Tuesday 1 December 2020

लाइव पुराण - inforanjan.com पर प्रकाशित

चेतावनी – कमज़ोर दिल वाले इस आलेख को न पढ़ें क्योंकि गंभीर रूप से आहत होने का खतरा है. अभी तक भारत में कोई बीमा कम्पनी इस खतरे का कोई बीमा नहीं करती! ये व्यंग्य लेख सत्य घटनाओं से प्रेरित है, लेखक ने अपने को जान- माल के खतरे से बचाने के लिए पात्रों के नाम, पहचान और स्थान गुप्त रखा है.

 

 

कोरोना मैया की किरपा से लाइव को बहुत हाइप मिला. Facebook Live, Instagram Live,You tube live, ऑनलाइन क्लास, वेबिनार के नाम पर अत्याचार पिछले कई महीनों से हो रहा है. और इतना हो रहा है कि लाइव सिंड्रोम नाम की नयी बीमारी भी आ गयी. कुछ घनघोर फेसबुकिया- intragram सेलिब्रिटीज और पगलाए You-tubers लाइक, शेयर, सब्सक्राइब नींद में भी बड़बड़ाने लगे हैं. वो तो मोदी जी की किरपा से tiktok ban हुई गवा वर्ना ये tiktokiye तो lockdown स्टार्ट होते ही बौरा गये थे... आपको हम अन्दर की बात बताएं तो कुछ दिनों के लिए बौरा तो हम भी गये थे.

लाइव का धंधा सबसे ज्यादा फेसबुक पर चमका क्योंकि उधर दोस्त मान कर लोग जल्दी कनेक्ट हो जाते हैं...जे मान लो जैसे माता के जागरण में भक्तों के आने पर कोई रोक नहीं होती !

खैर अब समस्या ये कि लाइव न आ पाने वाले लाइव वालों में खोट निकाल रहे हैं ...पर तीसरे- चौथे दिन बिना किसी माफीनामे के खुद लाइव आ रहे हैं. एक दिन हद ही भय गयी... खुद को वरिष्ठ कवि कहने वाले एक सज्जन ने 250 शब्दों की कविता केवल लाइव आने वालों को गरियाते हुए लिख दी थी... और उस पर 40- 50 लोगों ने कमेंट चेप कर समर्थन भी किया था पर जे का .. ठीक साढ़े सात घंटे बाद ही वो नया कुरता पहिने लाइव कर रहे थे. पीछे उनकी किताबों भरी अलमारी नज़र आ रही थी जिसके बारे में वो बड़े गर्व से सबको बता रहे थे. हर किसी का नाम ले ले कर दुआ सलाम कर रहे थे. ये देख कर उनकी वरिष्ठता और कविता की गंभीरता से हमारा विश्वास उठ गया.

पर हम तो लाइव के शुरू से समर्थन में ठहरे. हमारा तो उसूल है... लाइव कोई देखे न देखे करना है तो करना है. कोई हज़ार लिंक भेजे- नहीं देखना तो नहीं देखना है. पर इस बात पर हाहाकार करते हुए खून का पानी नहीं करना.

भारत के संविधान में अनुच्छेद उन्नीस में... अरे फिर गलत समझ गये आप १९ छेद नहीं ... अनुच्छेद.. मल्ल्ब... आर्टिकल 19 में फ्रीडम ऑफ़ स्पीच यानी के बोलने की आज़ादी मिली है, मिली है कि नहीं मित्रों?

फिर काहे लाइव आने वालों को कोस रहे हैं और हैरत की बात ये कि खुद लाइव आने वाले भी लाइव आने वालों को कोस रहे...मल्लब कि सास की तरह बहु में खोट निकालनी है.

किसी को दिक्कत कि इसका कद नहीं है, लाइव आने का, किसी को दिक्कत ये कि इसने सबके नाम लिए पर मेरा नाम जानबूझ के इग्नोर मार दिया

किसी को ये कि हमको अमुक प्रकाशन से बुलावा नहीं आया जबकि हमसे कम काबिल को आ गया .. हमारा गाना लाइव अमुक प्लेटफार्म से नहीं आ पाया.. ऐसी हजारों शिकायतें... वो क्या है न ये कवि, कलाकार, लेखक, गायक मल्ल्ब क्रिएटिव प्रजाति के लोग बहुत ही ज्यादा भावुक किस्म के होते हैं. बात- बात पर इनका दिल दुःख जाता है ...बात मानसम्मान पर आ जाती है.

लाइव पुराण


ये लाइव लोगों को अलाइव नहीं रहने दे रहा है. बैचैन किये दे रहा है. लॉक डाउन में भी तैयार होना पड़ता है. रूम में बिखरे पड़े सामान को सेट करके लाइव लायक कोना arrange करना होता है. घर के सभी प्राणियों को घुट्टी पिला कर चुप कराया जाता है.

एक बार तो एक लाइव करा रही स्वघोषित खबरदार खबर कंपनी का ऑफर हमाये पास भी आया.. बोले दस मिनट के लाइव में तीन लोग कहानी सुनायेंगे... मल्लब कि तीनों के हिस्से तीन मिनट तेंतीस सेकंड आयेंगे, हमने तुरंत गणित लगा के गरना कर ली... तो उन्होंने कहा कि चार मिनट का समय तो संचालक का होगा...अब बचे छह मिनट उसको तीन में बांटों तो हुए दो- दो मिनट... तो भैया तुरंत हमारा ईगो हर्ट हो गया ! हम दो मिनट में कहानी सुनायेंगे ? इतनी देर तो हमको दुआ- सलाम करने में लग जाती है और दूसरी बात कि इन्नी छोटी तो हम कविता भी नहीं लिख पाते...कहानी तो दूर की बात है. इससे अच्छा हम अपने पेज से एक घंटे का लाइव न कर लें ! वो ज्यादा मान- मनोव्वल करते हुए आधे घंटे पर आ गये पर हमने भी साफ़ बोल दिया – न का मल्ल्ब न !

खैर एक मामला तो ऐसा भी हमारी जानकारी में आया जिसमें लाइव में रोज़ नयी साड़ी पहनने के चक्कर में एक नई - नई कहानीकार मैडम पड़ोस की अपनी सहेलियों से साड़ी मांग लातीं और इस चक्कर में आ गयी साड़ी में लिपट कर कोरोना मैया....फिर कुछ दिनों बाद मैडम अस्पताल से गाउन में लाइव करती नज़र आई जिसमें उन्होंने बताया कि उन्होंने कोरोना के अनुभवों पर अपना पहला उपन्यास तैयार कर लिया है.

 कोई मैडम किचन से लाइव कर रहीं तो कोई महाशय बड़ी दाढ़ी बर्तन धोते हुए गाना या कविता अलाप रहे हैं. और लाइव देख रहे गिने चुने श्रोता very nice भाई साहब, भाभी जी किधर हैं जो आप बर्तन घिस रहे, वाह जी बहुत खूब... आप सच्चे फेमिनिस्ट हैं आदि- आदि.

और तो और एक महिला लाइव करते करते भावुक हो गयीं क्योंकि उनके पालतू कुत्ते को डिप्रेशन हो गया था... नहीं नहीं आप गलत समझ रहे वो कुत्ते को डिप्रेशन से दुखी नहीं थी .. असल में डिप्रेस कुत्ते ने पूँछ हिलाते हुए एक कीमती पॉट गिरा दिया था. उस पॉट के टूटने का गम उनको पिछले महीने हुए सातवें ब्रेकअप से कहीं ज्यादा था. तो मित्रों भांति भांति के लोग और भांति भांति के लाइव.

अब एक वर्ग आता है जो जिद पकडे बइठा है कि चाहे कछु हुई जाए पर लाइव नहीं आना है, खाली बैठे- बैठे लाइव आने वालों को गरियाना है बस... अरे कोरोना मैया ने जे गोल्डन चांस दिया है पर.... नहीं ..कौनो कद्र ही नहीं. इतिहास में नाम दर्ज करने की जिद है- "हम कोरोना काल में अलाइव रहते हुए भी लाइव नहीं आये... उसूल हैं हमारे... इधर तो हर उठाईगिरा, गिरता पड़ता लाइव आ रहा ..."

कोई थोडा विनम्र होता है तो कहता है कि सुनने वाला भी तो चाहिए. ऐसे में ये लोग सारे लाइव समाज का बोझ अपने कन्धों पर उठाए नज़र आते हैं.

एक महाशय जो घर से कभी पचास किलोमीटर भी दूर नहीं गये थे वर्ल्ड टूर की टिप देते हुए अपनी ट्रेवल agency पर  कोरोना डिस्काउंट देने की बात कर रहे थे. इसी तरह एक महाशय जो तीन ब्रेकअप के बाद Lockdown में थोड़े फ्री थे, अपनी नयी किताब “How to live a happy married” के बारे में बताते हुए उसको ऑनलाइन लिंक देते हुए खरीदने की गुजारिश करते हुए नज़र आये.

जितना उत्पात ये कोरोना मचाय रहा. उससे ज्यादा ये ऑनलाइन, लाइव वाली दुनिया में चल रहा. लोग कविताओं पर कवितायेँ लिख रहे, एक पुरस्कार प्राप्त सेलेब्रिटी कवि ने तो गुस्से में यहाँ तक कह दिया कि कोरोनाकाल में मच्छरों से ज्यादा कवि पैदा हुए हैं.... पर हम उनकी इस बात से कतई इत्तेफ़ाक नहीं रखते. पति को पत्नी नहीं बोलने देती, सास, बहु का और बहु, सास का जीना मुश्किल किये है... लड़के लड़कियां डेट पर नहीं जा पा रहे हैं. पहले तो कॉलेज का बहाना कर के निकल जाते थे... बच्चे न स्कूल जा रहे हैं न खेलने... घर – घर नहीं प्रेशर कुकर हो गये हैं तो ऐसे में लोग कहीं तो अपनी भड़ास निकालेंगे.

लोग डिजिटल किताबें छाप रहे हैं फिर लिंक पर लिंक भेज खरीदने का दवाब बना रहे हैं. कुकुरमुत्तों की तरह कविताएँ, कहानियां, नावेल, ऑडियो सुनवाने वाली साइट्स आ गयी हैं. पॉडकास्ट पॉपकॉर्न की तरह उछल रहे.. लोग पकौड़े समझ कर तल रहे. सुनो, देखो का शोर चहुँ ओर..कोई कैसे हो जाये बोर...

अरे- अरे ये क्या हम भी कविता में बात करने लगे. उफ्फ्फ ..इसमें दोष हमारा है भी नहीं ये जो हवा है उसमें पोयम वायरस भी फैला हुआ है, जो मास्क लगाने के बावजूद संक्रमित कर देता है.

कोई ऑनलाइन रंग रहा, कोई भाषा सीख रहा, कोई कुकिंग, योग से लेकर जुम्बा नाच रहा हर बंदा. कुकिंग के वीडियो देख- देख कर कोई आइटम ऐसे नहीं होगा जो पकाया न हो, अब फिटनेस के विडियो खोज ख़ोज कर जलेबी, घी, पनीर आदि की कृपा से जमी चर्बी को पिघलाने की असफल कोशिशें की जा रही है.

बच्चों की ऑनलाइन क्लास चल रही हैं पर वो चोरी छुपे गेम खेलने और अकडम- बकडम देखने में लगे रहते हैं. पेरेंट्स और स्कूल मैनेजमेंट का फीस को लेकर रस्साकसी टाइप संघर्ष चल रहा है. हर तरफ़ बस ये समझिये कि ज्ञान की आंधी चल रही है. अब जो है सो है इस युग से टेक्नोलॉजी को अलग नहीं कर सकते है. तो मित्रों लाइव बने रहिये, वीडियो बनाइये, ज्ञान बांटिये, पंचायत कीजिये, बोलिए- बतियाइए... आउर का ! बस आनंद कीजिये.

 

-इरा टाक ©

 

 


Even A Child Knows -A film by Era Tak