Heal Your Inner Child
हम आज क्या हैं, इसके बीज अक्सर हमारे बचपन में पड़ जाते हैं. परिवार में मिला अराजक, अशान्तिपूर्ण माहौल, प्यार और सम्मान की कमी, abusive childhood, difficult teenages, ये सब बातें अक्सर एक टूटे बिखरे हुए Adult तैयार करती हैं, जो भले ही बाहर से मजबूत होने का दिखावा करें लेकिन अपने मन के भीतर बेहद डरे, सहमे, प्यार और स्नेह के भूखे होते हैं.
कोई ऐसे बच्चों की दवा नहीं करता है, अन्दर का बच्चा वैसे ही घायल पड़ा रहता है, ज़ख्म पर ज़ख्म लगते जाते हैं, आप बाहर से बढ़ते जाते हैं, और अंदर बिखरे रहते हैं, कई बातें आपके उस inner child को ट्रिगर करने लगती हैं और वो छटपटाते हुए अपने अतीत में पहुँच कर ख़ुद को ज़िन्दा रखने का उपाय करते हुए कई बार आपको मूर्खतापूर्ण हरकतें करने को मजबूर कर देता है , और लोग आसानी से आपको Obsessive, arrogant, Attention seekar, सनकी के तमगे से नवाज़ देते हैं.
असल में किसी पर इतना वक़्त नहीं जो empathy दिखा सके, empathy वैसे भी rare virtue है, बहुत कम लोग होंगे जो आपको समझने के लिए सुनेंगे. भारत में mental health पर बात करना भी एक stigma है. और साथ ही साथ माता पिता को इतना महिमामंडित किया गया है कि उनके ख़िलाफ़ बोलना भी आसान नहीं होता है जबकि वो भी साधारण मनुष्य होते हैं जो अपनी कुंठाएं, कड़वाहट अपने बच्चों पर लाद देते हैं. जिनको आपको प्रोटेक्ट करना चाहिए वो ही आपको सबसे ज्यादा मानसिक हानि पहुँचाते हैं.
ख़ुद को heal करना आपकी ही ज़िम्मेदारी है, अपने अन्दर के Wounded Inner Child को भरोसा दिलाईये कि जो उसके साथ हुआ उसका आपको अफ़सोस है, वो लाचार था, लेकिन अब आप उसको संभाल सकते हैं. हो सके तो मनोचिकित्सक की मदद लीजिये, किसी सच्चे दोस्त को हाल बताइए.
मैडिटेशन, माफ़ करना, ख़ुद का विशेष ध्यान रखना, Cognitive thinking, एक्साइज करना, काम के साथ-साथ कोई क्रिएटिव हॉबी या शौक पालना, ये सब ख़ुद को Heal करने के उपाय हैं, ये आपको ख़ुद रोज़ अपने लिए करना होगा बाकी कोई आपको उबारने नहीं आएगा, ये याद रखना ज़रूरी है!
क्यूंकि मरने से पहले ज़िन्दा रहना ज़रूरी है !
-इरा टाक