Saturday 14 February 2015

बेकरी वाली लड़की (दैनिक जागरण में प्रकाशित)

पंद्रह दिनों में ये सीमा का तीसरा ख़त था, पर रमणीक का उनको खोलने का तक मन नहीं हुआ , जब से सांभर से लौटा था उसका दिलो दिमाग बैचैन था..एक वितृष्णा उसके मन में भर गयी थी तीन साल से उसके मन में पनप रहा प्रेम हवा हो गया था ! इन चिट्ठिओं के लिए वो कितना बैचैन रहा करता था ,बेकरी की महक समेटे अनगिनत चिट्ठियां !पोस्टमैन भी जान गया था इस महक को ! यही एक माध्यम था उसे सीमा से पिछले आठमहीनों से जोड़े हुआ था , आज उसे ऐसा अहसास हो रहा था कि सीमा ने उसे ठगा है !
           
सीमा को उसने पहली बार तब देखा जब वो विनायक बेकरी अपने भतीजे के लिए केक लेने गया था ।चाचा के घर से अगली गली में ही विनायक बेकरी थी ,कस्बे की संकरी गली में आगे के हिस्से में बेकरी और पीछे घर! उस गली में नानखटाई की खुशबू दूर तक फैली रहती थी !  केक सीमा ने ही पैक कर के दिया था,दुबली-पतली क्रीम जैसे रंग की लड़की ,जिसके चेहरे पर शायद बेकरी की भट्टी की आंच से झाइयां पड़ गयीं थी! रमणीक अभी हाल में ही सांभर आया था , बचपन से अनाथ हो गया था , गांव में बुआ ने पाला पोसा ,वही से  ही इंटर किया, आगे की पढाई को उसे चाचा के घर भेज दिया गया था। 
(सांभर जयपुर के पास एक तहसील है जो नमक की झील के लिए प्रसिद्ध है )
          
कुछ दिनों बाद उसका फिर बेकरी जाना हुआ , इस बार काउंटर पर एक बुजुर्गवार बैठे हुए थे, जो  बेकरी के मालिक और सीमा के मामा थे उसने अंदर झाँकने की कोशिश की , तो बिस्कुट भरे मर्तबानों के पीछे सीमा की झलक मिल गयी अक्सर आते जाते उसकी नज़र सीमा से टकराने लगी , कॉलेज जाते समय अब रमणीक जानबूझ कर बेकरी के सामने से निकलता , हालांकि ये काफी लम्बा रास्ता पड़ता उसे पता लगा कि  सीमा भी उसी की तरह दूसरों पर आश्रित हैं ,वो ग्यारवीं ही कर पायी थी कि उसके पिता की हैजे से मौत हो गयी, तब से माँ उसके छोटे भाई के साथ गांव में है और उसे सांभर मामा के घर भेज दिया गया , जहाँ वह चौबीस  घंटों की बंधुआ मज़दूर हैं। उसकी ख़ूबसूरती बेचारगी से दबी नज़र आती , आँखों में गहरी तकलीफ तैरती दिखती ,रमणीक का बहुत मन करता कि सीमा से बात करे पर उसके मामा मामी को देख हिम्मत नहीं कर पाता और छोटे कस्बे में बात बहुत जल्दी फैलती है ,बदनामी भी डर रहता !
      
कई बार सीमा नज़र नहीं आती थी तो वह बेकरी के दो-तीन चक्कर लगा लेता ,जब तक वो उसकी एक झलक नहीं देख लेता, चैन नहीं पड़ता घर में चाची का व्यवहार बेहद खराब था और चाचा को कोई खास मतलब नहीं रहता था, ऐसे में  सीमा को देख लेना ही उसके लिए थोड़ी राहत के पल होते !
   
पिछले कई दिनों से रमणीक नज़र नहीं आया ,तो सीमा उदास रहने लगी मामा से सीधे पूछ नहीं सकती थी , उसने अपनी सहेली के भाई को राज़ी किया कि वो रमणीक के बारे में मालूमात करे , तब पता चला कि रमणीक को उसके मामा ने उधार देने से साफ़ मना कर दिया हैं और साफ़ कह दिया हैं कि जब तक जेब में पैसे हों  इस तरफ रुख करे उसको रमणीक की सारी तकलीफें मालूम पड़ गयी थी।
           
अगले दिन उसने एक पैकेट में कुछ बिस्कुट -रस्क पैक किये और रमणीक के कॉलेज के रास्ते में उसका इंतज़ार करने लगी ,उदास बेहाल रमणीक कॉलेज से लौट रहा था , सीमा को सामने देख का एकदम हड़बड़ा सा गया ...
"
ये तुम्हारे लिए" सीमा ने पैकेट उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा
रमणीक कुछ कह पाता, इससे पहले वो आगे बोली
"
जब तुम्हारी जॉब लग जाए तो मुझे पैसे देने होंगे...और हाँ ये पैसे लो , मामा जी का उधार चुका देना !"
रमणीक कुछ नहीं कह पाया ...और सीमा उसके हाथ में पैसे और पैकेट दे कर चली गयी
     
धीरे धीरे वो हर हफ्ते मिलने लगे, सीमा हमेशा उसके लिए बिस्कुट,ड्राई केक ले कर आती, कभी कभी कुछ पैसे भी !
रमणीक कहता "ये अहसान मैं कैसे चुकाऊंगा ?"
तो वो हंस कर कहती "चिंता मत करो ब्याज सहित वसूल लूँगी ..फिलहाल बस पढाई पर ध्यान दो ! तुम्हे अपने चाचा की कैद से आज़ाद होना है ,वरना उम्र भर बंधुआ मजदूर बन के रहना होगा..और अब भगवान से फेल होने की नहीं फर्स्ट आने की दुआ मांगो ! "
सीमा के लगातार प्रोत्साहन की वजह से उसकी हिम्मत बंधी रहती, उसे लगता, कोई तो है जिसे उस पर विश्वास है, उसकी फ़िक्र है।
ग्रेजुएशन पूरा करते ही उसने ऍम आर की नौकरी शुरू की ,साथ साथ  बैंक पी के एग्जाम की तैयारी करता रहा ,दिन भर काम करता और देर रात तक पढाई ! सीमा लगातार उसकी पैसे से मदद करती रही।
और एक दिन रमणीक मिठाई लेकर बेकरी पहुँचा, उसका बैंक पी में सिलेक्शन हो गया था !
सीमा का मामा जो काफी चिड़चिड़ा था , मिठाई देख कर थोड़ा नम्र हुआ ,मौका देख कर रमणीक ने सीमा को एक कागज़ पकड़ा दिया
"
मेरी दोस्त
तुम्हारे कारण ही आज मैं इस मुकाम पर पंहुचा हूँ ..सब तुम्हारी "नानखटाई" का प्रताप हैपरसों मुझे अहमदाबाद निकलना है ... तुमसे दूर जा रहा हूँ, इसलिए इस सफलता पर खुश भी नहीं हो पा रहा हूँ , अब हम कैसे बात कर पाएंगे ? कल मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा ... बहुत सी बातें करनी हैं..तुम्हारा दोस्त"
   
सीमा के पास मोबाइल नहीं था और ही उसके मामा मामी उसे फ़ोन इस्तेमाल करने देते, अब तो केवल एक ही रास्ता बचा था ,चिट्ठी भेजना ,वो भी थोड़ा मुश्किल था ,इसलिए ये तय हुआ कि रमणीक उसे रमा के नाम से लिखेगा !
     
चिट्ठियों का सिलसिला चालू हो गया ,रमणीक ने बैंक ज्वाइन कर लिया था ,रोज़ रात सोने से पहले वो सीमा को चिठ्ठी लिखता ! हर तीसरे दिन सीमा की चिट्ठी जाती, जिसमे से कभी वैनिला एसेंस की खुशबू आती, तो  कभी चॉकलेट की ,अकसर पन्नों पर चिकनाई लगी होती , वो उन पन्नो को बार बार चूमता,
 "
ऐसी ही महक सीमा के हाथो से आती थी ,पता नहीं बेचारी कैसे छुप छुप के लिखती होगी !"
     
एक दो बार उसने बेकरी के नंबर पर काल भी किया, पर हर बार सीमा का मामा फ़ोन उठाता सीमा ने पत्र में उसे हिदायत दी कि फ़ोन करे, मामी उसे बहुत ताने देती हैं .. हफ्ते दो हफ्ते में सीमा ने पीसीओ से कॉल करना शुरू कर दिया था
     
रमणीक की ऑफिस में विमल से गहरी दोस्ती हो गयी थी ,वो अक्सर मज़ाक करता ...
" यार तुम तो लैला मजनू  वाले ज़माने का रोमांस कर रहे हो ! आज कल ये चिट्ठीबाज़ी कौन करता हैं ! "
 "
हाँ यार सच में .. आजकल के चलन से अलग ही हैं, हमारी प्रेम कहानी ! अब तक मैं उसे "आई लव यू " तक नहीं लिख सका ..क्यूंकि खत लड़की के नाम से लिखता हूँ ! और वो जब कॉल करती हैं तो ऑफिस में होता हूँ , सब आसपास रहते हैं,  तब बोल पाने की हिम्मत नहीं होती !पर यार विमल मैं उसके बिना खुद को सोच ही नहीं पाता। ट्रेनिंग के बाद  मैं उसका हाथ मांग लूंगा !"
     
लगभग आठ महीने बाद उसका सांभर जाना हुआ , चाचा के घर जाने का उसका बिलकुल मन नहीं था ,पर लिहाज में जाना पड़ा घर पर सामान रख कर वो तुरंत बेकरी की तरफ निकल पड़ा, सीमा की मामी बाहर ही चबूतरे पर बैठी मिल गयी रमणीक का रंग ढंग काफी बदल गया था , बदलता भी कैसे नहीं अब वो एक बैंक अधिकारी था
मामी ने तुरंत कुर्सी आगे कर दी ....
"
आओ बेटा आओ..कई महीने बाद आये ?' मामी की आवाज़ में केक सी मिठास थी
"
ट्रेनिंग पर गया था ... सोचा अब आया हूँ तो सब से मिलता चलूँ " रमणीक ने फलों की टोकरी मामी को पकड़ाते हुए कहा
"
अच्छा किया बेटा..अरे सीमा !दो कप चाय बनाओ !"
  
सीमा बदहवास सी बाहर निकली ...एक हाथ आटे से सना हुआ था , वो कई महीनों से उसके आने के इंतज़ार में थी !
उसको देख रमणीक के चेहरा फ़क पड़ गया ! वह धम्म से वही फर्श बैठ गया ! सीमा के लिए लाये गए उपहार फर्श पर बिखर गए !
"
क्या हुआ? ये कैसे.......?".शब्द उसके गले में अटक कर रह गए !
"
शाकम्बरी माता के मेले से लौटते बखत टेक्टर पलट गया ..दो  महीने अस्पताल में रही, बहुत खर्च करा दिया ! पहले ही हम पर बोझ थी अब तो एक हाथ भी कट गया ..पता नहीं कितनी मनहूसियत लेकर आई हैं...अभागन ! "
रमणीक के कानों तक जैसे मामी की आवाज़ ही नहीं पहुंच पा रही थी !
    
सीमा से बिना कुछ कहे सुने ,वो अगले ही दिन वापस अहमदाबाद लौट गया , एक दोस्त के हाथों कुछ रुपये लिफाफे में डाल सीमा को भिजवा दिए ..
"
तुमने बहुत साथ दिया मेरे बुरे वक़्त में, आज काबिल हो गया हूँ ,तो उधार चुका रहा हूँ..शुक्रिया ! "
        
       अपने छोटे से कमरे की हर चीज़ से उसे बेकरी की जानी पहचानी महक आती और उसका जी घबराने लगता , उसने  सीमा के पुराने सारे खत टुकड़े टुकड़े कर दिए लैवेंडर खुशबू का रूम फ्रेश्नर कोने कोने में छिड़का ,वो सीमा की महक को अपने दिलो दिमाग से मिटा देना चाहता था । उसे वापस लौटे एक महीना हो चुका था , इस दौरान दो तीन बार सांभर से फ़ोन भी आया ,पर उसने एसटीडी कोड देखते ही  काट दिया , वो अब उस क़स्बे से कोई नाता नहीं रखना चाहता था
      विमल उसकी हालत से दुखी था ,उसने रमणीक को डिस्को चलने का प्रस्ताव दिया, वो चाहता था किसी तरह रमणीक का मन बहल जाये ,रमणीक जो अपनी अच्छी और सुधरी आदतों की वजह से अपने सर्किल में कुख्यात था ,इस बार सहर्ष उसके प्रस्ताव को मान गया !
        विमल ने उसे समझने की कोशिश कि तो वो व्हिस्की का एक बड़ा घूँट लेते हुए बोला  "यार मैं बड़ी तकलीफों के बाद यहाँ तक पंहुचा हूँ , मैं अपंग लड़की के साथ अपनी ज़िन्दगी नहीं बिता सकता,उसका अहसानमंद हूँ पर अहसान अपनी ज़िन्दगी बोझ बना कर नहीं चुका सकता ! अच्छा हुआ सब शादी से पहले ही हो गया !"
विमल सोच रहा था कि "इंसान का मन पीपल के पत्ते जैसा अस्थिर होता है ! ये वही रमणीक है जो काम के अलावा सिर्फ सीमा सीमा की रट लगाये रहता था !"     
    आजकल ऑफिस से लौट कर सीमा के खत फाड़ना उसका पहला काम बन गया था , धीरे धीरे सीमा के खत आने बंद हो गए तो भी रमणीक को अजीब सा खालीपन खाने लगा ,कभी कभी उसकी अंतरात्मा उसे कचोटने लगती ....
    "वो भी अपनी चाची की तरह पत्थर दिल है , जब सब उससे नौकर की तरह बर्ताव करते थे ,तब सीमा ने उसे प्यार और सहारा दिया और उसने क्या किया ? बुरे वक़्त में सीमा का साथ छोड़ दिया ,एक बार उसकी तकलीफ जानने की कोशिश नहीं की ....."
तो तेज़ी से सिर झटक कर उन ख्यालों को दरकिनार करता और सॉइल साइट पर देर रात तक चैटिंग में लग जाता !
    
आज एक लड़की के साथ डिनर पर जाना था, चैटिंग के जरिये उसे गहरी दोस्ती हो चुकी थी ,आज पहली बार मिलना होगा ,ऑफिस से लौटते वक़्त उसने एक बड़ा सा बुके खरीदा,एक हाथ में सुर्ख गुलाबों का बड़ा सा बुके संभाले, गुनगुनाते हुए वो रूम का लॉक खोल ही रहा था कि उसकी लैंडलेडी (मकान मालकिन )आ गयी ...
"
ओहो... इतने सारे गुलाब...लो एक और गुलाब ...!"
कहते हुए उन्होंने एक मुड़ा हुआ कागज़ और कुछ रुपये उसके हाथ में थमा दिए !
मनी आर्डर था ! वो कमरे में दाखिल हो गया
भेजने वाले के नाम में सीमा का नाम था ...
और पाने वाले को सन्देश में
एक "गुलाब" का फूल बना था साथ में लिखा था
अलविदा दोस्त !
उसके हाथ से  बुके छूट गया
ये वही पांच हज़ार  रुपये थे जो उसने सीमा को भिजवाये थे !
"
क्या उसका उधार वो कभी चुका सकता हैं ?"
वो खुद को बहुत छोटा महसूस करने लगाआँखों से आंसू बहने लगे , उसका मन सीमा से मिलने को छटपटाने लगा  ! बार बार उसकी नयी गर्ल फ्रेंड का फ़ोन रहा था ,पर उसका दिमाग सुन्न हो चुका था , कई घंटों तक वो फर्श पर रुपये और मनी आर्डर मुट्ठी में दबाये बैठा रहा
आखिर उसने मोबाइल उठाया और एक नंबर मिलाया
"
रघु ! अहमदाबाद से जयपु
की जो भी पहली फ्लाइट हो टिकट बुक कर दें ! बहुत अर्जेंट हैं "
"
हाँ रघु.. ! ज़िन्दगी जितना अर्जेंट !"
कुछ घंटों बाद वो विमान की खिड़की से झांकते हुए खुद को बादलों की तरह हल्का और प्यार से भरा हुआ महसूस कर रहा था !
इरा टाक


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Even A Child Knows -A film by Era Tak