Monday, 22 April 2013

कुछ फितरत ही ऐसी है अपनी
मासूमियत दिल की जाती नहीं
तभी तो भीड़ में कुछ अपने और
गुनाहगारों में फ़रिश्ते ढूढ़ लेते हैं।।।इरा टाक (मेरी किताब "अनछुआ खवाब "से  )

Thursday, 18 April 2013

प्रेम में खुद को जलाने लगी हूँ
खुद ही खुद को मिटाने लगी हूँ
कैसा सम्मोहन है
मेरे प्रिय !!!... इरा टाक 

Tuesday, 16 April 2013

भेज दिए उसने राह में कई फ़रिश्ते
शुक्रिया उन्हें नहीं ख़ुदा को कहते हैं 

Saturday, 13 April 2013

मेरी किताब अनछुआ ख्व़ाब से. ....
ख्यालों में तेरे गम हूँ ,शामो सहर
दुआ के लिए अब नहीं है वक़्त
मुहब्बत इतनी है कि इबादत बन गयी
खुद़ा भी करने लगा है थोडा रशक ..इरा टाक 

Wednesday, 10 April 2013

मेरी किताब अनछुआ ख्वाब से
 हदों को तोड़ के ,सैलाब से बढ़ क्यों नहीं जाते
जी नहीं सकते शान से तो मर क्यों नहीं जाते
मंजिल को पाना है तो तूफ़ान भी मिलेंगे
जब डर है इतना तो कश्ती से उतर क्यों नहीं जाते 

Monday, 8 April 2013

तू जो कहे तो रुख हवाओ का बदल दूँ
एक जूनून सा है,बगावत की ठानी है ...इरा टाक 

Sunday, 7 April 2013

मेरी किताब अनछुआ ख्व़ाब से
गम  दिया उसने शिकायत नहीं मुझको
दर्द से न गुज़री होती इतना
तो बातों  में मेरी यूँ  शिफ़ा नहीं होता
ज़िन्दगी में कुछ भी बेवजह नहीं होता 

Saturday, 6 April 2013

Back to Home..painting by ERA TAK


 प्रेम एक गुलामी ही तो है 
जब हमारी खुशियाँ और गम 
साथी से जुड़ जाते हैं 
एक कठपुतली की तरह 
चलने लगते है एक दूसरे  के इशारो पर 
बीच बीच में दोनों का अहम् भी सर उठाता  है 
और पनपने लगती हैं दूरियां 
चाहने लगते हैं एक स्वतंत्र अस्तित्व (स्पेस)
पर जो आनंद प्रेम की गुलामी में है 
वो क्या अकेलेपन की स्वतंत्रता में होगा ??
बोलो न मेरे प्रिय !!!,..इरा टाक (सर्वाधिकार सुरक्षित)
 

Wednesday, 3 April 2013

मेरी किताब अनछुआ ख्वाब से…
डरता है वो बेवफ़ाई को उसकी आम न कर दूँ
क्या उसको ऐसे कमजर्फ़ हम नज़र आते हैं ...इरा 

Tuesday, 2 April 2013

मसरूफ


मसरूफ
जब हमें थी फुर्सत आप थे मसरूफ 
आज आप है फुर्सत में,तो हम है मसरूफ 
अजीब है ये तमाशा ए किस्मत 
कभी आप मसरूफ कभी हम मसरूफ

अरसा हो गया बयां न कर सके हाले दिल
मसरूफियत ने ऐसा उलझा दिया हमको
खामोशियो ने ऐसा थमा लफ्जो का दामन
देख के भी उनको हम मुस्करा न सके

महोबत की चाह में झेलते रहे दोजख
कभी जन्नत नसीं होगी..सोच सब्र करते रहे
सब्र को मेरे वो समझ बैठे मुफलिसी ...
भूल गए वो, राख में अक्सर चिंगारी दबी होती है

इरा टाक

Even A Child Knows -A film by Era Tak