ज़िन्दगी
जीने के हज़ारों फलसफे हैं. कितनी भी कोशिश कर लो, ज़िन्दगी एक ढ़र्रे पर नहीं चल
पाती, ये गाड़ी कई- कई बार पटरी से उतर जाती है. कितनी भी तैयारी कर लो, ज़िन्दगी नए
सवाल के साथ परीक्षा लेती है. हर किसी के लिए एक अलग सिलेबस जो एग्जाम टाइम में ही
पता लग पाता है.
जैसे
अभी कोरोना का अप्रत्याशित हमला... जिसने देखते ही देखते पूरी दुनिया को अपने
शिकंजे में कस लिया है. लाखों लोग बीमार हैं, हजारों मर रहे हैं, कितनों के पास
पैसे नहीं हैं, रोज़गार नहीं है, भोजन नहीं है. कई के घर वाले दूर हैं... जो साथ
हैं उन घरों में शांति नहीं है, घरेलू हिंसा जोर पकड़ रही है. हर किसी का संघर्ष
अलग है और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सब कुछ होते हुए भी लॉक डाउन में निराशा से भरे
हुए बैठे हैं. कुछ आने वाली आशंकाओं से ग्रसित हैं. हर पहलू में नकारात्मकता ढूंढ
रहे हैं. दुखी होना जैसे उनका स्वभाव हो गया है. मुश्किल भी है ऐसे वक़्त में खुद
को संतुलित रख पाना, परन्तु संतुलन ही असल परीक्षा तो भीषणतम वक़्त में ही होती है.
जीवन आशा की डोर थामे रखने का नाम है. हर संभव
कोशिश करते हुए खुद को खुश और सकारात्मक बनाये रखना एक कला है जो निरंतर अभ्यास से
सीखी जा सकती है.
अपार संभावनाएं हैं, इस ज़िन्दगी में, हम जितना
चाहें हासिल कर सकते हैं. अक्सर लोग अतीत को याद करने में अपना वक़्त बिता देते हैं,
कुछ भविष्य के चिंतन में लगे रहते हैं. अतीत की तरफ बार- बार मुड़ कर देखने से या
भविष्य की चिंता का बोझ सर पर लादे रहने से रफ़्तार कम हो जाती है. इसलिए वर्तमान
में रहना, ज़िन्दगी जीने का सबसे सरल उपाय है. जब अँधेरा गहनतम हो तब निराश होने की
बजाय उस वक़्त को याद करें, जब पहले इससे भी गहन अँधेरे से निकल आप
रोशनी में आये थे, पैरों में गति आ जायेगी और रोशनी की तरफ
फासला कम होता नज़र आएगा.
याद
रखिये
"
ये भी गुज़र जायेगा ".
कैसा भी वक़्त हो गुज़र जाता है इसलिए सुख
में होश न खोना और दुःख में हिम्मत ! जब सब खो जाता है तब भी अगर हिम्मत बची रहे
तो वो सब वापस दिलाने की काबिलियत रखती है... ये कोरोना काल का लॉक डाउन, घर में
रहते हुए ज्यादा से ज्यादा एक्टिव रहने, जितना हो सके मदद करने, कम खाने, कम सोचने,
कम से कम मोबाइल इस्तेमाल करने का है. ज्यादा वक़्त सोशल मीडिया पर बने रहने से हम
अपनी मानसिक शांति भी खो देते हैं. नींद न आना, बैचैनी रहना, दिमाग में हर वक़्त
व्यर्थ विचारों का चलते रहना, सिर दर्द, गर्दन और पीठ दर्द जैसी समस्याएँ जो
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मोबाइल, गेजेट्स, इन्टरनेट से जुड़ी हुई हैं.
फोटो : विराज गुरु |
जीवन में एक लक्ष्य हो, अनुशासन हो और उस
लक्ष्य के लिए किसी भी हद तक जाने का जुनून हो. इस वक़्त भी एक टाइम टेबल से चलने
की ज़रूरत है, घर में हैं तो क्या? हर चीज़ का एक तय समय होना ज़रूरी है जो आपको
बोरियत से बचाएगा और सक्रिय बनाये रखेगा.
खुद को
शांत रखने के कई तरीके हैं. अगर आप हमेशा ये जानने में इच्छुक रहेंगे कि दुनिया
वाले आपके लिए क्या सोचते हैं, तो यकीन मानिए अपने मन की शांति खो देंगे. काम करने
क्षमता कम हो जाएगी, व्यस्त रहिये, मन के मौसम को ‘बसंत मोड’ पर बनाये रखिये.
सुबह नए बहाने
उग आएंगे
जैसे ताज़ी मिट्टी में दबे गेहूं से फूटते हैं
जैसे ताज़ी मिट्टी में दबे गेहूं से फूटते हैं
अंकुर
जैसे सूखे पड़े ठूंठ से फूटती हैं
जैसे सूखे पड़े ठूंठ से फूटती हैं
कोपलें
जैसे बरसात में उग आते हैं
जैसे बरसात में उग आते हैं
मशरूम
जैसे लिजलिजे प्यूपा से निकलती है
सुन्दर तितली
जैसे सूरज देखते ही गर्व से सर उठाता है
सूरजमुखी.
सांस चलने तक उम्मीद
नहीं बुझनी चाहिए.
वक़्त
बीतने के साथ कोई मिट्टी होता है ..कोई सोना बनता है ..कोई बिखरता है, कोई निखरता
है. ये सिर्फ आपकी क्षमताओं, जुझारूपन, ज़िद पर निर्भर है. इसलिए मुस्कराइए, कोई
साथ दे न दे, आपको खुद के साथ हर पल खड़ा होना है.
जो आप
सोचते हैं वो सच भी होगा. इसलिए डरे नहीं, डर कर रोज़ मरें नहीं. यही फलसफा है मेरी
ज़िन्दगी का...
“इससे पहले
कि मौत हमें पी जाए
चाहिए
ज़िन्दगी खुल कर जी जाए.”
तो
हिम्मत और धैर्य बनाये रखिये. बच्चों को जीवन जीने के बेसिक स्किल्स सिखाइए.
बुजुर्गों के साथ विनम्र रहिये, नयी कोई भाषा सीखिए, फिल्म देखिये, लिखिए- पढ़िए,
संगीत सुनिए, संगीत सीखिए, पेंटिंग कीजिये, सिलाई- कढ़ाई कीजिये, नया कुछ पकाइए,
मैडिटेशन- एक्सरसाइज कीजिये, डांस कीजिये... जो काम कभी नहीं किया, वह कीजिये, ये
समय मुश्किल ज़रूर है पर दोबारा शायद हमारी जिंदगियों में इतना खाली समय न आये.
अपने सपनों पर धार लगाइए और हाँ उम्मीद का दिया सुबह होने तक जलाये रखिये... जहाँ
एक नया सूरज हमारे इंतज़ार में होगा !
- इरा टाक
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