31 अगस्त की गीली सी दोपहर थी , सुबह ही मेरा कजिन दिल्ली से आया था, सारे
काम निपटा के हम एक डाक्यूमेंट्री शूट करने शिवाड़ की तरफ निकल पड़े, एक मित्र जो फोटोग्राफी का ख़ासा शौक़ीन है, को भी साथ ले लिया ।
शिवाड़, राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में बसा हुआ एक छोटा सा क़स्बा है, जो अपने मंदिर और पुराने किले के लिए प्रसिद्ध है। दूर दूर तक हरियाली और फैली हुई बनास नदी ,वहाँ के वातावरण में एक आकर्षण पैदा कर देती हैं, जो बरबस ही मंत्रमुग्ध कर देता है । मेरे घर से शिवाड़ लगभग १२४ किलोमीटर पड़ता है, निवाई के बाद एक बड़े से गेट से हम शिवाड़ की तरफ मुड़ गए , यहाँ से दूरी २१ किलोमीटर बची थी । कार मेरा भाई चला रहा था , मैं तस्वीरें लेने में मसरूफ थी, चारों तरफ फैले हुए खेत, बारिश से लबालब भरे छोटे बड़े तालाब, उनमे तैरते बच्चे, नहाती हुई भैसें , कहीं कपडे धोती हुई ग्रामीण महिलाएं , हम शहर वालो के लिए तो अद्भुत घटना ही होती है, मैं मंत्रमुग्ध होकर सब अपने अंदर जस्ब कर रही थी ।
करीब ४ बजे हम शिवाड़ पहुंच गए, पहुँचते ही बारिश शुरू हो गयी , काफी देर हमे एक छोटी सी चाय की दुकान में शरण लेनी पड़ी , थोड़ा ईंधन पानी हमने भी ले लिया। मैं मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखती , इसलिए सारा ध्यान वहाँ से अपनी क्रिएटिविटी के लिए कुछ चुरा लेने का था ! बारिश से भीगी हुई हवा अपने फेफड़ों में भर लेना चाहती थी ,उंचाई पर खड़े हो कर धरती का गोल होना तुरंत समझ में आता है !
जैसे किसी ने ढेर सारा झाग बना के आसमान पर छिड़क दिया हो , और फिर बादलों से झांकते सूरज ने कुछ रंग उस झाग पर छितरा दिए हों ! बादल अलग अलग आकृतियां लेते हुए ध्यान आकर्षित कर रहे थे , ऐसा लगता था मानो आज आसमान पर कोई आम सभा हो रही है , और विशिष्ट अतिथि अपने अपने आसनो पर विराजमान हैं !
शाम के 6 बज गए , हमने वापस चलने का इरादा किया , वापसी में कार का स्टेरिंग मैंने संभाल लिया ,कसबे के सब लोग ऐसे देख रहे थे जैसे कोई अजूबा हो , आज भी कार चलाना आदमियों का ही काम माना जाता है, ख़ास कर कस्बों और गाँवों में तो यही मानसिकता बनी हुई है ।
रास्ते में हम रुक रुक कर फोटोग्राफ्स लेते रहे, बारिश से मौसम बहुत खुशगवार था , बादलों की ओट से झाँकता सूरज तालाबों में अपना लाल नारंगी रंग घोल रहा था ! सड़क पतली पगडण्डी जैसी थी , और दोनों तरफ खेत , हालांकि थी तो पक्की ,पर बारिश की वजह से जगह जगह गड्ढे बन गए थे ,एक दो जगह तो तालाब सड़क तक आ गया था , और पानी में से गाडी निकालनी पड़ी ।
आगे जाके हमने खेत के किनारे बनी एक चाय की दुकान पर कार रोक दी , वहां ८-१० घर बने थे ,चाय वाले से बातचीत शुरू कर दी , पीछे ही उसका घर था , जिसमे कई भैसें और बकरियां बंधी हुई नज़र आ रही थी । मेरा मित्र वही बैठा रहा , मैं और मेरा कजिन सामने लगे हैंडपपे पर हाथ मुँह धोने लगे , फिर सामने ही एक घर के बाढ़े में बंधी भेड़ों की तस्वीरें लेने लगे, तभी चाय वाले ने आवाज़ देकर बुला लिया , चाय पी कर जब हम चलने को हुए ,तो बाढ़े की मालकिन बाहर निकल आई और हमे आवाज़ दे कर बुलाने लगी ।
उसी समय हमारी कार के पीछे दो ट्रक भी आ कर रुक गए थे , चाय की दुकान है और सामने नल भी ,तो हमने इतना ध्यान नहीं दिया , हम वापस बाढ़े की ओर बढ़ गए, बाढ़े की मालिकन लगभग 50 -55 साल की महिला होगी ,पर चेहरा झुर्रियों से भरा था ,चाँदी के मोटे मोटे कड़े और तोड़( पायल ) पहने हुए थी, हमसे खाना खाने का आग्रह करने लगी , बोली हम छोटी जात के नहीं हैं., आप लोग क्या बाहर से आये हो ?
हमने बोला जात पात हम नहीं मानते ,पर अभी हमे कुछ नहीं खाना , फिर वो बोली मेरी भी फोटुआ खींचो !
और अपनी ओढ़नी सही करती हुई तन के खड़ी हो गयी, भाई ने उसकी कुछ तस्वीरें ली और फिर उसे दिखाई भी ,२-४ लोग और भी आ गए,सब गर्दन लम्बी कर कर के देखने लगे !
लगभग 6:45 का वक़्त हो गया था , हमने उन्हें नमस्कार किया और कार की और बढ़ गए , मैंने कार स्टार्ट ही की थी कि एक साँवली सी दुबली पतली 16-17 साल की लड़की एक मटका और बाल्टी लिए ,खिड़की पर आ के खड़ी हो गयी , मैंने शीशा नीचे किया,
वो बोली "आपको कुछ बताना है "
उसकी ठंडी आवाज़ सुनकर और भावहीन सा चेहरा देख एक ही पल में , दिमाग में सैकड़ों ख्याल आ कर चले गए , पर जो उसने बताया वो सोचा भी न था
"अभी अभी जो २ ट्रक गए हैं , वो आगे आपको रोक लेंगे ,मैंने उनकी बातें सुनी हैं"
हम तो प्रकृति में मगन थे , हमने धयान भी नहीं दिया था ,उन ट्रकों पर !
वो आगे बोली
"वो आपके रुकने के थोड़ी देर बाद रुके थे और आपके चलने से पहले ही चल दिए , मैं पानी भरने गयी तो मैंने सुना कि वो आगे आपको लूटने की बात कर रहे हैं , आप ज़रा संभल के जाना कुछ भी हो सकता है "
अब आप सब ये समझ सकते हैं कि हमारी क्या हालत हुई होगी !
खून का सारा प्रवाह दिमाग की तरफ हो गया और हाथ पैर ठन्डे पड़ गए, एड्रेनालाईन हार्मोन तुरंत अपने उच्तम स्तर पर पहुंच के हमे भावी खतरे से बचने का संकेत देने लगा , आँखों के सामने सारे देखें , सुने, पढ़े हादसों की मिलीजुली तस्वीरें घूम गयीं, अब हमारा भी वही हाल होने वाला था, सुबह कही खेतों में पड़ी हुई हमारे निर्जीव शरीर !
तुरंत कैमरे बैग में रखें, म्यूजिक ऑफ किया, कार के सारे शीशे बंद किये और मैंने फुल स्पीड में गाडी दौड़ा दी , बस यही एक रास्ता था , दूसरा कोई रास्ता होता तो शायद हम वो पकड़ लेते , उन दोनों के मन की मैं नहीं जानती पर मुझे यही लग रहा था कि मैं मौत की सुरंग में जा रही हूँ , शिवाड़ घूमने का सारा आनद कपूर के धुएं की तरह हवा में विलीन हो गया !
शायद मैं ज़्यादा बढ़ा चढ़ा के सोच रही थी पर हकीकत यही थी कि आज के अराजक माहौल और क्रूर होते अपराधियों से किसी तरह कि दया की उम्मीद कैसे की जा सकती है ?
निर्भया काण्ड को आप भूले नहीं होंगे और शायद न ही कभी भूल पाए !
दिमाग काम नहीं कर रहा था , सिर्फ भय और आशंका , कई बार लगता कि शायद उस लड़की ने ऐसे ही मज़ाक किया हो !
थोड़ी दूर वो दोनों ट्रक नज़र आ गए , सड़क इतनी पतली थी कि ओवर टेक की कम ही गुंजाईश दिखती थी , बारिश में टूटी , दबी हुई सड़क, दूर दूर तक फैले हुए खेत और उनमे पसरा हुआ सन्नाटा , हलाकि दिन अभी ढला नहीं था , उजाला हिम्मत दे रहा था , अँधेरा अपराधी की ताकत को दुगना कर देता है और शिकार की ताकत को आधा!
गला सूख रहा था और दिमाग बड़ी तेजी से बुरे से बुरा सोचे जा रहा था , मैंने २-३ बार कहा भी कि पुलिस को फ़ोन करो पर शायद दोनों लड़कों को स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा नहीं था , पर जब २-३ किलोमीटर आगे जाकर ट्रक रुके हुए देखे तो उनके भी हाथ पैर फूल गए , ये नज़ारा मैंने लगभग ३०० मीटर दूर से देख लिया , आगे वाले ट्रक का ड्राइवर उतर के पीछे वाले को कुछ इशरा करने लगा , और बीच सड़क पर खड़ा हो गया, ट्रकों ने साइड से निकलने को बहुत कम जगह छोड़ी थी , मैंने स्पीड 100 किलोमीटर/घंटा कर ली, हलाकि वहां का रास्ता ४० से ऊपर चलने लायक नहीं था, मन ही मन मैंने सोच लिया था , अगर ये न हटा तो इस ट्रक वाले को टक्कर मार दूंगी, मैंने तो यही सीखा है, जब खतरा हो तो बचाव मत करो, हमला कर दो !
तेजी से कार को अपनी ओर आता देख वो अचानक साइड में हो गया, आधी गाडी कच्चे रास्ते पर थी पर मैंने रफ़्तार काम नहीं की ,पीछे एक कार आती दिखाई दी । जब तक वो २१ किलोमीटर पार हो कर हाईवे नहीं आया , मेरी साँसे और धड़कने नार्मल नहीं हुई, करीब 8 :30 बजे हम सही सलामत घर पहुंच गए।
अगर वो लड़की हमे आगाह नहीं करती, तो हम आराम से चलते , सड़क पर ट्रक और आदमी खड़ा देख शायद रुक भी जाते, और फिर न जाने हमारे साथ क्या होता वो कल्पना करते हुए भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं, ये पहली बार था , जब डर को मैंने महसूस किया और मौत की ठंडी आहट सुनी , पर वो लड़की हमारे लिए फरिश्ता ही थी, जिसने ये बताने का साहस किया वरना कई बार लोग डर और संकोच से नहीं बताते !
शायद कुदरत हमे कुछ सिखाना चाहती थी , इसलिए बस डरा के बचा लिया !
एक भयानक हादसा होते होते टल गया , और हम ज़िंदा हैं ,सुरक्षित हैं , क्यूंकि इस फानी दुनिया में अभी हमारा हिसाब बाकी है ... !
इरा टाक
शिवाड़, राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में बसा हुआ एक छोटा सा क़स्बा है, जो अपने मंदिर और पुराने किले के लिए प्रसिद्ध है। दूर दूर तक हरियाली और फैली हुई बनास नदी ,वहाँ के वातावरण में एक आकर्षण पैदा कर देती हैं, जो बरबस ही मंत्रमुग्ध कर देता है । मेरे घर से शिवाड़ लगभग १२४ किलोमीटर पड़ता है, निवाई के बाद एक बड़े से गेट से हम शिवाड़ की तरफ मुड़ गए , यहाँ से दूरी २१ किलोमीटर बची थी । कार मेरा भाई चला रहा था , मैं तस्वीरें लेने में मसरूफ थी, चारों तरफ फैले हुए खेत, बारिश से लबालब भरे छोटे बड़े तालाब, उनमे तैरते बच्चे, नहाती हुई भैसें , कहीं कपडे धोती हुई ग्रामीण महिलाएं , हम शहर वालो के लिए तो अद्भुत घटना ही होती है, मैं मंत्रमुग्ध होकर सब अपने अंदर जस्ब कर रही थी ।
करीब ४ बजे हम शिवाड़ पहुंच गए, पहुँचते ही बारिश शुरू हो गयी , काफी देर हमे एक छोटी सी चाय की दुकान में शरण लेनी पड़ी , थोड़ा ईंधन पानी हमने भी ले लिया। मैं मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखती , इसलिए सारा ध्यान वहाँ से अपनी क्रिएटिविटी के लिए कुछ चुरा लेने का था ! बारिश से भीगी हुई हवा अपने फेफड़ों में भर लेना चाहती थी ,उंचाई पर खड़े हो कर धरती का गोल होना तुरंत समझ में आता है !
जैसे किसी ने ढेर सारा झाग बना के आसमान पर छिड़क दिया हो , और फिर बादलों से झांकते सूरज ने कुछ रंग उस झाग पर छितरा दिए हों ! बादल अलग अलग आकृतियां लेते हुए ध्यान आकर्षित कर रहे थे , ऐसा लगता था मानो आज आसमान पर कोई आम सभा हो रही है , और विशिष्ट अतिथि अपने अपने आसनो पर विराजमान हैं !
शाम के 6 बज गए , हमने वापस चलने का इरादा किया , वापसी में कार का स्टेरिंग मैंने संभाल लिया ,कसबे के सब लोग ऐसे देख रहे थे जैसे कोई अजूबा हो , आज भी कार चलाना आदमियों का ही काम माना जाता है, ख़ास कर कस्बों और गाँवों में तो यही मानसिकता बनी हुई है ।
रास्ते में हम रुक रुक कर फोटोग्राफ्स लेते रहे, बारिश से मौसम बहुत खुशगवार था , बादलों की ओट से झाँकता सूरज तालाबों में अपना लाल नारंगी रंग घोल रहा था ! सड़क पतली पगडण्डी जैसी थी , और दोनों तरफ खेत , हालांकि थी तो पक्की ,पर बारिश की वजह से जगह जगह गड्ढे बन गए थे ,एक दो जगह तो तालाब सड़क तक आ गया था , और पानी में से गाडी निकालनी पड़ी ।
आगे जाके हमने खेत के किनारे बनी एक चाय की दुकान पर कार रोक दी , वहां ८-१० घर बने थे ,चाय वाले से बातचीत शुरू कर दी , पीछे ही उसका घर था , जिसमे कई भैसें और बकरियां बंधी हुई नज़र आ रही थी । मेरा मित्र वही बैठा रहा , मैं और मेरा कजिन सामने लगे हैंडपपे पर हाथ मुँह धोने लगे , फिर सामने ही एक घर के बाढ़े में बंधी भेड़ों की तस्वीरें लेने लगे, तभी चाय वाले ने आवाज़ देकर बुला लिया , चाय पी कर जब हम चलने को हुए ,तो बाढ़े की मालकिन बाहर निकल आई और हमे आवाज़ दे कर बुलाने लगी ।
उसी समय हमारी कार के पीछे दो ट्रक भी आ कर रुक गए थे , चाय की दुकान है और सामने नल भी ,तो हमने इतना ध्यान नहीं दिया , हम वापस बाढ़े की ओर बढ़ गए, बाढ़े की मालिकन लगभग 50 -55 साल की महिला होगी ,पर चेहरा झुर्रियों से भरा था ,चाँदी के मोटे मोटे कड़े और तोड़( पायल ) पहने हुए थी, हमसे खाना खाने का आग्रह करने लगी , बोली हम छोटी जात के नहीं हैं., आप लोग क्या बाहर से आये हो ?
हमने बोला जात पात हम नहीं मानते ,पर अभी हमे कुछ नहीं खाना , फिर वो बोली मेरी भी फोटुआ खींचो !
और अपनी ओढ़नी सही करती हुई तन के खड़ी हो गयी, भाई ने उसकी कुछ तस्वीरें ली और फिर उसे दिखाई भी ,२-४ लोग और भी आ गए,सब गर्दन लम्बी कर कर के देखने लगे !
लगभग 6:45 का वक़्त हो गया था , हमने उन्हें नमस्कार किया और कार की और बढ़ गए , मैंने कार स्टार्ट ही की थी कि एक साँवली सी दुबली पतली 16-17 साल की लड़की एक मटका और बाल्टी लिए ,खिड़की पर आ के खड़ी हो गयी , मैंने शीशा नीचे किया,
वो बोली "आपको कुछ बताना है "
उसकी ठंडी आवाज़ सुनकर और भावहीन सा चेहरा देख एक ही पल में , दिमाग में सैकड़ों ख्याल आ कर चले गए , पर जो उसने बताया वो सोचा भी न था
"अभी अभी जो २ ट्रक गए हैं , वो आगे आपको रोक लेंगे ,मैंने उनकी बातें सुनी हैं"
हम तो प्रकृति में मगन थे , हमने धयान भी नहीं दिया था ,उन ट्रकों पर !
वो आगे बोली
"वो आपके रुकने के थोड़ी देर बाद रुके थे और आपके चलने से पहले ही चल दिए , मैं पानी भरने गयी तो मैंने सुना कि वो आगे आपको लूटने की बात कर रहे हैं , आप ज़रा संभल के जाना कुछ भी हो सकता है "
अब आप सब ये समझ सकते हैं कि हमारी क्या हालत हुई होगी !
खून का सारा प्रवाह दिमाग की तरफ हो गया और हाथ पैर ठन्डे पड़ गए, एड्रेनालाईन हार्मोन तुरंत अपने उच्तम स्तर पर पहुंच के हमे भावी खतरे से बचने का संकेत देने लगा , आँखों के सामने सारे देखें , सुने, पढ़े हादसों की मिलीजुली तस्वीरें घूम गयीं, अब हमारा भी वही हाल होने वाला था, सुबह कही खेतों में पड़ी हुई हमारे निर्जीव शरीर !
तुरंत कैमरे बैग में रखें, म्यूजिक ऑफ किया, कार के सारे शीशे बंद किये और मैंने फुल स्पीड में गाडी दौड़ा दी , बस यही एक रास्ता था , दूसरा कोई रास्ता होता तो शायद हम वो पकड़ लेते , उन दोनों के मन की मैं नहीं जानती पर मुझे यही लग रहा था कि मैं मौत की सुरंग में जा रही हूँ , शिवाड़ घूमने का सारा आनद कपूर के धुएं की तरह हवा में विलीन हो गया !
शायद मैं ज़्यादा बढ़ा चढ़ा के सोच रही थी पर हकीकत यही थी कि आज के अराजक माहौल और क्रूर होते अपराधियों से किसी तरह कि दया की उम्मीद कैसे की जा सकती है ?
निर्भया काण्ड को आप भूले नहीं होंगे और शायद न ही कभी भूल पाए !
दिमाग काम नहीं कर रहा था , सिर्फ भय और आशंका , कई बार लगता कि शायद उस लड़की ने ऐसे ही मज़ाक किया हो !
थोड़ी दूर वो दोनों ट्रक नज़र आ गए , सड़क इतनी पतली थी कि ओवर टेक की कम ही गुंजाईश दिखती थी , बारिश में टूटी , दबी हुई सड़क, दूर दूर तक फैले हुए खेत और उनमे पसरा हुआ सन्नाटा , हलाकि दिन अभी ढला नहीं था , उजाला हिम्मत दे रहा था , अँधेरा अपराधी की ताकत को दुगना कर देता है और शिकार की ताकत को आधा!
गला सूख रहा था और दिमाग बड़ी तेजी से बुरे से बुरा सोचे जा रहा था , मैंने २-३ बार कहा भी कि पुलिस को फ़ोन करो पर शायद दोनों लड़कों को स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा नहीं था , पर जब २-३ किलोमीटर आगे जाकर ट्रक रुके हुए देखे तो उनके भी हाथ पैर फूल गए , ये नज़ारा मैंने लगभग ३०० मीटर दूर से देख लिया , आगे वाले ट्रक का ड्राइवर उतर के पीछे वाले को कुछ इशरा करने लगा , और बीच सड़क पर खड़ा हो गया, ट्रकों ने साइड से निकलने को बहुत कम जगह छोड़ी थी , मैंने स्पीड 100 किलोमीटर/घंटा कर ली, हलाकि वहां का रास्ता ४० से ऊपर चलने लायक नहीं था, मन ही मन मैंने सोच लिया था , अगर ये न हटा तो इस ट्रक वाले को टक्कर मार दूंगी, मैंने तो यही सीखा है, जब खतरा हो तो बचाव मत करो, हमला कर दो !
तेजी से कार को अपनी ओर आता देख वो अचानक साइड में हो गया, आधी गाडी कच्चे रास्ते पर थी पर मैंने रफ़्तार काम नहीं की ,पीछे एक कार आती दिखाई दी । जब तक वो २१ किलोमीटर पार हो कर हाईवे नहीं आया , मेरी साँसे और धड़कने नार्मल नहीं हुई, करीब 8 :30 बजे हम सही सलामत घर पहुंच गए।
अगर वो लड़की हमे आगाह नहीं करती, तो हम आराम से चलते , सड़क पर ट्रक और आदमी खड़ा देख शायद रुक भी जाते, और फिर न जाने हमारे साथ क्या होता वो कल्पना करते हुए भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं, ये पहली बार था , जब डर को मैंने महसूस किया और मौत की ठंडी आहट सुनी , पर वो लड़की हमारे लिए फरिश्ता ही थी, जिसने ये बताने का साहस किया वरना कई बार लोग डर और संकोच से नहीं बताते !
शायद कुदरत हमे कुछ सिखाना चाहती थी , इसलिए बस डरा के बचा लिया !
एक भयानक हादसा होते होते टल गया , और हम ज़िंदा हैं ,सुरक्षित हैं , क्यूंकि इस फानी दुनिया में अभी हमारा हिसाब बाकी है ... !
इरा टाक
ईश्वर साहसी का साथ देता है ।
ReplyDeleteकोई और होता तो वापस ही न जाता ।
लेकिन ड्राइविंग सीट पर स्वयं बैठ कर खुद को शक्ति के रूप में सिद्ध किया इरा टाक ने ।
और हाँ ,
उस लड़की को कभी न कभी जा कर धन्यवाद ज़रूर देना ।
उसका एक चित्र भी बनाना
उस गाँव के लोगों से कहना कि आपका गाँव इतने प्यारे और समझदार बच्चे के हाथों महफूज है ।
सरपंच से कह कर उसके लिए कुछ तालियाँ भी बजवाना .... सुकून मिलेगा !
बहुत बहुत रोमांचक और रोंगटे खड़े करने वाली घटना
ReplyDeleteएक रूजू ह्रदय कलाकार का इतना साहसी होना अचम्भे में डालता है.
ReplyDeleteएरा जी,
ReplyDeleteआपकी यह घटना डराती जरूर है पर ह्रदय को छूने वाली है, आपने यह सब बताकर महिला शक्ति का परिचय दिया है,, और वह लड़की जिसने आप लोगों को चेताया था,, वह कोई देवी थी, जिसमे अनजान लोगो के प्रति दया और अपनापन था,, और आप भी साहसी है,, सभी लड़कियों को आपकी तरह साहसी और निर्भय बनना चाहिए ,,