Monday 19 March 2018

अतीत की गलियों से - इरा टाक

पेंटिंग - इरा टाक 

याद आती हैं आज.. अतीत की वो गलियां
बेफिक्र था बचपन...तुम्हारी दोस्ती के साये में
आँखों में भर के छलक जाते हैं  कुछ आंसू..
आंसू जिन्हें थाम लेते थे तुम नन्हीं हथेलियों में
जैसे हों वो कोई मोती अनमोल

सर्दी के मौसम में..वो कोहरे भरी गलियां
अंगीठी के पास बैठ.. घंटो बतियाते थे हम
सर्दी की कुनकुनी धूप में पतंगें उड़ाते हुए 
खाते थे तिल के लड्डू और पौष बड़े

बसंत के मौसम में रंगों से लदा होता बागीचा
तुम्हारे फूलों से बनाये हुए गहने
पहन  कितना इतराती थी मैं
सब कहते थे मुझे वनदेवी
सुनके शरमाती थी मैं 


गर्मी के मौसम में बिजली का अकाल था 
शीशम की छाँव में गणित का सवाल था 
शाम ढले चिमनी की रोशनी में बनाते थे चित्र
गर्मी में भी सुकून था.. जो अब "एसी" में नहीं है 

बारिश के मौसम में भीगते हुए बरसातों में 
बनाते थे कश्तियाँ और बुनते थे महल 
आम की डाली पे लटके झूले में 
बैठ कोयले पर सिके भुट्टे खाते थे हम

वो सारे मौसम जो जिए थे तुम्हारे साथ
दिलाते हैं मुझे उस भूले शहर की याद
कहाँ हो तुम...कहीं खो गए ..इस भीड़ में...
केवल ढेरों मीठी यादें ही हैं साथ

फिर भी एक उम्मीद जो जिन्दा है
दिल के दबे कोने से आती है आवाज
फिर मिलेगा तू मुझे निकल के अतीत की गलियों से
साथ चलेंगे हाथ थामे वर्तमान की सडकों पर !

इरा टाक 

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