अक्सर कहते हो तुम
दुःसाहसी हूँ मैं
दुनिआ की नहीं
सिर्फ अपने दिल की सुनती हूँ
प्रेम जो अनुशाषित हो तो
प्रेम ही कैसा
मेरे प्रिय !
दुःसाहसी हूँ मैं
दुनिआ की नहीं
सिर्फ अपने दिल की सुनती हूँ
प्रेम जो अनुशाषित हो तो
प्रेम ही कैसा
मेरे प्रिय !
इरा टाक लेखक, फिल्मकार, चित्रकार हैं. वर्तमान में वो मुंबई में रह कर अपनी क्रिएटिव तलाश में लगी हुई हैं . ये ब्लॉग उनकी दुनिया की एक खिड़की भर है.
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