Tuesday 15 November 2011

अब तो जीने का मन करता है...

अब तो जीने का मन करता है...


खामोश रह के बहुत सह लिया
खून के आंसुओ को बहुत पी लिया
क्या मिला मुझे अच्छा बन के...?
सिर्फ दर्द और तन्हाईयाँ...
अब तो बुरा बन के जीने का मन करता है ।

महुबतो का दरिया बहता था मुझमे
बेरुखी ने उनकी रेगिस्तान कर दिया
क्या मिला मुझे वफ़ा कर के...?
सिर्फ जख्म और आंसू ...
अब तो बेवफा बन के जीने का मन करता है।

सारे अरमान,सारी खवाईशे ही मिटा दी
अपना वजूद भी खो दिया
क्या मिला मुझे फ़ना हो के...?
सिर्फ अँधेरा और रुँसवाईयाँ
अब तो बगावत कर के जीने का मन करता है।

इरा टाक

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