खुश रहना स्वयं के प्रति पहली जिम्मेदारी
है, हम कईयों से बेहतर हालातों में हैं। सेटल तो कभी कुछ नहीं होता, बिना किसी पूर्व चेतावनी के एक पल में सब बदल
सकता है !
और हम बांटें रहते खुद को, आधा अतीत में छोड़ आते हैं, चौथाई वर्तमान और चौथाई भविष्य में बिखरे रहते हैं, क्या किसी वक़्त हम एक जगह पूर्ण हो पाते हैं?
और हम बांटें रहते खुद को, आधा अतीत में छोड़ आते हैं, चौथाई वर्तमान और चौथाई भविष्य में बिखरे रहते हैं, क्या किसी वक़्त हम एक जगह पूर्ण हो पाते हैं?
ख़ुद को स्वीकार करने का साहस जुटाने के
बजाय, अधिकांश समय जो हम नहीं है उसको साबित करने में लगा देते, क्यों सबको जवाब
देना ज़रूरी है? यही वक़्त है, व्यर्थ की बातों से पीछा छुड़ा ख़ुद को खाली कर कुछ सार्थक भर पाने
का ! क्यों हुआ का जवाब कभी नहीं मिलता इसलिए जहां फंस गये हो वहां से निकलने का
मार्ग निकालो !
कई बार
दिखावे में इतनी उर्जा नष्ट हो जाती है कि जीवन के असल उद्देश्य के लिए बचती ही
नहीं.
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Era Tak |
दुःख का एक
बड़ा कारण ये भी है कि हम अपने जीवन में आये अकृतज्ञ लोगों से दुखी रहते हैं – हमने
उसके लिए इतना किया और वो मतलब निकलते ही भूल गया... या वक़्त पड़ने पर हमारे काम
नहीं आया जैसे हम उसके बुरे वक़्त में काम आये. हमको for granted लेने लगा.
इसमें गलती
हमारी सोच की है कि हम उससे आजीवन स्वामीभक्ति की अपेक्षा करने लगते हैं .
अकृतज्ञता दुनिया का जघन्यतम अपराध है फिर भी हमको माफ़ कर के आगे बढ़ना आना चाहिए.
हम देने लायक थे तो दे सके, हो सकता है बदले में शायद वो भी हैसियत भर साथ रहा हो.
पर उस साथ को हम प्रेम, दोस्ती मान कर भूल कर बैठते हैं. और वर्षों ये दुःख का भाव
हमारी आत्मा पर जोंक की तरह चिपके हुए हमारा लहू पीता रहता है. इसलिए मदद करते हुए
सिर्फ देने का सुख लेना चाहिए, उसके ग्रेटफुल होने की अपेक्षा किये बगैर. यह याद
रखना चाहिए कि kindness कमजोरी नहीं होती यह हमको मानसिक शांति देती है और हमारे
मनुष्य होने को सार्थक करती है.
ये कुदरत
का नियम है कि जो दिया गया वो वापस ज़रूर मिलता है मगर ज़रूरी नहीं उसी से मिले
जिसको दिया गया, किसी और से भी मिल सकता है.
ख़ुद को बड़ा और ख़ास मानना सबसे बड़ी भूल
है, सौ की भीड़ में केवल चार लोगों को आपके होने या न होने से फर्क
पड़ता है ये सबसे बड़ी सच्चाई है, मिथ्या और यथार्थ के फर्क को समझ कर स्वीकर
कर लेना और फिर उस आनंद में मगन रहना...
पहली जिम्मेदारी
दुनिया नकारेगी कई
बार
जैसे कोई वजूद ही
नहीं
पीने होगें घूंट
जहर के
बिना कोई
प्रतिक्रिया दिए
सब बर्बाद कर
दोबारा
ज़ीरो से शुरू
करना होगा
अपनों से आहत होने
पर भी
साथ
चाय पीना ज़रूरी होगा
दर्द को ताकत
बनाते- बनाते
जब तुम थकने लगो
और व्यर्थ लगे
खुद का होना
तब भी खुद को
प्रेम करना
तुम्हारी पहली
जिम्मेदारी
होगी.
ज़िन्दगी और मृत्यु का फासला एक क्षण का है, एक क्षण आपके पास सब कुछ और दूसरे ही क्षण शून्य, फिर क्यों सब मुठ्ठी में बांध लेने की कोशिश में हम सारा जीवन छटपटाते हैं, जीते जी मुट्ठी खोल देना ही मुक्ति है और खुशी का मार्ग भी.... ज़रूरी नहीं हमेशा जोड़ा ही जाए, जीवन से कई बार बहुत कुछ घटा देना भी रास्ते ज़्यादा सहज और आसान करता है !
तो दोस्तों आपकी खुशियों के ख़जाने की चाबी
अपने खुद के पास है, खोजिये और खोलिए ख़जाना.
- इरा टाक
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https://anchor.fm/era-tak/episodes/ep-ed7s37
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