खोज रही है स्त्री खुद को खुद के भीतर
प्रेम पाने की भाग दौड़ में
खुश रखने में दूसरों को
लादे हुए ज़िम्मेदारियों का बोझ
कहीं खुद को बहुत पीड़ा
पहुचती है स्त्री
जब भी एक पल को अकेली होती है
मन पूछता है
उसकी उदासी का कारण
कारण बहुत हैं …
क्यों एक स्त्री अक्सर भीतर से
अकेली और डरी हुई होती है
सक्षम होते हुए भी
क्या खुद को वो कभी पूर्ण
कर पाती है
सारा आकाश वो एक धरती के टुकड़े को छोड़ देती है
वो टुकड़ा जिस पर उसका प्रिये
एक घर बनाएगा
पर क्या मिल पाता है उसे वो घर
एक स्वामिनी की तरह ?
या वो ख़ुशी जिसके लिए
उसने अपनी उड़ान छोड़ दी
क्या स्त्री खोज पाती है
खुद को खुद के भीतर … इरा टाक
kaha khoz pati hai khud ko khud ke bhitar.....kyonki wo stri hai...dusre jo apne hain,khush karne ke kashamksh me bhul jati hai sankuch....
ReplyDeletenice poetry.
ReplyDeleteWomen are the real architects of
society.
Happy women day.
गहन भाव से लिखी रचना.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग" शब्दों की मुस्कुराहट " की नवीनतम पोस्ट पर पधारकर अपना स्नेह
ReplyDeleteप्रदान करें
http://sanjaybhaskar.blogspot.in