Friday 30 June 2017

बरसात में खौफ़ - हॉरर कहानी

          अगस्त की एक भीगी सी शाम थी, निशा के कुछ दोस्त कोलकाता से मुंबई आए हुए थे उनसे मिलने के लिए वो घर से करीब शाम छह बजे निकल गई थी निशा एक टीवी एक्ट्रेस थी, वो मढ़ आयरलैंड में रहती थी, जो तीन तरफ से पानी से घिरा हुआ एक सुंदर टापू है, मलाड से वह सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है डिनर करने और दोस्तों के साथ बातें करने में साढ़े ग्यारह कब बज गए उसे पता ही नहीं चला उसने जाने को कहा तो  दोस्तों ने उसे यह कह “अरे यार तुम्हारे पास तो गाड़ी है चली जाना थोड़ी देर और रुक जाओ हम कौन सा रोज आते हैं” रोक लिया
उसकी माँ का भी दो तीन बार फ़ोन आ चुका था सवा बारह बजे वो होटल से बाहर निकली बहुत तेज़ बरसात चालू थी रात में मढ़ जाने का रास्ता सुनसान हो जाता है, छह सात किलोमीटर तक कोई खास आबादी नहीं। मलाड से रात साढ़े बारह बजे वहां को आखिरी बस चलती है उसके अलावा कुछ इक्का दुक्का गाड़ियाँ ही इतनी देर रात नज़र आती हैं।
जैसे ही वो गाड़ी में बैठी उसकी माँ का फ़ोन फिर आ गया “मैं कोई बच्ची नहीं। मम्मी आप परेशान मत हो। आधे घंटे में आ जाउंगी” -उसने लडखडाती आवाज़ में कहा     पार्टी में दो पैग पीने के बाद सुरूर उसके ऊपर हावी था। वो बड़ी रफ़्तार से अपनी कार दौड़ा रही थी। ईस्टर्न हाईवे से मिढ़चौकी तक आने में उसे ज्यादा वक्त नहीं लगा रात में ट्रैफिक भी काफी कम था मिढ़चौकी से अगले सिग्नल पर बाई तरफ कब्रिस्तान के बोर्ड पर अचानक उसकी नजर गई, ठीक उसके बगल में ईसाईयों की दफन भूमि और उसके बगल में हिंदुओं की श्मशान भूमि देख कर उसे हंसी आ गयी-कहीं एकता हो या ना हो पर यहाँ के भूतों में जरूर एकता होगी ? या ये भी मंदिर , मस्जिद ,चर्च के नाम पर लड़ते होंगे ?”      उसने फुल वॉल्यूम में गाने चला रखे थे और पूरी मस्ती में झूमती हुई वह गाड़ी चला रही थी अचानक म्यूजिक प्लेयर की आवाज़ अपने आप कम हो गयी। वो थोडा हैरान हुई पर उसने दोबारा वॉल्यूम बढ़ा दिया।आगे मालवणी चौराहे पर पुलिस वाले हर गाड़ी को चेक कर रहे थे वह बहुत घबरा गई क्योंकि दो पैग पीकर गाड़ी चलाना कानूनन अपराध है उसने म्यूजिक बंद कर दियाबगल की सीट पर पड़ी अपनी शाल को सिर पर ओढ़ लपेट लिया। फिर कार की रफ़्तार कम कर वो पुलिस के पास रुकने की वाली थी कि पुलिस वाले ने लड़की देख कर उसको जाने का इशारा कर दिया    “अगर चेकिंग होती तो मेरा लाइसेंस जप्त हो जाता, जान बच गयी...लड़की होने के फायदे ही फायदे हैं”- उसने चैन की सांस ली और शाल को वापस उतार कर लापरवाही से सीट पर फेंक दिया  मालवणी से होती हुई वो उस पुल पर पहुँच गयी जहाँ से, एक रास्ता मार्वे की तरफ मुड़ता है और एक मढ़आइलैंड की तरफपुल पर एकदम सन्नाटा था दिन में यहाँ मछली पकड़ने वालों की भीड़ रहती है।अभी बारिश हलकी हो गयी थी उसने फिर से गाने चालू कर लिए दूर-दूर तक कोई नहीं था ना कोई गाड़ी ना कोई मोटरसाइकिल ना कोई आदमी सब एकदम सुनसान !
सड़क के दोनों तरफ घने पेड़... दिन में यह रास्ता जितना सुंदर लगता है रात में उतना ही भयावह लग रहा था रोड़ लाइट भी हर जगह नहीं थी। कहीं कहीं गुप्प अँधेरा था। बरसात की वजह से उसे ठण्ड महसूस होने लगी, उसने कार का एसी बंद कर खुली हवा के लिए दोनों साइड की थोड़ी थोड़ी खिड़कियाँ खोल लीं। उसका सिर चकरा रहा था और नींद से ऑंखें मुंदे जा रही थीं। उसने एक जगह कार रोक पीछे पर्स में पड़ी पानी की बोतल निकाली और अपने मुंह पर पानी के छीटें मार ही रही थी कि म्यूजिक प्लेयर बंद हो गया।मैंग्रोव के घने जंगल, मछलियों की गंध और हवा में तेजी से हिलते पेड़ देख अचानक उसे घबराहट होने लगी उसने गाड़ी के अन्दर की लाइट जलाई और शंका से पीछे वाली सीट पर देखा। उसने घड़ी देखी रात का एक बज चुका था
“लगता है इसका कोई वायर ढीला हो गया, कल सही करवाती हूँ”-कहते हुए उसने एक बार फिर म्यूजिक प्लेयर चालू कर दिया।
“अब तो आखिरी बस भी जा चुकी होगी..मुझे इतने देर वहां नहीं रुकना चाहिए था”- उसने अपने आप से कहा
“अब तो आखिरी बस भी जा चुकी होगी..मुझे इतने देर वहां नहीं रुकना चाहिए था”- उसने अपने आप से कहा       उसने अपनी कार की रफ़्तार बढ़ा दी सड़क ज्यादा चौड़ी नहीं थी और बीच बीच में काफी घुमावदार मोड भी थे सात-आठ किलोमीटर के लंबे रास्ते पर तीन चार जगह ही कुछ दुकानें हैं पर उस समय तो सब बंद हो चुका था और बरसात की वजह से सड़क पर एक कुत्ता भी नजर नहीं आ रहा था  म्यूजिक प्लेयर चलते चलते फिर अचानक से बंद हो गयाएक डर की लहर उसके शरीर में दौड़ गयी। उसने बायीं तरफ देखा तो एक सुनसान बंगला नज़र आया। उसे पिछले दिनों देखी हॉरर फिल्म याद आ गयी। जिसमें एक परिवार पिकनिक मनाने आता है और वापसी में उनकी कार ख़राब हो जाती है, रात बिताने को वो ऐसे ही एक सुनसान बंगले में घुस जाते हैं। बंगले का दरवाज़ा खुला होता है , पर उन्हें कोई नज़र नहीं आता, बंगले में सब कुछ अपनी जगह पर सजा हुआ होता है। कई बार आवाज़ देने के बाद जब कोई नहीं आता तो वो बेतकल्लुफ हो वहीँ रुक जाते हैं। बच्चे खेलने लगते हैं, पति घर के कोने में बनी बार से शराब पीने लगता है और औरत फ्रिज में खाने का सामान ढूढने को जैसे ही उसका दरवाज़ा खोलती है , जोर से चीख पड़ती है। फ्रिज में कटे हुए सिर, हाथ पैर रखे हुए थे। निशा वहीँ पहुँच गयी थी जैसे ! एकदम उसने तेज़ ब्रेक लगाया और गाड़ी बंद हो गयी।उसके माथे पर पसीना आ गया था। उसने अपने सिर को झटका दिया। उसने गाड़ी चालू करने को चाबी घुमाई पर वो स्टार्ट ही नहीं हो रही थी। वो जोर जोर से गाड़ी के स्टेरिंग पर मुक्के मारने लगी। डर और बैचैनी के मारे उसका हाल खराब हो गया। बार बार कोशिश करने के बाद कार स्टार्ट हो गयी तब उसने चैन की सांस ली। उसने सुनसान बंगले कोशिश की
विशाल उसका बॉयफ्रेंड था, वो मुंबई से बाहर की तरह सहमते हुए देखा और गाडी आगे बढ़ा दी। “अरे यार निशा क्यों सुनसान रस्ते पर हॉरर फिल्म के बारे में सोच रही है, अगर गाडी स्टार्ट नहीं होती तो तू भी उसी फ्रिज में होती कटी हुई। कुछ रोमांटिक सोच, सोच... अगर इस समय विशाल होता तो ऐसे रोमांटिक मौसम में कार को चलने ही नहीं देता और सारी रात यही सड़क किनारे या सुनसान बीच पर... मैंने फालतू ही आज उससे झगडा किया” –उसने अपना मूड बदलने की किसी काम से गया हुआ था इसलिए वो नहीं चाहता था कि निशा देर रात पार्टी करने अकेले जाये, इसी बात पर शाम को उनकी कहा सुनी हो गयी थी। उसे विशाल की याद आने लगी। उस ने विशाल को फ़ोन मिलाया, उसका फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा था। डैशबोर्ड से विशाल की गिफ्ट की हुई सीडी उठाई, और म्यूजिक प्लेयर में लगा दी।“तू नहीं तो तेरी याद सही....विशाल आई लव यू बेबी”-निशा ने लड़खड़ाती आवाज़ में कहा।“सैटरडे सैटरडे करदी रेंदी है कुड़ी...” प्लेयर ऑन करते ही बादशाह की आवाज़ में गाना चालू हो गयाउसने वॉल्यूम फुल कर दिया और खुद भी जोर जोर से गाने लगी। और डर एकदम से गायब हो गया। बाहर तेज़ बारिश शुरू हो गयी थी, उसने खिड़की पूरी खोल ली और बारिश की बूंदें अपने हाथ में लेकर उछालने लगी। तभी अचानक म्यूजिक प्लेयर फिर बंद हो गया, वो एक झटके में अपने नशे से बाहर आई। डर झुरझुरी बन पूरी शरीर पर लोट गया। घबराहट के मारे उसको सांस लेना मुश्किल होने लगा।     “ये हो क्या रहा है ? कहीं कब्रिस्तान से कोई भूत तो गाड़ी में नहीं चढ़ गया ?” –उसने एक बार फिर गाड़ी की लाइट जला डरते डरते पीछे देखा
कोई नहीं थाउसने डैश बोर्ड पर रखे गणेश जी की छोटी मूर्ति को छुआ और माथे से हाथ लगाया।“थोड़ी देर आप ही हनुमान जी बन जाओ प्लीज गणपति बप्पा ....” “कितना सुनसान है, ऐसे में अगर कार का टायर पंचर हो जाये तो..गाड़ी फिर से बंद हो जाये और स्टार्ट न हो तो...? विशाल सही कह रहा था मुझे नहीं जाना चाहिए था”- एक के बाद एक विचार उसके दिमाग में तेज़ी से आने लगे
उसकी दोबारा म्यूजिक चलाने की हिम्मत न हुई।“पों पों पों” अचानक एक गाड़ी के तेज़ हॉर्न से उसकी तन्द्रा टूटी, एक पल के लिए तो उसे लगा उसका दिल उछल कर बाहर ही आ जायेगाउसकी घबराहट कई गुना बढ़ गयी एक सफ़ेद रंग की स्कोडा कार बड़ी तेजी से लहराती हुई उसे ओवरटेक कर गयी। गाड़ी को देख कर ऐसा लग रहा था उसको चलाने वाले ने जम कर पी रखी हो ! मढ़आइलैंड में रईसजादों की पार्टियों के अड्डे हैंऔर पुलिस भी इधर कम नज़र आती है। उसे डर लगने लगा
“कहीं यह मुझे ओवरटेक कर गाड़ी न रोक ले, कोई मदद को भी नहीं आने वाला और मेरा रेप कर कर झाड़ियों में फेंक जाएँ” तरह-तरह के बुरे ख्याल उसके दिमाग में आने लगेअभी तक तो वो भूतों के ख्याल से ही डर रही थी और अब ये असली हैवान आ गए थे। उसकी धड़कनें बढ़ने लगी स्कोडा काफी दूर जा चुकी थी यह देख उसको थोड़ी सी राहत मिली उसने अपने गाड़ी की रफ़्तार कम कर ली गाड़ी का सेंट्रल लॉक लगाया और खिड़कियाँ बंद कर दीं। अब वो बहुत सतर्क होकर गाडी चलाने लगी। लगभग एक किलोमीटर चलने के बाद उसे वह स्कोडा सड़क के किनारे खड़ी हुई नज़र आई उसकी पार्किंग लाइट्स चालू थीतीन चार लड़के उससे टिके हुए शराब पी रहे थे। अब वह बहुत घबरा गई। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा जैसे अभी उछल कर बाहर आ जायेगा।“हे भगवान् अब क्या करुं... क्या करुं—क्या करूँ”- वो जोर जोर से बोलने लगी
 उसने अपनी गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और स्कोडा के पास से तेज़ी  निकल गई उसके निकलते ही वो सभी लड़के स्कोडा में बैठ गए और उसका पीछा करना चालू कर दिया शायद उन्होंने देख लिया था कि कार एक अकेली लड़की चला रही है
निशा की घबराहट का लेबल बहुत बढ़ गया था उसका गला बुरी तरह सूखने लगाउसने रोना शुरू कर दिया। वो बार बार आंसू पोंछती हुई कार के रियर व्यू मिरर में देखती कि स्कोडा कितनी दूर है। स्कोडा उसके पीछे-पीछे हॉर्न बजाती हुई आ रही थी कभी वह उसके एकदम साइड में ले लेते और कभी ठीक पीछे ! गाड़ी में चार पांच लड़के थे जो शोर करते हुए पूरी तरह नशे में थे और जोर जोर से उस पर भद्दी भद्दी फब्तियां कस रहे थे निशा को लगने लगा कि उसके जीवन का आखिरी दिन आ गया“मैंने कभी नहीं सोचा था मुझे इस तरह मरना पड़ेगा..माँ पर क्या बीतेगी? विशाल काश तुम मेरे साथ होते...” वो फफक के रो पड़ी.

“अरे अब रूक भी जा जानेमन”-एक आवाज़ जोर से आई.

“सौ नंबर पर फ़ोन करती हूँ”- सोचते हुए निशा ने अपना मोबाइल उठाया
फ़ोन की टच स्क्रीन हैंग हो गयी थी, उसने दो तीन बार कोशिश कीलड़कों ने जोर जोर से हॉर्न बजाना शुरू कर दिया। घबराहट में मोबाइल हाथ से छूट सीट के नीचे गिर गयाउसने एक हाथ से स्टेरिंग सँभालते हुए मोबाइल को ढूढने की कोशिश की पर वो उसकी पहुँच में नहीं आ रहा था आंसुओं और पसीने से उसका चेहरा तरबतर था।“इसे तो रोकना होगा यार ! बहुत बलखा कर गाड़ी चला रही है”-दूसरे लड़के ने चिल्ला कर कहाये नशे में डूबी आवाजें उसके कानों में गरम लावे की तरह घुस रहीं थीउसे अपनी चेतना खोती हुई महसूस होने लगी।अचानक लड़कों ने स्कोडा के रफ़्तार बढ़ा, निशा की कार को ओवरटेक करते हुए जैसे ही बायीं तरफ मोड़ा
“भड़ाक”एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ पुल की रेलिंग तोडती हुई स्कोडा मैन्ग्रोव के जंगल से भरे दलदल में जा गिरीनिशा ने पूरी ताकत से ब्रेक लगाया। एक झटके से उसकी कार रुक गयी। उसकी आंखें फटी के फटी रह गई। पुल के नीचे गिरी कार से मदद के लिए चीखने की आवाजें आने लगीं। कुछ आवाजें दर्द तड़पने की थीं। वो स्तब्ध थी। उसका दिमाग सुन्न हो गया था। वो समझ नहीं पा रही थी कि अचानक ये सब क्या हो गया। तभी मोबाइल की घंटी बजने लगी। मोबाइल की आवाज़ भी जैसे उसके कानों के परदे फाड़े दे रही थी। वो अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रही थी, उसका शरीर पत्थर हो गया हो। बरसात तेज हो गई थी। पांच मिनट बीत गए और वो अभी तक उसी जगह पर खड़ी थी। मोबाइल दो बार बज के बंद हो गया। वो चाह कर भी मोबाइल को झुक कर ढूंढ नहीं पा रही थी। दलदल से आने वाली चीखें थम चुकी थीं।
             लगभग बीस पच्चीस मिनट बीत जाने के बाद उसने खुद को संयत करने की कोशिश की और अपनी आदत के मुताबिक कार के रियर व्यू मिरर में देखा तो एक सजी धजी औरत का चेहरा नज़र आया। बड़ी काली आँखें, सुर्ख लिपस्टिक और माथे से बहता हुआ खून जो उसके चेहरे के बाएं हिस्से को ढके हुए था !वो एक झटके से पीछे मुड़ी। पर पीछे कोई नहीं था !

पेंटिंग : इरा टाक 


     उसने गाड़ी पूरी रफ्तार से भगा दी। वो चीखना चाहती थी पर डर से उसकी आवाज निकलना बंद हो गईउसने गाड़ी की लाइट जला ली और डर के मारे दोबारा रियर व्यू मिरर में नहीं देखा। बदहवास हो पंद्रह मिनट गाडी दौड़ाने के बाद वो किसी तरह अपने घर पहुंची। उसने अपनी चाबी से दरवाजा खोला। चुपचाप माँ के कमरे में जा कर उनके पास लेट गयी। अपने कमरे में जाने की तो उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।
***“मैं कहती थी न इतनी रात में उस रास्ते से आना खतरनाक है पर तू कभी सुनती नहीं...कल रात एक एक्सीडेंट हो गया, सब मारे गए”-माँ हाथ में चाय और अखबार लिए उसे जगा रही थी, उसने अखबार एक झटके में छीन कर खबर देखी
बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था-भूतिया पुलिया से टकराकर एक और कार दुर्घटनाग्रस्त : गाड़ी में सवार पांचो लड़कों की मौत.लड़के स्कोडा कार में थे और सभी ने भारी मात्रा में शराब पी रखी थी। पुलिस ने बताया कि रफ़्तार की वजह से उनका गाड़ी से कण्ट्रोल खो गया और गाड़ी पुलिया की रेलिंग तोड़ते हुए खाई में गिर गयी। पर स्थानीय लोगों इसे उस दुल्हन की भटकती आत्मा का कारनामा बता रहे हैं जो अक्सर देर रात इस जगह के आस पास अक्सर घूमती है और गाड़ियों से लिफ्ट मांगती है...इससे आगे वो पढ़ नहीं सकी उसे रेयर व्यू में देखा दुल्हन का चेहरा याद आ गया !
- इरा टाक 

Thursday 29 June 2017

बरसात आई - बाल कविता

सुन्दर महकी हवा चली
पेंटिंग इरा टाक -जलरंग 
बादलों की टोली बड़ी मनचली
पेड़ पौधों ने झूम के ली अंगड़ाई
बरसात आई, बरसात आई

बच्चे बड़े सब हुए बावले
छतों , सड़कों पर निकल पड़े
सबके मन पर मस्ती छाई
बरसात आई, बरसात आई

गरम चाय और गरम पकौड़े
भुट्टे खाने सब हैं दौड़े
चढ़ी हुई है आज कढ़ाई
बरसात आई, बरसात आई

तालाब बने सडकों पर
कीचड है हर कोने पर
सरकार की फिर हुई खिचाई
बरसात आई, बरसात आई

इरा टाक 

एक कवि कम

कहा उसने, तेरे बिना अब जी न पाएंगे हम
मैंने कहा कोई न, एक कवि हो जायेगा कम 

#इरा_टाक  

प्रेम में अँधा होना

जब आप किसी की खातिर जानते बूझते हुए भी बहुत मुश्किल रास्ता चुन लेते हो, तो समझ लीजिये कि आप प्रेम में अंधे हो गए हैं
इरा टाक

नमकीन पानी

 नमकीन पानी हर दर्द बहा देता हैhttps://www.youtube.com/watch?v=YlG_Eu_gLNs

भूख धर्म से बड़ी है

पेंटिंग - इरा टाक - जलरंग 
जैसे जैसे मुझ में समझ आती गयी, जात पात, धर्म से मेरा विश्वास उठता गया. मुझे भी बचपन से जातियों का भेद समझाया गया, छोटी जात, बड़ी जात बतलाया गया पर बचपन में भी मैंने ये भेद कभी स्वीकार नहीं किया. मैंने इंसान को उसकी जाति या धर्म से नहीं बल्कि उसकी अच्छाई या बुराई से जानना सीखा.
आज मेरे लिए केवल एक धर्म और एक जात है और वो है इंसानियत. मैं किसी धर्म की विरोधी नहीं पर धर्म के नाम पर हो रही हिंसा, राजनीति और वहशियत का मैं विरोध करती हूँ. काश हर आदमी चाहे वो किसी भी मजहब को मानने वाला हो उस मजहब की असली शिक्षा को समझ पाता. कोई धर्म किसी दूसरे के लिए खतरा नहीं , ये सिर्फ उस तरह है जैसे मुझे लाल रंग पसंद है, और तुम्हें हरा या पीला !
ये विश्वास की बात है. आखिर में रंग मिल इन्द्रधनुष ही बनाते हैं. 
धर्म को बचाने से भी बड़ी ज़िम्मेदारी है "इंसानियत" को बचाने की. ऐसा न हो कि सभ्य बनने की बजाय हम सब बर्बर होते जाएँ ! धर्म से बड़ी ज़रूरत "रोटी" है. समझ नहीं आता इन मूलभूत समस्यों को भूल लोग धर्म-जाति के नाम पर क्यों मूर्ख बनते आ रहे हैं ? "भूख" से बड़ी समस्या क्या है ? लोग बेरोजगार हैं , हत्याएं, लूट, बलात्कार हो रहे हैं . मंदिरों / मस्जिदों/गिरजों / गुरुद्वारों  में भगवान/ खुदा/ गॉड/ वाहे गुरु  सुरक्षित हैं  और सड़कों पर लोग मर रहे हैं . क्या यही है धर्म ? क्या ऐसा ही समाज आप और हम अपनी नस्लों को देना चाहते. बुरा करने वाला खुद भी बुराई का शिकार होता है. जो जहर फैलाते हैं किसी दिन वो जहर उन्हें भी पीना पड़ जाता है .
प्रयास हम सबको करने होंगे, अपने घरों से, मोहल्लों से, गाँव , कस्बे, शहरों से..केवल हाथ में तख्तियां और मोमबत्तियां लेकर नहीं बल्कि अपने सामने हो रहे गलत को रोक कर...उसे नज़रंदाज़ कर के नहीं बल्कि किसी शिकार होते इंसान को बचा कर...वरना ये आग हमारे घरों तक भी आ जाएगी 
#NotInMyName
#SaveTheHumanity
#EraTak

Sunday 18 June 2017

बरगद होते पिता - इरा टाक


उम्र की ढलान पर थके हुए से मेरे पिता
आज भी चिंता करते हैं, मेरे जागने से सोने तक
मेरी बीमार माँ की सेवा करते 
कभी खुश हो, कभी खींजते हुए

कभी उन्होंने मेरी तारीफ नहीं की
मैंने सुना छुप के, उन्हें तारीफ मेरी करते हुए

मैं कितनी बार अनसुनी कर देती हूँ उनकी बातें
पर वो एक बार सुन के मेरी बात मान जाते हैं

उनके कहे कड़वे शब्द मैं भूल नहीं पाती
पर वो भुला देते हैं मेरी कही हर कड़वी बात

माँ के चले जाने के बाद,पिता से मां बनते जाते
उम्र के ढलान पर थके हुए से मेरे पिता !
उनका होना, मेरे लिए, वैसे ही है 
जैसे घने बरगद के नीचे बसेरा !
- इरा टाक

Thursday 8 June 2017

मोटरसाइकिल पर सात आइटम- यात्रा संस्मरण (इरा टाक )



अक्टूबर 2014 : जयपुर में अपनी पांचवी एकल कला प्रदर्शनी के बाद कुछ दिन अपने दिमाग को ताजी हवा और नए विचार देने के लिए बेटे विराज के साथ मैंने अपनी मौसी गीता कपरुवान के घर श्रीनगर गढ़वाल घूमने का प्लान बनाया। जयपुर से श्रीनगर (गढ़वाल) पहुँचने में लगभग सोलह सत्रह घंटे लग जाते हैं मौसी का घर श्रीनगर बदरीनाथ हाईवे पर है, उनके घर के सामने की सड़क के ठीक नीचे विशाल अलकनंदा नदी बहती है 2013 में उत्तराखंड में हुई भयंकर विनाश लीला में मेरी मौसी का घर भी अलकनंदा नदी की भेंट चढ़ गया था कई महीनों तक उन्हें एक शरणार्थी की तरह जीवन बिताना पड़ा था उस हादसे के बाद 2014 अक्टूबर को यह मेरी पहली गढ़वाल यात्रा थी जयपुर से हरिद्वार वोल्वो बस से 12 घंटे का सफर होता है, सुबह हरिद्वार पहुंचकर मैं अपने एक पारिवारिक मित्र के यहां गई वहां से ऋषिकेश घूमने गए ऋषिकेश एक बहुत खूबसूरत जगह हैपहाड़, घने जंगल, नदी, लक्ष्मण झूला राम झूला, देशी विदेशी!
        ऋषिकेश में एक बहुत फेमस रेस्टोरेंट हैचोटीवाला अब वहां और दूसरे शहरों में भी उसकी कई शाखाएं खुल गई हैं रेस्टोरेंट के बाहर चोटी वाले मोटे पंडित का पूरा मेकअप करके एक आदमी को बैठाए रखते हैं ,  पर्यटक उसके साथ फोटो खिंचाते हैं ऋषिकेश में कुछ घंटे बिताने के बाद मैं और मेरा बेटा अगले दिन सुबह टैक्सी से श्रीनगर गढ़वाल के लिए निकल पड़े करीब दोपहर दो बजे मौसी के घर पर थे मेरी मौसी राजकीय कन्या इंटर कॉलेज में प्रवक्ता हैं उन्होंने खास तौर पर हमारे लिए छुट्टी ले रखी थी और बहुत बढ़िया पहाड़ी व्यंजन बना रखे थे-भट्ट की दाल, चावल, मडुए की रोटी, खीरे का रायता जो मुझे बहुत पसंद है, मेरी मां कुमायूंनी थीं, इसीलिए यह स्वाद बचपन से जुबान को चढ़ा हुआ है मौसी और मौसा जी ने अपने घर को दोबारा से रहने लायक बना लिया था उन्होंने बताया कि बाढ़ में तीन से चार फुट तक मिट्टी घर में भर गई थी पूरे घर को दोबारा से पेंट कराया घर का लगभग सारा ही सामान खराब हो चुका था उनके गहने भी नहीं मिले पर फिर भी जीवन है तो सब कुछ है हर चीज़ दोबारा बनाई जा सकती है बस जीवन को दोबारा बना पाना संभव नहीं !
 उन्होंने बताया कि बाहर घर के बगीचे की मिट्टी बाढ़ के बाद बहुत उपजाऊ हो गई है उन्होंने अपने घर में बहुत सारी सब्जियां लगा रखी थी जैसा आप हर पहाड़ी घर में देख सकते हैं पहाड़ी लोग बड़े मेहनती और बागवानी के शौक़ीन होते हैं विराज के लिए ये जगह किसी जादू से कम नहीं थी एक ही जगह  उसे भिंडी, लौकी, मिर्ची, टमाटर, बैंगन, तोरई, आलू ,लहसुन, प्याज, भुट्टे सभी चीजों के पौधे देखने को मिल गए इसके साथ साथ ही फलों के पेड़, अंगूर की बेल जिसमें अंगूरों के गुच्छे लटके हुए थे परलोमड़ी के अंगूरोंकी तरह वह अभी खट्टे ही थे
          मैं पहले भी कई बार वहां जा चुकी थी इसलिए घूमने से ज्यादा मुझे मौसी से बातें करने का लालच था फिर भी बच्चे को घूमाने के लिए हम अक्सर उनकी एक्टिवा पर सवार हो आसपास निकल जाते थे श्रीनगर में एक पुल ऐसा भी है जो बिलकुल लक्ष्मण झूले जैसा लगता है वहां से उतर कर नदी तक भी गए अब ये नदी डरावनी हो चुकी थी इसने कई लोगों को निगल लिया था
अगले दिन वहां से कुछ किलोमीटर दूरधारी देवीमंदिर देखने गए बाढ़ आने के बाद सेना ने लोगों की आस्था के प्रतीक इस मंदिर को लोहे का एक बहुत बड़ा प्लेटफार्म बनाकर नदी से कई फीट ऊपर रख दिया था मंदिर में घंटियों और बंदरों का बहुतायत था रास्ते में ढेरों साधु बैठे हुए थे मंदिर के दरवाजे पर खड़े होकर चारों तरफ नदी का विहंगम दृश्य दिखता है  मैं मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करती पर प्रकृति की ऊर्जा में मेरा अटूट विश्वास है
श्रीनगर से वापस जयपुर लौटना इस यात्रा का सबसे रोचक अध्याय हैं मुझे लम्बी यात्रायें रेल या हवाई जहाज से करना पसंद है बस तो केवल मजबूरी में लेनी पड़ती है हरिद्वार से जयपुर दोपहर 3:20 बजे की ट्रेन योग एक्सप्रेस में हमारा आरक्षण था श्रीनगर से बस में हम सुबह दस बजे ही निकल गए थे उम्मीद थी कि बस हरिद्वार दोपहर दो  बजे तक पहुंचा देगी मैंने बचपन से पहाड़ की खूब यात्रायें की हैं और मुझे सफर में कभी कोई परेशानी नहीं होती थी जैसे अक्सर यात्रियों को चक्कर आना, उल्टी आना, जी घबराना, जैसी शिकायतें होती हैं हमेशा मैंने यह देखा है कि जब मैं कहती हूं कि मुझे कुछ नहीं होता कभी, तो  मुझे वह हो जाता है श्रीनगर से निकलने के कुछ देर बाद ही मेरा जी घबराने लगा बहुत मुश्किल से खुद पर काबू कर रखा था ऐसा लग रहा था अब उल्टी होगी  उल्टी करने से मुझे बचपन से एक फोबिया है ऐसा लगता है कि उलटी कर के कहीं मर ही जाऊं !
    पहाड़ के दृश्य जो मुझे हमेशा से बहुत आकर्षित करते हैं इस समय अपना जादू चलाने में नाकामयाब थे मैं  चाहती थी किसी तरह मुझे राहत मिले दो घंटे बाद जब बस मिडवे पर रुकी तब वहां नीबू पानी पी कर मुझे कुछ राहत मिली
        हरिद्वार से ट्रेन का डिपार्चर टाइम दोपहर 3:30 का था, इसीलिए उम्मीद थी कि बड़े आराम से मैं हरिद्वार पहुंच जाऊंगी ऋषिकेश पहुंचते पहुँचते एक बज चुका था बस यहाँ पंद्रह -बीस मिनट रुकने वाली थी देर होने की आशंका से मैंने तुरंत एक दूसरी बस पकड़ ली जो ऋषिकेश जाने को तैयार थी ऋषिकेश से हरिद्वार आधा लगभग पच्चीस किलोमीटर है जिसे तय करने में पैंतीस- चालीस मिनट लगते हैं इसलिए दो बजे तक हरिद्वार पहुँचने की पूरी आशा थी ऋषिकेश से 15 किलोमीटर चल देने के बाद सड़क पर तगड़ा जाम मिला  बस धीरे धीरे खिसक रही थी लगा कि अभी तक पंद्रह  मिनट में जाम खुल जाएगा लेकिन दस, पंद्रह , बीस होते होते आधा घंटा बीत गया दो तो बस में बैठे बैठे ही बज गए चारों तरफ से लोगों ने गाड़ियां, ऑटो, मोटरसाइकिल फंसा दी थी किस को धीरज नहीं था निकलने की जल्दी में जो बचा था वो रास्ता भी कर बंद हो गया जैसे किसी रस्सी को खोलने की जल्दी में हम उसमें और मजबूत गांठ लगा देते हैं !
       ऐसी स्थिति में बस थी कि ना आगे जाए पीछे पास की पगडंडी से लोग गाड़ियां टैक्सियां निकाल रहे थे मैं बेचैन हो रही थी समझ नहीं रहा था कि अब क्या होगा? वक्त हाथ से निकल रहा था कोई निर्णय नहीं ले पा रही थी जब वहां खड़े खड़े पौन घंटा हो गया और निकलने की सारी उम्मीदें टूट गई तो मैंने बस कंडक्टर से किसी बाइक वाले या टैक्सी वाले को रुकवाने का अनुरोध किया कंडेक्टर भला आदमी था वह मेरे लिए कोई वाहन तलाशने लगा वह समझ रहा था कि एक छोटे बच्चे के साथ मुझे एक लंबा सफर तय करना है अगर मेरी ट्रेन छूट गई तो मुझे परेशानी हो जाएगी हालाँकि सिर्फ टिकट का नुकसान होता लेकिन रेलवे स्टेशन से बस स्टैंड जाना और एक नई बस को तलाश करना अपने आप में थका देने वाला है
        करीब दो बज कर पचास मिनट (2:50) पर कंडेक्टर ने बस के बाहर से मुझे इशारा करके बुलाया उसने एक मोटरसाइकिल वाले को मुझे हरिद्वार तक छोड़ देने को राज़ी कर लिया था इतनी बुरी तरह जाम था कि केवल साइकिल या मोटरसाइकिल वाले ही निकल सकते थे और कई बार तो उन्हें सड़क से नीचे उतरकर कच्चे से अपनी मोटरसाइकिल निकालनी पड़ रही थी मेरे पास दो अटैचियां और एक लैपटॉप बैग था सामान ठसाठस भरा हुआ था- कुछ तो सर्दी के कपड़ों की वजह से और कुछ श्रीनगर से की गई शॉपिंग की वजह से !
 मैं दोनों अटैचियां हाथ में और बैग पीठ पर लिए बच्चे के साथ बस से उतर गई अब उम्मीद थी कि शायद मैं ट्रेन के छूटने से पहले पहुंच जाऊं ! बाइक वाले लड़के ने जैसे ही मेरे तीन सामान और चौथा बच्चा देखा तो उसने हमें बैठाने से इंकार कर दिया विराज और मुझे मिला कर कुल पांच आइटम !
उसके पास भी एक बैग था, तो हुए कुल  “सात आइटम वो बाइक को ट्रक बनाने का रिस्क नहीं लेना चाहता था
 उसने साफ़ मना कर दिया और मोटरसाइकिल आगे बढ़ा दी उस समय डूबते को वही तिनके का सहारा था मैंने आगे बढ़कर उसकी बाइक का हैंडल पकड़ लिया
 “भाई आपको हमें ले कर जाना ही होगा हम एकदम नए हैं बहुत दूर से आए हैं और अगर हमारी ट्रेन छूट गई तो हमें बहुत परेशानी होगी प्लीज भैया प्लीज”- मैं तो उसके पीछे ही पड़ गई
वह मना करने लगा-“ अरे नहीं नहीं..मैडम ! बच्चा भी है दो अटैचियां एक बैग ! मैं नहीं ले जा पाऊंगा
 “आपको ले जाना होगा भइया..मैं आपका बैग भी पकड़ लेती हूँ बच्चा आगे बैठ जायेगा मैंने बाइक पर पांच लोग जाते देखें है और सामान ज्यादा भारी नहीं है”-मैंने किसी तरह उसे समझाने की कोशिश की
 आखिर वो दुबला पतला पहाड़ी लड़का पिघल गया और उसने हमें अपनी मोटरसाइकिल पर लाद लिया दोनों अटैचियां मेरे पैरों पर और दो बैग पीठ पर और बच्चा आगे !
 बड़ी मुश्किल से किसी तरह भीड़ में वह बाइक को निकाल रहा था कारों टैक्सियों बसों से लोग झांक झाँक के देख रहे थे और हमें देख कर हंस भी रहे हंस रहे थे मुझे उन्हें हँसते देख शर्म रही थी कई जगह उसे मोटरसाइकिल को कच्चे पर उतारना पड़ता पहाड़ी रास्ता थोड़ा ऊंचा नीचा था तो जब वह बाइक नीचे उतारता तो मैं दोनों अटैचियां और बैग लेकर उतर जाती और कच्चे रास्ते को पैदल पार कर फिर सड़क पर बाइक आते ही मैं दोबारा उसके पीछे बैठ जाती इतना सामान लेकर पैदल चलना किसी कमांडो ट्रेनिंग से कम नहीं होगा शायद !
  थकान के मारे मेरा शरीर चूर हो रहा था इतना भारी बोझ उठा कर चलने की आदत जो नहीं थी भारी वजन और बाइक पर ऐसी स्थिति में बैठना मेरे लिए तकलीफदेह हो रहा था सबसे आनंद में तो विराज था, आगे बाइक की टंकी पर बड़े आराम से हवा में हाथ फैलाए वो खुश दिखाई दे रहा था
 मैंने उस बाइक वाले लड़के से बात की तो पता चला कि वह गोरखा रेजिमेंट का सिपाही था और छुट्टियां बिताने के बाद वापस ड्यूटी ज्वाइन करने जा रहा था उसने मुझे बोला कि आगे उसका एक साथी इंतजार कर रहा है
 मैंने बोला –“आप मुझे बस वही तक छोड़ देना आगे मैं ऑटो से चली जाऊंगी
 मैंने उस पर अपने नाना और अपने चचेरे और मौसेरे भाइयों के मिलिट्री नेवी में होने की धोंस भी दी ताकि उसे लगे कि वह अपना ही काम कर रहा है बार बार उतरते चढ़ते समय मेरे कदम डगमगा रहे थे मेरी हिम्मत टूट रही थी फिर दिमाग में आया ट्रेन छूट जाएगी कोई जान तो नहीं जाएगी क्यों इतना परेशान हो रही हूँ सवा 3:00 हो चुके थे और अभी भी स्टेशन 5 किलोमीटर दूर था अब उम्मीद के दिए बुझ गए थे फिर भी इस बात पर संतोष था कि उस जाम में से निकल आए वरना वहां के हालात देखते हुए तो ऐसा लगता था कि रात भी वहीं बितानी पड़ जाएगी
  लगभग बीस मिनट की कठिन और थका देने वाली यात्रा के बाद वो चौराहा आया जहाँ उसका साथी उसके इंतज़ार में खड़ा था   अपने दोस्त को पूरेघर परिवारके साथ देख वो एक बार तो अचकचा गया
बाइक वाले सिपाही कोधन्यवाद कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे दिल से ढ़ेरों दुआएं निकल रही थी उसने इतनी परेशानी उठाकर हमें वहां तक पहुंचाया था उससे विदा लेकर मैंने जल्दी से सड़क क्रॉस की और एक ऑटो पकड़ा अभी भी स्टेशन 2 किलोमीटर दूर था 3:30 बज चुके थे ट्रेन को गए 10 मिनट हो चुके होंगे ! मन पशोपेश में पड़ गया
 “क्या करूं अब सीधे बस स्टैंड के लिए ही चलती हूँ
योगा एक्सप्रेस हरिद्वार से चलती है तो यह उम्मीद नहीं थी कि बाहर से रही है तो लेट हो जाएगी ट्रेन तो वक्त पर निकल ही गई होगी लेकिन फिर भी ऑटो रेलवे स्टेशन के लिए कर लिया   ऑटो वाले को कम से कम दस  बार बोला होगा –“जल्दी करो भैया थोडा तेज़ चलो
  घड़ी में तीन पचास हो रहे थे गाड़ी को गए तो 20 मिनट हो चुके होंगे !
स्टेशन पर उतरते ही कुलियों ने मधुमक्खियों की तरह घेर लिया-
आइये मैडम कौन सी ट्रेन है?”
 “ जयपुर की ट्रेन है योगा एक्सप्रेस ...चली गई क्या ?”-मैंने संदेह से पूछा
मैडम गाड़ी खड़ी है, मैं चलता हूं सौ रुपये लूँगा” -कहते हुए एक हट्टे कट्टे कुली ने अटैचियाँ मेरे हाथ से झपट ली
 मैंने बैग भी उसे थमा दिया इतनी थकान के बाद खुद को उठाना ही भारी पड़ रहा था हम ने दौड़ लगा दी गाड़ी दो नंबर प्लेटफार्म पर खड़ी हुई हमें सामने से नजर रही थी गाड़ी के दरवाज़ों पर लटके लोगों से मैंने चिल्ला कर कहा-“भैया प्लीज ! गाड़ी चल जाए तो चेन खींच देना..हम बस पहुँच ही रहें हैं
 कुली अपने आदत के मुताबिक एक तेज भाग रहा था, विराज भी कुली के साथ कदमताल मिला रहा था भागते हुए ओवरब्रिज से प्लेटफार्म नंबर 2 पर जाना मैराथन से कम नहीं लग रहा था मेरी टांगों ने जवाब दे रहीं थी, धड़कन अपनी रफ्तार से 3 गुना बढ़ चुकी थी मुझे पीछे देखकर विराज घबरा रहा था पर मैंने बोला कि तुम जाओ मैं रही हूं
 प्लेटफार्म पर पहला कदम पड़ते ही ट्रेन चल पड़ी, सीढ़ियों से उतरते ही जो पहला डिब्बा मिला उसी में कुली ने सामान और बच्चे को चढ़ा दिया, मैंने भी भाग कर ट्रेन के पायदान पर कदम रख लिया कुली को 100 की बजाए 200 रुपए पकड़ाए इस समय हर वो आदमी जिनकी वजह से मैं ट्रेन पकड़ पायी देवदूत से कम नहीं लग रहे थे
   वहीँ एक सीट पर हम बैठ गए, बोतल से पानी पिया 15 20 मिनट धड़कनों के शांत होने का इंतजार किया टांगों को आराम दिया उसके बाद ट्रेन में अंदर ही अंदर चलते हुए हम अपने डिब्बे सी 2 तक पहुंच गए यात्री बातें कर रहे थे ट्रेन लेट हो गई वैसे तो कभी लेट नहीं होती है मैं मन ही मन हंस रही थी- हमारी मेहनत और हमारे ट्रेन पकड़ने के जुनून को देखते हुए सारी कायनात हमें ट्रेन से मिलाने को तुल गयी थी ;)
     और हमारे पहुंचते ही ट्रेन ऐसे इतरा के चल पड़ी जैसे बस हमारे ही इंतजार में खड़ी हो !
मेहरबां आते आते बहुत देर कर दी
    और मेरा कुदरत में यकीन और पक्का हो गया कि वह मुझे बहुत प्रेम करती है और मेरे लिए हमेशा अच्छा सोचती है!
 इस तरह गढ़वाल की यात्रा सुखद रोमांचक होते होते एक जंग में बदल गयी थी !  वक़्त के खिलाफ जंग ! और हमने  जंग जीत ही ली
वो कहते हैं ... All is well if end is well
इरा टाक


Even A Child Knows -A film by Era Tak