ठिठुरते रहने का साहस बिरला लोग ही मजबूरी में
उठा सकते हैं !
रचना जो शाम सात
बजे से भारी भरकम मेकअप और गहनो से लड़ी फदी बैठी थी,
लिपस्टिक खराब
होने के डर से उसने रात दो बजे तक होठ नहीं खोले !
वो अपनी हर
भावना क्रोध ,
आक्रोश, चिड़चिड़ाहट , ख़ुशी इशारों से ही व्यक्त कर रही थी !
सुबह विदाई के
समय जीजू के मामा बारात की बस का किराया मांगने लगे , के के जो पहले से ही कर्जे में थे, एकदम से भड़क गए, गरमा - गर्मी होने पर जीजू एंड फैमिली गुस्से
में सारा सामान छोड़ केवल दुल्हन को ले गए !
मिसिस श्रीवास्तव करुण विलाप कर रहीं थीं
, माहौल भारी हो गया , जीजू एंड फैमिली की बुराई ज़ोरो पर थी !
"बड़े लालची लोग है "
"बड़े लालची लोग है "
दो दिन बाद 'जीजू" को मनाने के लिए शांति वार्ता दल गया, जो बीस हज़ार कैश और शादी का सामान लाद कर भेजा गया !
कुछ दिनों बाद
फिर जीजू पुराण शुरू हो गया'.." जीजू तो दीदी को रानी बना कर रखते हैं !.. सास तो कोई काम करने नहीं देती... जीजू दीदी के लिए डायमंड सेट लाये..जीजू...जीजू..."
कुछ समय बाद एक
दिन जब फ्लैट नंबर चार वाली , फ्लैट नंबर पांच की काम वाली को गन्दा पानी फ़ैलाने पर गरिया रही थी , तो उसे रचना सूजा मुँह लिए गलियारे में नज़र आई ,
बस क्या था
प्रकाश की गति से समाचार फ़ैल गया !
और फिर शुरू हुआ
'जीजू निंदा पुराण "
"हम सोच नहीं सकते थे जीजू ऐसे निकालेंगे ! सारे दिन काम में लगाये रखते हैं, नौकरी भी नहीं करते,,, रोज़ रात में दारू पीता है...रचना दीदी को मारता भी है जीजू...जीजू...ऐसा जीजू वैसा...!
"
कुछ पड़ोसियों ने समझदार बनते हुए समझाया
" भाभी जी हम तो पहले ही कह रहे थे, लड़के वालो के सामने जितना हो उससे भी कम दिखाना चाहिए, आप तो सुनती ही नहीं, पूरा घर राजमहल बना दिया था , ऐसे में उनका मुँह फाड़ना तो बनता ही था !"
" भाभी जी हम तो पहले ही कह रहे थे, लड़के वालो के सामने जितना हो उससे भी कम दिखाना चाहिए, आप तो सुनती ही नहीं, पूरा घर राजमहल बना दिया था , ऐसे में उनका मुँह फाड़ना तो बनता ही था !"
"हाँ ... सही बोल रहे हो भाई साहब ! इन लड़किन की बात में आ गयी , अब से कोई दिखावा नहीं करुँगी ! पहले ही इतना उधार हो गया है इन पर... अब कहाँ से...." कहते हुए उन्होंने सर पकड़ लिया !
जैसे तैसे बिरादरी के लोगो को बुला कर समझौता कराया गया और रचना को ससुराल भेज दिया गया । पर झूठ और दिखावे का अंजाम कभी अच्छा नहीं होता ! लड़की खुश नहीं रही ! रोज़ का कलेश , मार पीट... !
मित्रवत पड़ोसियों ने बाकी लड़कियों को अच्छे से पढ़ाने और आत्मनिर्भर बनाने की सलाह दी ! मिसिस श्रीवास्तव और उनके परिवार ने पूरे मनोयोग से सलाह सुनी और अमल करने का आश्वासन दिया !
सबने सोचा “ चलो अच्छा हुआ , ठोकर खा कर इन्हे अक्ल तो आई !”
डेढ़ दो साल बीत गए , रचना ने एक लड़की को जन्म दिया ,
"जीजू " एंड फैमिली के अत्याचार बढ़ गए हैं !
आज सुबह से ही मिसिस श्रीवास्तव के घर बड़ी सुगबुगाहट है , वह धूप में पापड़ सुखाती हुई तीन नंबर फ्लैट की भाभी को बता रही हैं…
आज सुबह से ही मिसिस श्रीवास्तव के घर बड़ी सुगबुगाहट है , वह धूप में पापड़ सुखाती हुई तीन नंबर फ्लैट की भाभी को बता रही हैं…
" पम्मी के लिए रिश्ता आया है..लड़का इंजीनियर है ...अभी किसी को बोलना मती... बिरादरी में पता लग जायेगा तो लड़का लपक लेंगे.... "
सबसे छोटी लड़की बबली को जरीना बानो के यहाँ चादर और नया कारपेट लेने भेजा है ...
मेरे दरवाज़े पर भी दस्तक हुई .... " भाभी... आपका सिल्वर वाला टेबल लैंप दे दो न ! पम्मी दीदी को देखने जीजू आने वाले हैं! "
- इरा टाक