Saturday 1 July 2017

छूटे हुए धागे - इरा टाक ( फेमिना हिंदी जून 17 अंक में आई कहानी)

नेहा रोज़ की तरह रसोई के काम निपटाने में लगी थी. ग्यारह बजे उसे जिम निकलना था. उसका पति निखिल अभी ऑफिस को निकला ही था. दिन का खाना वो सुबह ही बना लेती थी. जिम से आने के बाद उसे बहुत भूख लगती थी और इतनी ताकत नहीं बचती थी कि फिर कुछ खाने को बना सके. उसका वजन बढ़ने लगा था, जो कपड़े उसने बड़े शौक से शादी और हनीमून के लिए खरीदे या सिलवाए थे सब टाइट होने लगे थे. आखिर उसने खुद को पहले जैसे फिट बनाने का इरादा पक्का कर लिया. उसकी सोसाइटी में ही जिम था तो निखिल ने ज्यादा ऑब्जेक्शन नहीं किया. वैसे वो बहुत रोक टोक करने वाला आदमी था. जिम जाने से पहले ही उसने नेहा को बोल दिया था कि लेडीज टाइमिंग पर जाये और घर से सलवार सूट में जाये और जिम जाकर जिम के कपड़े पहने. कभी कभी नेहा उसकी इन दकियानूसी बातों से बहुत खीज जाती थी. अच्छी खासी नौकरी उसने इस शौक में छोड़ दी कि अपना घर संभालेगी. पैसे की कोई कमी नहीं थी. कुछ समय वो अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी को पूरी तरह जीना चाहती थी. नेहा ने ऍम बी ए किया था. वो और निखिल साथ ही काम करते थे. पहचान बढ़ी फिर दोनों ने शादी कर ली.
अभी उसने रोटी गैस फ्लेम पर फूलने को रखी ही थी कि उसका फ़ोन बजने लगा. गैस कम कर के हाथ धोते हुए वो फ़ोन की तरफ भागी. फ़ोन उसके ससुर का था.
‘हेल्लो पापा जी..प्रणाम” –उसने मीठी आवाज़ में कहा
उन्होंने कुछ नोट करने को कहा तो वो अन्दर के कमरे में पेन और पेपर लेने भागी. फ़ोन रखने के बाद उसका दिमाग ग्यारह साल पीछे चला गया. पेपर पर लिखा हुआ वो नाम एक बड़ी कंपनी के सी ई ओ का था, जो उसके पति निखिल को उसकी कंपनी में नौकरी दिलवाने में मदद कर सकता था. पर वो नाम उसकी दस साल की तलाश थी. पता नहीं कितनी दुआएं मांगी थी उसने , कितनी बार मन्नतें मांगी बस ये नाम और उसका कोई पता ठिकाना उसे मिल जाये पर कुछ नहीं हुआ और आज इतनी आसानी से ये नाम उसकी झोली में आ गिरा, जब वो उसे भूलने लगी थी और अपनी नयी ज़िन्दगी में रम गयी थी...
                             चौदह साल की थी जब पहली बार उसका नाम सुना था, उसके साथ ही ट्यूशन पढ़ने आता था और न जाने कब नेहा को उससे प्यार हो गया. वो सामने से आता दिख जाता तो उसके हाथ पैर फूल जाते. दिल की धड़कने कानों में सुनाई देने लगती. गला सूख जाता. नज़र चुरा का कितनी बार उसे देख लेती. कान बस उसकी आवाज़ पर ही लगे रहते. वो कभी उसे देख मुस्करा देता तो वो मुंह बना लेती जैसे उसे जानती भी न हो! आती जाती हर सांस पर उसका नाम लेने लगी थी...
गौतम गौतम गौतम !
और आज उसी “गौतम अवस्थी” का नंबर उसके सामने रखे पेपर पर लिखा हुआ था !
गौतम पढने में बहुत होशियार था, नेहा और उसमें होड़ लगी रहती कि कौन ज्यादा नंबर ले आये. नेहा को बस शाम को ट्यूशन जाने का इंतज़ार रहता. बाद में गौतम ने ट्यूशन बैच का वक़्त बदल लिया. नेहा और उसका सामना अब कम ही हो पाता. वो सारे रास्ते दुआ मांगती कि काश आज वो दिख जाये. दो साल निकल गए. बारहवी के रिजल्ट्स आ चुके थे. नेहा ने अपने जिले में टॉप किया था. गौतम अवस्थी तीसरे नंबर पर था. नेहा ने तय किया आज वो गौतम के घर जाकर उसे बधाई देगी और उससे दोस्ती की पहल करेगी. अभी तक उनके बीच एक दो बार ट्यूशन में एक दूसरे की कॉपी देख लेने के अलावा कोई बात नहीं हुई थी. वो हिम्मत कर गौतम के घर पहुंची तो पता लगा कि उसके पिता का ट्रान्सफर मेरठ हो गया.  वो एक महीना पहले ही जा चुके. वो सन्न रह गयी किसको क्या बोलती ? बहुत रोई, बहुत तड़पी. धीरे धीरे वक़्त बीतता गया पर उसके अन्दर गौतम के लिए जो प्यार था वो कम नहीं हुआ.
नौ साल तक उसके दिल पर कोई दस्तक नहीं हुई. वो हर सोशल साईट पर गौतम अवस्थी का नाम खंगालती. पर उस नाम के न जाने कितने ही नाम सामने आ जाते, उनमें से एक भी उसे पहचाना नहीं लगता. वो अक्सर सोचती कि वो क्या करता होगा? उसके पास बायो थी शायद डॉक्टर बन गया होगा ! फिर वो डॉ गौतम अवस्थी नाम से सर्च करती. पर एक भी उसका गौतम नहीं था. फिर निखिल उसे मुंबई में मिला जो उसके ही शहर का था. निखिल उसे बहुत पसंद करता था, उनकी दोस्ती हो गयी. एक दिन निखिल ने उसे शादी के लिए प्रोपोस कर दिया. आखिर उसने हाँ बोल दी और दोनों की धूम धाम से शादी हो गयी. गौतम एक भूली याद बन उसके दिमाग के किसी कोने में छूट गया.
सब ठीक चल रहा था पर आज ये नंबर अचानक उसके सामने आ गया, जिसकी तलाश में न जाने उसने कितने ही रॉंग नंबर मिलाये थे .
बहुत सोचने के बाद नेहा ने वो नंबर डायल किया
“हेल्लो”-दूसरी तरफ से एक भारी आवाज़ आई
नेहा इस आवाज़ को बहुत अच्छे से पहचानती थी. उसके हाथ कांपने लगे. मुंह से बोल नहीं फूटा
“हेल्लो”- उधर से दोबारा आवाज़ आई
“गौतम”- वो भर्राई आवाज़ में बोली
“जी .. आप कौन?”
“नेहा.. नेहा ठाकुर ! पीलीभीत, केमिस्ट्री बैच माथुर सर” उसने एक साँस में बोल डाला
“अरे...” वो चौंक कर बोला
नेहा चुप रही
“नेहा...मैं एक मीटिंग में हूँ अभी फ्री हो कर फ़ोन करता हूँ”
उसके मुंह से पहली बार अपना नाम सुन नेहा एक अलग ही दुनिया में चली गयी.
“हेल्लो ..नेहा ..ये तुम्हारा ही नंबर है न? मैं कॉल बैक करूँ?“ उसने पूछा
“हाँ”
फ़ोन कट हो गया
वो बहुत बैचैन हो उठी, अब उसका नाश्ता करने का भी मन नहीं कर रहा था. बार बार वो फ़ोन की स्क्रीन देखती. एक घंटा हो गया गौतम ने दोबारा फ़ोन नहीं किया.
“मैंने क्यों फ़ोन किया उसे? पता नहीं उसे अब मैं याद भी हूँ या नहीं? पता नहीं क्या सोच रहा होगा मेरे बारे में?”-उसे खुद पर शर्म आने लगी
“बोल दूंगी नंबर सेव किया था, इसलिए कन्फर्म करने को फ़ोन किया. निखिल को पता लगा तो ?वैसे ही बड़ा शक्की है मुझे अपने बचपन के दोस्तों से तक बात नहीं करने देता”
उसका दिमाग फटा जा रहा था. अनमने मन से वो जिम के लिए तैयार हो गयी.
ट्रेडमिल पर दौड़ते हुए वो अपने मन से गौतम के ख्याल को निकाल देने की कोशिश कर ही रही थी कि उसका फ़ोन बजने लगा. उसने स्पीड कम की और घबराए दिल से फ़ोन उठाया.
“आई ऍम सो सॉरी नेहा. मीटिंग लम्बी खिच गयी और फिर कोई न कोई केबिन में आता जाता रहा. अब फुर्सत से बात कर सकता हूँ”
“तुम्हें मैं याद हूँ?”
“कैसे भूल सकता हूँ? कहाँ से बोल रही हो”
“मुंबई से”
“इतना हाफ क्यों रही हो?”
“जिम में हूँ”
“ओहो हेल्थ कॉनशीअस, तुम तो वैसे ही बहुत फिट हो ”
“ग्यारह साल पुरानी बात बोल रहे हो जब मैं पंद्रह-सोलह साल की थी तब तो सभी फिट होते हैं”- वो हंस पड़ी
“नेहा ! तुम्हें मेरा नंबर कहाँ से मिला”
नेहा ट्रेडमिल से उतर गयी और साइड में रखे एक स्टूल पर बैठ गयी. उसने तौलिये से मुंह पोछते हुए कहा
“गौतम पहले तुम प्रॉमिस करो ये बात किसी से शेयर नहीं करोगे?
“ऑफ कोर्स...प्रॉमिस”
“मेरे फादर इन लॉ ने ये नंबर दिया, उन्होंने कहीं से जुटाया निखिल के लिए. निखिल मेरा हस्बैंड है, जिसने अभी तुम्हारी कंपनी में सीनियर मैनेजर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू दिया है. मैं पिछले दस साल से तुमने तलाश रही थी गौतम ! और आज जब मिले हो तो बहुत देर हो चुकी”
दूसरी तरफ से साँसों के भारी होने की आवाज़ आती रही.
“पता है गौतम मैंने जीवन में किसी चीज़ की इतनी इच्छा नहीं की जितनी तुमसे बस एक बार मिलने की”
“नेहा, मुझे तुम बहुत पसंद थी पर तुम कितनी चुपचाप रहती थी, कभी हिम्मत नहीं होती थी, तुमसे बात करने की और वो शहर भी तो छोटा था जरा सा नाम भी ले लो तो कहानियां बन जाती थी”
‘एक बार बात तो की होती”-नेहा की आवाज़ में नाराजगी थी
“डर लगता था नेहा... विशाल को तुमने भरी सड़क पर कितना सुनाया था क्यूंकि उसने तुम्हे एक लव लैटर दिया था और तुम्हारा भाई निशांत उसने तो केवल तुम्हारा नाम लेने पर राहुल और अनिल की पिटाई कर दी थी”
“हाहा ... जो मुझे पसंद नहीं उसे तो सुनाती ही न..वैसे भी शहर के आधे लड़के को मेरा पीछा करते ही थे. अगर तुम देते तो शायद ...” वो बोलते बोलते रुक गयी
जिम ट्रेनर उसे जिम में फ़ोन पर बात न करने का इशारा कर रहा था
“हेलो.. शायद ..क्या..?” गौतम बोला
“एक मिनट होल्ड करो”
उसने इशारे से जिम ट्रेनर को सॉरी बोला
और अपना बैग उठा जिम से बाहर निकल आई.
“हाँ अब बोलो”
“बोल तो तुम रही थी न...मैं तुम्हें लव लैटर देता तो तुम शायद....”
“तो शायद आज हम साथ होते. मैंने तुम्हे कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा? फेसबुक, ऑरकुट हर जगह ”
‘नेहा मुझे लगता था शायद तुम मुझे पसंद नहीं करती. मैं सिर्फ तुम्हारी एक झलक लेने तीन किलोमीटर साइकिल चला कर आता था. और तुम्हारे घर के पास वाले मास्टर से इंग्लिश ट्यूशन भी तो इसलिए लगाई थी ताकि तुम्हें देख सकूँ पर तुम तो मुझे देखते ही उलटे पाँव भाग जाती थी”
“यार तुम लड़के थे, एक बार तो हिम्मत करते. ज्यादा से ज्यादा न ही तो बोलती” नेहा ने घर का दरवाज़ा खोलते हुए कहा
“मैं शरीफ लड़का था, क्यों तुम्हे तंग करता जब तुम मुझे देखती तक नहीं थी. और न सुनने से अच्छा मुहब्बत का भ्रम होता है”
“ह्म्म्म”- उसने अपना जिम बैग एक तरफ लापरवाही से फेंका और सोफे पर पसर गयी.
“मिला कुछ इस भ्रम से? दस साल तुम्हारा इंतज़ार किया मैंने..एक भी अफेयर नहीं चलाया बीएससी की, ऍम बी ए किया.आखिर पिछले साल अपने अकेलेपन से छुटकारा पाने को शादी की, निखिल बहुत चाहता था मुझे. सोचा इसका दिल तो न टूटे!’
“मैंने भी पिछले साल ही शादी की”-गौतम बोला
“अच्छा ..कौन सी तारिख को”
“सत्रह नवम्बर”
“मैंने अठारह नवम्बर ... तुमसे ठीक एक दिन बाद”- नेहा ने ठंडी सांस छोड़ी
“काश हम एक साल पहले मिल पाते”
“तुमने कोशिश ही नहीं की, गौतम वरना हम साथ होते और देखो शादी भी तुम्हारी शादी के बाद ही की मैंने..इतना कौन किसी का इंतज़ार करता है”
तभी निखिल का फ़ोन आने लगा
“मैं थोड़ी देर बाद फ़ोन करती हूँ
“कितने देर से फ़ोन बिजी आ रहा है, किससे बात कर रही थीं”-निखिल तल्खी से बोला  
“मम्मी से”
“जिम नहीं गयी आज?”
“गयी थी पर तबियत ख़राब लग रही थी इसलिए लौट आई”
“क्या हुआ”
“सिरदर्द हो रहा है बहुत”
“तो सो जाओ. फ़ोन पर क्यों लगी हुई हो यार”
“हाँ सो जाउंगी”
“अच्छा सुनो, अलमारी में मेरी पासबुक है जरा उसका अकाउंट नंबर बता दो”
“ओके”
वो अलमारी की तरफ बढ़ी कुछ कागज उलट पुलट करने के बाद उसे पासबुक मिल गयी. उसने नंबर बताया. फ़ोन कट गया. उसने चैन की सांस ली और बिस्तर पर आ कर लेट गयी. फ़ोन की बैटरी जा जा रही थी. फ़ोन को चार्जिंग पर लगा कर उसने दोबारा गौतम को फ़ोन लगाया
“नेहा” गौतम ने एक ही बार में फ़ोन उठा लिया
“निखिल का फ़ोन था, गुस्सा कर रहा था मेरा फ़ोन बिजी क्यों आ रहा है”
‘ओह अच्छा इतनी नज़र रखता है तुम पर?”-गौतम हंसा
“तुम बिजी होगे ऑफिस में?”-नेहा ने बात बदल दी
“नहीं मैं बाहर आ गया हूँ, ऑफिस के पास एक कॉफ़ी हाउस में”
“क्यों”
“बरसों बाद उस लड़की से बात करने जिसे मैं चाहता था, पर डर के मारे कह नहीं सका और आज पता चल रहा है कि वो भी मुझे चाहती थी”
नेहा ने करवट बदली और तकिये को अपनी बाँहों में ले लिया.
“मैंने दो चार चक्कर चलाये पर प्यार जैसा कुछ नहीं हुआ, शादी भी पेरेंट्स की पसंद से की.”-गौतम ने कहा
“क्या नाम है तुम्हारी वाइफ का ?”
“रमा...”
“तुम कहाँ जॉब करती हो?”
“जॉब छोड़ दिया. फिलहाल सिर्फ होम मेकर. कोई स्टार्ट अप शुरू करने का सोच रही हूँ”
“पर तुम तो डॉक्टर बनाना चाहते थे ये सी एस कैसे बन गए?”
“बस ट्वेल्थ के बाद बीकॉम ज्वाइन कर लिया, कोई खूबसूरत लड़की ही नहीं मिली फिर ट्यूशन में जिसके साथ बायो पढ़ने का मन करता”-वो जोर से हंसा
“हाँ मेरे ज्यादा मार्क्स आते थे तो तुम्हारा मुंह बन जाता था”-नेहा हँसते हुए बोली
“तुम्हारा नहीं बनता था ..ईगो हर्ट होती थी न? ट्वेल्थ में तुमने डिस्ट्रिक्ट टॉप किया इस शर्म के मारे मैं शहर छोड़ गया” गौतम ने हँसते हुए कहा
“तुम्हें पता था कि मैंने टॉप किया था?” नेहा ने चौंकते हुए पुछा
“सारे शहर को पता था मैडम, और हम तो आपकी खोज खबर रखते थे”
“तो फिर बाद में क्यों नहीं रखी? पता है गौतम मैंने तुम्हारे चक्कर में अपना नाम गौतमी रखा था, और कई कवितायेँ भी लिखी मैंने इस नाम से”
“अच्छा...सुनाओ”
“अब कौन सी याद हैं? वही रोने धोने वाली, पहला प्यार टाइप, पर यकीन नहीं हो रहा आज तुमसे बात कर रही हूँ”
“यकीन तो मुझे भी नहीं हो रहा, ऑफिस बीच में छोड़ कर मजनूं की तरह तुमसे बात कर रहा हूँ. पर सच है नेहा”
“ये भी सच है कि तुम एक दिन चुपचाप शहर छोड़ गए गौतम बुद्ध की तरह मुझे सोता छोड़ !”
“हाहा ..वाह क्या सिमिली यूज़ की है”
वो चुप रही. मन ही मन वो गौतम को महसूस कर रही थी उसके आवाज़ को अपनी आत्मा की गहराई तक उतार लेना चाहती थी.
“मेरा मन कर रहा है अभी तुमसे मिलने मुंबई आ जाऊ.”
“मन तो मेरा भी बहुत कर रहा है. पर अब मिलके क्या होगा गौतम? हम तो दस साल पहले ही बिना मिले ही अलग हो गए थे”
“नेहा”
“गौतम”
दोनों तरफ चुप्पी छा गयी.
“लेकिन मेरी आत्मा की एक इच्छा थी कि तुम्हें एक बार कह सकूँ कि कितना प्यार करती थी मैं तुमको! आज वो इच्छा पूरी हो गयी, मन में हमेशा बनी रहने वाली बैचैनी जैसे आज मिट गयी”
“लेकिन मेरी बैचैनी बढ़ गयी जो इच्छा मेरे दिल में दबी रहा गयी थी वो आज पूरी हुई जब मैं उसके बारे में भूल भी चुका था. जैसे वक़्त ग्यारह साल पीछे लौट गया हो..काश मैं एक बार कह देता !”
“अब वो वक़्त वापस नहीं आएगा गौतम. हम दोनों की शादी हो चुकी, सब ठीक चल रहा है दोनों की लाइफ में, अब हम मिले तो सब बिखरेगा ही...!”
“हाँ..शायद तुम सही कह रही हो...निखिल और रमा का क्या कसूर”
“गौतम हम अब कभी बात नहीं करेंगे. वरना मेरा निखिल के साथ रहना मुश्किल हो जायेगा.”
“नेहा तुम से हमेशा कहना चाहता था यू आर अ रेयर कॉम्बिनेशन ब्यूटी विथ ब्रेन. आज लगता है पिट भी गया होता तुम्हारे भाई से तो घाटा नहीं होता”
“डरपोक हमेशा घाटा उठाता है. खैर ! कम से कम हमारी मुहब्बत मुकम्मल तो हुई, हम एक दूसरे से कह पाए भले ही आज हमारे रास्ते, दुनिया मीलों दूर है.”
“नेहा तुम बहुत अच्छी हो, थैंक्स जो तुमने मुझे फ़ोन किया. ज़िन्दगी में ऐसा इतेफाक भी होगा सोचा नहीं था.”
“मेरा नंबर डिलीट कर देना और खुश रहना हमेशा”-नेहा ने कहा
“तुम भी खुश रहना, जॉब ज़रूर ज्वाइन कर लेना”
‘बाय गौतम”
“बाय नेहा”
फ़ोन कट गया था.
दोनों ने अपनी ऑंखें बंद कर ली, आंसू बंद आँखों के कोने से दबे पांव बह निकले.
-इरा टाक










4 comments:

  1. अच्छी कहानी ... वंदना बाजपेयी

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  2. शुक्रिया वंदना जी

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  3. वाह गजब की स्टोरी है। पढ़ कर दिल खुश हो गया। ऐसा लगा कि किसी से सच्ची कहानी सुन रहा हूँ। इरा जी ऐसी स्टोरी जारी रखना।

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