उम्र की ढलान पर थके हुए से मेरे पिता
आज भी चिंता करते हैं, मेरे जागने से सोने तक
मेरी बीमार माँ की सेवा करते
कभी खुश हो, कभी खींजते हुए
कभी उन्होंने मेरी तारीफ नहीं की
मैंने सुना छुप के, उन्हें तारीफ मेरी करते हुए
मैं कितनी बार अनसुनी कर देती हूँ उनकी बातें
पर वो एक बार सुन के मेरी बात मान जाते हैं
उनके कहे कड़वे शब्द मैं भूल नहीं पाती
पर वो भुला देते हैं मेरी कही हर कड़वी बात
माँ के चले जाने के बाद,पिता से मां बनते जाते
उम्र के ढलान पर थके हुए से मेरे पिता !
उनका होना, मेरे लिए, वैसे ही है
जैसे घने बरगद के नीचे बसेरा !
- इरा टाक
उम्र की ढलान पर थके हुए से मेरे पिता
आज भी चिंता करते हैं, मेरे जागने से सोने तक
मेरी बीमार माँ की सेवा करते
कभी खुश हो, कभी खींजते हुए
कभी उन्होंने मेरी तारीफ नहीं की
मैंने सुना छुप के, उन्हें तारीफ मेरी करते हुए
मैं कितनी बार अनसुनी कर देती हूँ उनकी बातें
पर वो एक बार सुन के मेरी बात मान जाते हैं
उनके कहे कड़वे शब्द मैं भूल नहीं पाती
पर वो भुला देते हैं मेरी कही हर कड़वी बात
माँ के चले जाने के बाद,पिता से मां बनते जाते
उम्र के ढलान पर थके हुए से मेरे पिता !
उनका होना, मेरे लिए, वैसे ही है
जैसे घने बरगद के नीचे बसेरा !
- इरा टाक
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